Friday 16 January 2015

क्या राष्ट्रपति के सम्मान को भुनाने की कोशिश है दिल्ली में

क्या राष्ट्रपति के सम्मान को भुनाने की कोशिश है दिल्ली में
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की पुत्री को कांग्रेस ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में  ग्रेटर कैलाश क्षेत्र से उम्मीदवार घोषित किया है। क्या यह उम्मीदवारी देश के राष्ट्रपति के सम्मान को कांग्रेस के पक्ष में बनाने की कोशिश है? सब जानते हैं कि शर्मिष्ठा मुखर्जी प्रणव मुखर्जी के साथ ही राष्ट्रपति भवन में रहती हैं। सरकारी समारोह में राष्ट्रपति के साथ शर्मिष्ठा को ही भी देखा गया है। शर्मिष्ठा अपने पिता के साथ विदेश यात्रा पर गई हैं। राष्ट्रपति के सामान्य कामकाज में शर्मिष्ठा मुखर्जी की भी सर्कियता देखी गई है। देश के संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति का पद देश में सर्वोच्च पद है। सभी संवैधानिक संस्थाएं राष्ट्रपति के अधीन ही काम करती हैं। पहला सवाल यह उठता है कि जो शर्मिष्ठा मुखर्जी देश के राष्ट्रपति की पुत्री हैं क्या उन्हें भी एक विधायक का पद चाहिए? देश में कई हजार विधायक हैं। क्या राष्ट्रपति भवन में रहने वाले किसी सदस्य को विधायक बन जाने से संतुष्टि मिल जाएगी? जो विधानसभाएं राष्ट्रपति के प्रतिनिधि राज्यपाल के आदेशों पर संचालित होती हो उसका सदस्य बनना क्या राष्ट्रपति भवन में रहने से भी बड़ा है? माना कि प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति बनने से पहले कांग्रेस के नेताओं में शमिल थे। कांग्रेस में उनकी जो भागीदारी रही, उसी वजह से कांग्रेस ने अपने पिछले शासन में प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया। कांग्रेस की बदोलत ही प्रणव मुखर्जी आज देश के सर्वोच्च पद पर बैठे हैं, लेकिन इसके बावजूद भी उनकी पुत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी का कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में दिल्ली का विधानसभा चुनाव लडऩा आश्चर्यचकित करने वाला है। यह भी सही है कि प्रणव मुखर्जी अपनी पुत्री के लिए चुनाव प्रचार नहीं करेंगे, लेकिन शर्मिष्ठा मुखर्जी की आज जो पहचान है, उसके पीछे उनके पिता प्रणव मुखर्जी का देश का राष्ट्रपति होना है। कांग्रेस ने जैसे ही शर्मिष्ठा की उम्मीदवारी की घोषणा की वैसे ही मीडिया में प्रसारित हुआ राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की पुत्री भी कांग्रस के उम्मीदवार होंगी। कांग्रेस ने जो उम्मीदवार घोषित  उसमें शर्मिष्ठा मुखर्जी को ही सबसे ज्यादा प्रचार मिला। इसका कारण यह है कि शर्मिष्ठा मुखर्जी राष्ट्रपति की पुत्री है। इसलिए यह सवाल उठता है कि दिल्ली विधानसभा में शर्मिष्ठा मुखर्जी को उम्मीदवार घोषित कर कांग्रेस ने राष्ट्रपति के सम्मान को भुनाने की कोशिश की है, चूंकि प्रणव मुखर्जी का देश की राजनीति में भी सम्मान है। इसलिए शायद भाजपा भी शर्मिष्ठा की उम्मीदवारी को कोई राजनीतिक मुद्दा न बनाए, लेकिन शर्मिष्ठा मुखर्जी की उम्मीदवारी को राजनीतिक दृष्टि से उचित भी नहीं माना जा सकता। शर्मिष्ठा जीतेगी या हारेंगी यह तो परिणाम के बाद ही पता चलेगा, लेकिन यदि शर्मिष्ठा विधानसभा का चुनाव हार जाती हैं तो क्या इससे प्रणव को शायद धक्का नहीं लगेगा। अच्छा होता शर्मिष्ठा का राष्ट्रपति भवन में रहकर अपने पिता प्रणव मुखर्जी के स्वास्थ का ध्यान रखती और दलगत राजनीति में राष्ट्रपति भवन को नहीं घसीटती।
-(एस.पी.मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

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