Thursday 22 January 2015

पब्लिक स्कूलों के अनुसार हो बच्चों का जन्म

पब्लिक स्कूलों के अनुसार हो बच्चों का जन्म
अजमेर। अब माता-पिता यह तय नहीं करेंगे कि उनके बच्चे का जन्म कब हो? बल्कि पब्लिक स्कूलों के प्रबंधक बताएंगे कि माता-पिता को बच्चे कब पैदा करने है। यदि इन मशहूर स्कूलों के प्रबंधकों के अनुसार बच्चे पैदा नहीं हुए तो फिर ऐसे बच्चों का इन स्कूलों में एडमिशन भी नहीं हो सकेगा। अजमेर सहित राजस्थान के सभी बड़े शहरों में इन दिनों पब्लिक स्कूलों में एडमिशन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। अजमेर के प्रमुख पब्लिक स्कूल मयूर में नर्सरी में एडमिशन के लिए जो दिशा निर्देश जारी किए है उसमें साफ लिखा है कि जिन बच्चों का जन्म 1 अक्टूबर 2011 से 31 मार्च 2012 की अवधि में हुआ है,उन्हीं बच्चों का प्रवेश हो पाएगा। बच्चे की उम्र साढ़े तीन वर्ष निर्धारित की गई है। यानि जिन माता-पिता ने अपने बच्चे 1 अक्टूबर 2011 से पहले पैदा कर लिए उनका एडमीशन नहीं होगा। इसी प्रकार जिन बच्चों का जन्म 31 मार्च 2012 के बाद हुआ वे भी मयूर पब्लिक स्कूल में एडमशिन नहीं ले सकेंगे। ऐसी ही शर्त इसाई मिशनरिज द्वारा संचालित सेंट एंसलम्स, कान्वेंट, सोफिया, सेंट पॉल आदि में भी लगाई है। इसी तरह निजी क्षेत्र में चलने वाली एमपीएस, स्टीफंस, ऑल सेंटस् आदि स्कूलों में भी ऐसी ही शर्त लगाई गई है। एक ओर सरकार अनिवार्य शिक्षा का नारा दे रही है तो दूसरी ओर पब्लिक स्कूल बेहद ही शर्मनाक और घटिया शर्ते लगा रही है।चूंकि अभिभावकों को भी इन्हीं पब्लिक स्कूलों में अपने बच्चों का एडमिशन करवाना है इसलिए फर्जी प्रमाण पत्र बनवाए जा रहे है। बच्चों के जन्म प्रमाणपत्र नगर निगम द्वारा बनाए जाते है, लेकिन ऐसे प्रमाण पत्र स्कूलों की शर्तो के अनुरुप नहीं है इसलिए अभिभावक सीटी मजिस्ट्रेट के यहां झूठा शपथ पत्र देकर जन्म की तिथि बदलवा रहे है। सिटी मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वह अभिभावक के शपथ पत्र के आधार पर नया जन्म प्रमाण पत्र बनाने का आदेश नगर निगम को दे सकता है। यही वजह है कि इन दिनों सिटी मजिस्ट्रेट कार्यालय में जन्म तिथि बदलवाने को लेकर अनेक अभिभावकों के आवेदन पड़े हंै। यानि अभिभावक भी अपने बच्चे की बुनियाद ही झूठ पर खड़ी कर रहे हंै। हालांकि इसके लिए पूरी तरह पब्लिक स्कूल के प्रबंधक दोषी है। सरकार ने आर.टी.टी. कानून भी लागू कर रखा है लेकिन यह स्कूल ऐसे कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हंै। जिन अधिकारियों को ऐसे बेशर्म स्कूलों के प्रबंधकों के खिलाफ कार्यवाही करनी है उन अधिकारियों की सिफारिशों पर इन्हीं स्कूलों में आसानी से एडमिशन हो जाते है। इसलिए अधिकारी इन स्कूलों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करते हंै। जिन अभिभावकों ने अपने बच्चे इन स्कूलों की मंशा के अनुरुप पैदा कर लिए है उन्हें भी यह भरोसा नहीं है कि एडमीशन हो ही जाएगा। क्योंकि एडमीशन से पहले उन माता-पिता के भी इंटरव्यू होंगे जिन्होंने बच्चे को जन्म दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सख्त निर्देश दे रखे है कि नर्सरी कक्षा में एडमीशन के लिए किसी भी प्रकार से इंटरव्यू नहीं लिए जाए, लेकिन पब्लिक स्कूल सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे है। गंभीर बात तो यह है कि अजमेर, प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी का गृहनगर है। देवनानी पर ही प्रदेश भर में पब्लिक स्कूलों में कायदे-कानून लागू करवाने की जिम्मेदारी है लेकिन पब्लिक स्कूल के प्रबंधक शिक्षा मंत्री की नाक के नीचे ही कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं। शिक्षा मंत्री क्यों खामोश है? इसका जवाब सामने आना चाहिए। क्या शिक्षा मंत्री पर भी पब्लिक स्कूल के मालिकों का दबाव है?
(एस.पी.मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

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