Sunday 25 January 2015

कलेक्टर के इंतजार में ठिठुरते रहे स्कूली बच्चे

कलेक्टर के इंतजार में ठिठुरते रहे स्कूली बच्चे
24 जनवरी को वसंत पंचमी पर अजमेर जिले की तीन हजार से ज्यादा सरकारी स्कूलों में ज्ञान की देवी मां सरस्वती के पूजा के कार्यक्रम आयोजित हुए वहीं जिला कलेक्टर डॉ. आरूषि मलिक की वजह से स्कूलों की छात्राओं और छात्रों को दो घंटे तक ठंड से ठिठुरना पड़ा।
हुआ यूं कि मतदाता जागरूकता के लिए 24 जनवरी को सूचना केन्द्र में प्रदर्शनी लगाई गई। प्रदर्शन का उद्घाटन जिला कलेक्टर डॉ. आरूषि मलिक ने किया। तय कार्यक्रम के अनुसार कलेक्टर को प्रात: 10 बजे उद्घाटन के लिए आना था। कलेक्टर की आवभगत के लिए शिक्षा विभाग ने बड़ी संख्या में सरकारी स्कूलों की छात्राओं और छात्रों को भी सूचना केन्द्र बुलवा लिया गया जो कि कलेक्टर को प्रात: 10 बजे आना था इसलिए छात्र-छात्राओं को 9:30 बजे ही सूचना केन्द्र में एकत्रित कर दिया गया। लेकिन कोई डेढ़ घंटे तक स्कूली बच्चों को ठंड से ठिठुरना पड़ा क्योंकि कलेक्टर एक घंटा विलम्ब से प्रात: 11 बजे सूचना केन्द्र पर आई। इस बीच बच्चों के साथ आए शिक्षकों ने बच्चों को खुली जमीन पर ही बैठा दिया। हालांकि मासूम छात्र-छात्राओं ने जमीन पर बैठाने का ऐतराज किया लेकिन बच्चों की किसी ने भी सुनवाई नहीं की। बच्चों ने कलेक्टर के आगमन पर ठिठुरते हुए ही अभिवादन भी किया। शिक्षा अधिकारियों के दबाव में बच्चों को मतदाता जागरूकता के लिए रैली भी निकालनी पड़ी। शिक्षा विभाग में जिन अधिकारियों ने जिला प्रशासन को खुश करने के लिए हाड़ कंपकंपाने वाली सर्दी में स्कूली बच्चों को बुलाया वह वाकई संवेदनशील है। समझ में नहीं आता कि मतदाता जागरूकता के लिए उन बच्चों को क्यों बुलाया जाता है जो स्वयं मतदाता नहीं है। एक ओर प्रदेश में स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी वसंत पंचमी पर स्कूलों में ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा करवाते हैं तो दूसरी ओर स्कूलों में पढऩे वाली मासूम देवियों को सर्दी के मौसम में जमीन पर बैठने के लिए मजबूर किया जाता है वह भी तब जब जिला कलेक्टर स्वयं एक महिला है। यदि एक महिला अधिकारी के इंतजार में स्कूल की छात्राओं को दो घंटे तक ठंड में ठिठुरना पड़े तो यह भी बच्चों के अधिकारों का हनन है। कलेक्टर को चाहिए कि उन अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करे जिन्होंने बच्चों को खुली जमीन पर बैठा दिया। कलेक्टर को यह कार्यवाही इसलिए भी करनी चाहिए कि उनके विलम्ब के आने की वजह से ही बच्चों को ठिठुरना पड़ा। इस मामले में प्रदेश की महिला मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी संवेदनशील होकर दखल देना चाहिए। मुख्यमंत्री को इस बात के निर्देश देने चाहिए कि मतदाता जागरूकता के लिए स्कूली बच्चों का उपयोग नहीं हो। यदि मतदान के प्रति जागरूकता ही पैदा करनी है तो कम से कम उन लोगों के बीच की जाए जो स्वयं मतदाता है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

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