Saturday 28 February 2015

बजट से आम व्यक्ति को राहत तो नहीं मिली

बजट से आम व्यक्ति को राहत तो नहीं मिली
पीएम नरेन्द्र मोदी की नीतियों पर केन्द्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने 28 फरवरी को संसद में जो आम बजट प्रस्तुत किया उससे आम व्यक्ति को तो कोई राहत नहीं मिली है। उल्टे सर्विस टैक्स को 12.5 प्रतिशत से बढ़ाकर जो 14 प्रतिशत किया गया है। उससे दैनिक उपभोग की सभी वस्तुएं महंगी हो जाएगी। सब जानते हैं कि कांग्रेस सरकार ने सर्विस टैक्स का दायरा लगातार बढ़ाया तब भाजपा के नेताओं ने बार-बार निन्दा की। इस बार सर्विस टैक्स में और सेवाओं को शामिल तो नहीं किया लेकिन टैक्स में वृद्धि कर दी। यानि अब हम बाजार में जो भी वस्तुएं खरीदेंगे उन सब पर 14 प्रतिशत सर्विस टैक्स देना होगा। एक ओर पीएम मोदी बार-बार आईटी क्षेत्र की दुहाई दे रहे हैं लेकिन वहीं जेटली ने इन्टरनेट को महंगा करने की घोषणा कर दी है। हम सब जानते हैं कि देश का युवा इन्टरनेट तकनीक पर बहुत अधिक निर्भर हो गया है। अब कम्प्यूटर और लेपटॉप में ही इन्टरनेट नहीं बल्कि मोबाइल फोन में भी इन्टरनेट की जरूरत है। युवाओं को अपने स्मार्ट फोन पर फेसबुक, वाट्सएप आदि चलाने के लिए इन्टरनेट की सुविधा लेना जरूरी है। इन्टरनेट की सुविधा उपलब्ध करवाने वाली कम्पनियां इतनी बेइमान है कि 2जी, 3जी और 4जी स्पीड का फण्डा लागू कर रखा है। एक उपभोक्ता न्यूनतम अपने मोबाइल फोन का 300 रुपए प्रतिमाह का शुल्क तो देता ही है। इसके साथ ही इन्टरनेट सुविधा के लिए भी कम से कम 200 से लेकर 500 रुपए प्रतिमाह तक चुकाता है। यानि जो युवा अपने स्मार्ट फोन पर इन्टरनेट का उपयोग करता है उसे अब 800 रुपए से लेकर 1500 रुपए तक प्रतिमाह शुल्क देना होगा। यानि एयरटेल, वोडाफोन, रिलायन्स, एयरटेल, टाटा डोकोमो आदि कम्पनियां मालामाल हो जाएंगी। समझ में नहीं आता कि जब पीएम मोदी एक ओर देश को वाई-फाई युक्त बनाना चाहते हैं तो दूसरी ओर आम व्यक्ति के काम आने वाली इन्टरनेट तकनीक को महंगा कर दिया गया है। भाजपा जब विपक्ष में थी तो उसके नेता आयकर सीमा को बढ़ाने की मांग करते थे। लेकिन इस बार जब भाजपा की सरकार को बजट प्रस्तुत करने का अवसर मिला तो आयकर सीमा को नहीं बढ़ाया गया। इससे प्रतीत होता है कि राजनेता की कथनी और करनी में अन्तर रहता ही है। बजट में केबल टीवी को भी महंगा कर दिया गया है। अब लोकल केबल ऑपरेटर तो शुल्क बढ़ाएगा ही साथ ही टाटा स्काई, रिलायन्स डीटीएच, विडियोकॉन जैसी कम्पनियां भी अपने शुल्क में बेतहाशा वृद्धि करेंगी। जिन उपभोक्ताओं के घरों पर डायरेक्ट टू होम कनेक्शन लगे हुए हैं उन्हें पता है कि यह कम्पनियां किस तरह से लूटमार करती हैं। एक माह का प्रस्ताव देकर तीन माह का शुल्क वसूल लेती है इसी प्रकार मोबाइल फोन वाली कम्पनीज भी प्रीपेड में जमा राशि को बेवजह काट लेती है। शर्मनाक बात तो यह है कि उपभोक्ताओं की कोई सुनवाई ही नहीं होती है। कॉल सेन्टर के निर्धारित नम्बर पर शिकायत सुनने के बजाय उपभोक्ता टेप के रटे रटाये भाषण ही सुनता रहता है। लघु उद्यमियों को उम्मीद थी कि बजट से कुछ राहत मिलेगी लेकिन एक भी घोषणा ऐसी नहीं हुई जिससे छोटे उद्योगों को राहत देने का काम हो। इसके विपरीत अडाणी, अम्बानी, टाटा, बिड़ला आदि उद्योगपतियों को कमाने के लिए बजट में अनेक प्रावधान किए गए हैं। एक ओर जब पेट्रोल और डीजल पर किसी भी प्रकार की सब्सीडी नहीं दी जा रही है तो फिर आम उपभोक्ता को सर्विस टैक्स बढ़ाकर डंडा क्यों मारा गया। इसी प्रकार कोयले की खानों को नीलामी के जरिए देने के बाद सरकार को जो दो लाख करोड़ से भी ज्यादा की आय हुई है उसका लाभ भी आम ्व्यक्ति को नहीं मिला है। इससे कोई दो राय नहीं कि पीएम मोदी ने उच्च स्तर पर जो नीतियां बनाई है। उसमें भ्रष्टाचार तो रूका है। आने वाले दिनों में तो सरकार को कई लाख करोड़ रुपए की आमदनी होगी। जेटली ने अपने बजट में कहा कि देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा दिया जाएगा जिसमें परिणाम आने वाले वर्षो में सामने आएंगे। देश के लोगों को फिलहाल पीएम मोदी औ जेटली के कथनों पर भरोसा करना चाहिए। मोदी सरकार ने शाम होते होते पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाकर आम उपभोक्ताओं पर हथौड़ा चला दिया है। पेट्रोल में 3 रुपए 18 पैसे और डीजल में 3 रुपए 9 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि की गई है।
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Friday 27 February 2015

