दीवान और खादिम एक साथ नजर आए
बंगलादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद अब्दुल हमीद ने 21 दिसम्बर को यहां सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में जियारत की। राष्ट्रों के शासनाध्यक्षों की दरगाह में जियारत आम बात है, लेकिन 21 दिसम्बर को हमीद की दरगाह जियारत में एक महत्वपूर्ण बात यह रही कि दरगाह के दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन और दरगाह के खादिम एक साथ नजर आए। आबेदीन के दरगाह का दीवान बनने के बाद संभवत: यह पहला अवसर होगा जब खादिम समुदाय के बीच दीवान आबेदीन को इतना सम्मान प्राप्त हुआ। इससे पहले जब भी कोई राष्ट्राध्यक्ष जियारत के लिए आए तो दरगाह के मुख्य द्वार से खादिम समुदाय ही साथ रहता था। जब राष्ट्राध्यक्ष जियारत के बाद वापस लौटते थे तो बुलन्द दरवाजे पर दीवान आबेदीन की ओर से दस्तारबंदी की जाती थी। यानि दीवान आबेदीन मुख्य द्वार से आस्ताना शरीफ तक राष्ट्राध्यक्ष के साथ नहीं आते थे। हालांकि जैनुअल आबेदीन दरगाह के दीवान हैं, लेकिन खादिमों के साथ चलते विवाद की वजह से वह राष्ट्राध्यक्ष के साथ बराबर दरगाह में नहीं चलते थे, लेकिन 21 दिसम्बर को बांग्लादेश के राष्ट्रपति हमीद के दरगाह आगमन पर दीवान आबेदीन न केवल दरगाह के मुख्य द्वार से साथ आए तब हमीद ने आस्ताना शरीफ में जियारत की तब भी खादिम समुदाय के साथ दीवान भी उपस्थित रहे। इतना ही नहीं हमीद ने दरगाह की परम्परा के अनुरूप खादिमों की संस्था अंजुमन के रजिस्टर में अपने अनुभव लिखे तब भी दीवान अंजुमन के प्रतिनिधियों के साथ उपस्थित थे। बाद में दीवान आबेदीन ने परम्परा के अनुसार बुलन्द दरवाजे पर बांग्लादेश के राष्ट्रपति की दस्तारबंदी की। असल में दरगाह दीवान व खादिम समुदाय के बीच दरगाह में आने वाले चढ़ावे को लेकर विवाद चल रहा था। आधे चढ़ावे पर दीवान ने अपना हक जताते हुए लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी। जिला न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने दीवान के पक्ष में फैसला दिया और दरगाह में आने वाले चढ़ावे को आधा-आधा बांटने का आदेश जारी कर दिया। हालांकि खादिम समुदाय चढ़ावे के बंटवारे के पक्ष में नहीं था इसलिए दरगाह के अंदर कई बार दीवान आबेदीन के साथ झगड़ा-फसाद हुआ। सालाना उर्स के अवसर पर होने वाले धार्मिक रस्मों में तो कई बार खूनी संघर्ष भी हुआ। दीवान आबेदीन अपनी हत्या की आशंका जताते हुए पुलिस में भी मुकदमा दर्ज करवाया, लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट ने चढ़ावे के बंटवारे के सख्त आदेश जारी किए तो दरगाह के खादिमों को ना चाहते हुए भी दीवान आबेदीन से दोस्ती करनी पड़ी। चढ़ावे के बंटवारे के बजाय खादिम समुदाय ने दीवान आबेदीन को 2 करोड़ रुपए सालाना देना स्वीकार कर लिया। इसके साथ ही चार करोड़ रुपए भी भुगतान पिछले दिनों दीवान आबेदीन को कर दिया गया। चढ़ावे पर दो करोड़ का समझौता सही है या गलत यह मामला आज भी न्यायालय में विचाराधीन है। दीवान व खादिमों में जो दोस्ती हुई जिसका सार्वजनिक प्रदर्शन 21 दिसम्बर को बांग्लादेश राष्ट्रपति की यात्रा के समय ही हुआ। पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों को भी इस बात पर आश्चर्य रहा कि दीवान व खादिमों में अब कोई मतभेद नहीं रहा है। आबेदीन को न केवल धर्मगुरु के रूप में मान्यता दी गई बल्कि उनका सम्मान करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी गई। इस दोस्ती से प्रशासन ने भी राहत की सांस ली है, क्योंकि पूर्व में जब इन मौकों पर दरगाह के अंदर दीवान और खादिम एक साथ रहते थे तो हमेशा झगड़े की आशंका बनी रहती थी। 21 दिसम्बर को दीवान व खादिमों का एक साथ रहने से बांग्लादेश के राष्ट्रपति के सम्मान में भी वृद्धि हुई। जिस प्रकार दोनों पक्षों ने मिलकर हमीद का अभिनन्दन किया उसकी सभी ने सराहना की। दरगाह के जानकार लोगों का मानना है कि दोनों पक्ष के एक साथ होने से अब दरगाह का विकास भी तेजी से होगा। यहां यह उल्लेखनीय है कि दीवान आबेदीन का पाकिस्तान के आतंकवाद के खिलाफ सख्त रूख रहा है। दीवान कई बार कह चुके है कि मुस्लिम धर्म में आतंकवाद का कोई स्थान नहीं है। जो लोग जेहाद के नाम पर निर्दोष लोगों को मारते है असल में मुसलमान ही नहीं है।
-(एस.पी.मित्तल)(spmittal.blogspot.in)
Sunday 21 December 2014
दीवान और खादिम एक साथ नजर आए
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