दिल्ली में आप की सरकार बनवाने के बाद गायब हो गए राहुल गांधी

दिल्ली में आप की सरकार बनवाने के बाद गायब हो गए राहुल गांधी
कांग्रेस के बड़बोले नेता दिग्विजय सिंह की बात का अर्थ निकाला जाए तो कहा जा सकता है कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की सरकार बनवाने के बाद ही कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी अज्ञातवास में चले गए। दिग्विजय सिंह ने 27 फरवरी को 'आज तकÓ न्यूज चैनल को एक इंटरव्यू दिया। इस इंटरव्यू में सिंह ने कहा कि दिल्ली में आप ने जो किया वैसा ही राहुल गांधी कांग्रेस में करना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस के कुछ पुराने नेताओं ने करने नहीं दिया। सिंह ने यह भी कहा कि पूर्व में राहुल गांधी ने संगठन को मजबूत करने के लिए जो कार्यशालाएं आयोजित की थी। उनमें अरविंद केजरीवाल ने भी भाग लिया था। दिग्विजय सिंह के इस कथन से यह कहा जा सकता है कि केजरीवाल ने राहुल की कार्यशालाओं में जो सीखा, उसी के अनुरूप दिल्ली में संगठन खड़ा किया और भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस का भी सूपड़ा साफ कर दिया। चूंकि दिल्ली चुनाव में कांग्रेस की बुरी गत हुई। इसलिए राहुल गांधी सरकार बनने के बाद दिल्ली छोड़कर चले गए। अब राहुल गांधी दिग्विजय सिंह को भी नहीं मिल रहे हंै। दिग्विजय सिंह ने कहा कि राहुल गांधी को तत्काल प्रभाव से कांग्रेस का अध्यक्ष बनवा देना चाहिए। राहुल गांधी अपने नजरिए से कांग्रेस संगठन को मजबूत करना चाहते है। दिग्विजय सिंह के कथन में कितनी सच्चाई है यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन इस कथन से भाजपा का वह आरोप सही साबित हो रहा है, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली में कांग्रेस जानबूझकर चुनाव हारी है। कांग्रेस के केजरीवाल के साथ मिल जाने की वजह से ही 70 विधायकों में से भाजपा के मात्र 3 विधायक बने 67 विधायक आप पार्टी के है। राजनीति में यह एक तरह से चमत्कार ही हुआ है। अब अरविंद केजरीवाल को यह बताना होगा कि क्या कभी उन्होंने राहुल गांधी की कार्यशाला में भाग लिया? यहां पर सवाल भी उठता है कि आखिर कांग्रेस में वो कौन से नेता है जो राहुल गांधी के नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं। दिग्विजय सिंह के बयान के बाद क्या राहुल का विरोध करने वाले नेता सामने आएंगे।

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Thursday 26 February 2015

कांग्रेस का राज्य स्तरीय चिंतन शिविर अजमेर में क्यों

कांग्रेस का राज्य स्तरीय चिंतन शिविर अजमेर में क्यों
26 फरवरी को कांग्रेस का राज्य स्तरीय चिंतन शिविर अजमेर में हुआ। आमतौर पर ऐसे शिविर प्रदेश की राजधानी में ही होते हैं। लेकिन इस बार जयपुर की बजाए अजमेर में शिविर को आयोजित किया गया। सब जानते हैं कि अजमेर ही अब एकमात्र ऐसा शहर बचा है, जहां के नगर निगम के मेयर कांग्रेसी हैं। चूंकि शिविर पर भारी भरकम खर्च आता है, इसलिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने सोच समझ कर शिविर की जिम्मेमदारी मेयर कमल बाकोलिया पर डाल दी। बाकोलिया ने कांग्रेस का चिंतन शिविर एक शादी ब्याह वाले समारोह स्थल पर करवाया। चूंकि इस समारोह स्थल को नगर निगम ने पीपीपी मोड पर दे रखा है। इसलिए स्वाभाविक है कि समारोह स्थल पर कांग्रेसियों के स्वागत सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। दोपहर का भोजन भी शादी ब्याह वाले समारोह स्थल पर शान-ओ-शौकत के साथ करवाया गया। अजमेर नगर निगम की कार्य प्रणाली को लेकर कई बार पायलट का ध्यान आकर्षित किया गया था। पायलट को जो बातें बताई गई उन्हीं को ध्यान में रखते हुए मेयर बाकोलिया पर चिंतन शिविर की जिम्मेदारी डाली। शिविर के दौरान पायलट ने अपना दर्द भी बयां किया। पायलट ने कहा कि मैंने अजमेर जिले के लोगों के लिए विकास के अनेक कार्य करवाएं। लेकिन फिर भी गत लोकसभा के चुनाव में मुझे हार का सामना करना पड़ा। अब अजमेर के नागरिकों को वर्तमान सांसद सांवरलाल जाट के समक्ष ही अपनी समस्याओं को रखना चाहिए। अब जाट ही हवाई अड्डे का निर्माण करवाएंगे और अजमेर को स्मार्ट बनाएंगे। मैं तो अब अजमेर का प्रतिनिधि नहीं रहा। मीडिया वालों को भी यह नहीं लिखना चाहिए कि अजमेर मेरा गृह जिला है। शिविर की एक खास बात यह भी रही कि पूर्व सीएम अशोक गहलोत की पूरी तरह उपेक्षा की गई। न तो शिविर स्थल पर और न ही बैनर पोस्टर पर गहलोत का फोटो लगाया गया। उल्टे शिविर में पदाधिकारियों ने कहा कि कांग्रेस के शासन में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की वजह से हार का सामना करना पड़ा है। शिविर में जिस तरह से गहलोत की उपेक्षा की गई, उससे प्रतीत होता है कि कांग्रेस में आने वाला समय सचिन पायलट का ही है।

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स्मार्ट सिटी के लिए अभी तक भी नहीं आई गाइड लाइन

स्मार्ट सिटी के लिए अभी तक भी नहीं आई गाइड लाइन
अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए केन्द्र सरकार ने अमरीका की एक एजेंसी के साथ अनुबंध तो कर लिया है, लेकिन अजमेर स्मार्ट कैसे बनेगा, इसको लेकर अभी तक भी कोई गाइड लाइन प्राप्त नहीं हुई है। यह बात 26 फरवरी को अजमेर के डीसी धर्मेन्द्र भटनागर ने पत्रकारों को बताई। डीसी ने स्मार्ट सिटी पर चर्चा करने के लिए पत्रकारों को बुलाया था। लेकिन डीसी तब उलझ गए तब पत्रकारों ने स्मार्ट सिटी बनाने के तरीके के बारे में जानकारी चाही। वाद-विवाद के बाद भटनागर को यह स्वीकार करना पड़ा कि राज्य और केन्द्र सरकार से इस संबंध में कोई गाइड लाइन प्राप्त नहीं हुई है। इस पर जब पत्रकारों ने जानना चाहा कि बगैर गाइड लाइन के स्मार्ट सिटी को लेकर रोज-रोज बैठकें क्यों की जा रही हैं? तो डीसी ने कहा कि मैं अपने स्तर पर स्मार्ट सिटी के प्रति जनजागरण कर रहा हंू। सरकार की गाइड लाइन आने से पहले मैं अजमेर के नागरिकों को स्मार्ट बनने के लिए मानसिक रूप से तैयार कर रहा हंू। इस पर पत्रकारों ने अस्थाई अतिक्रमण हटाने और नियमित सफाई का मुद्दा रखा तो डीसी ने तत्काल कह दिया कि यह कार्य तो नगर निगम का है। असल में डीसी और जिला प्रशासन में ही तालमेल नहीं है। सरकार ने स्मार्ट सिटी के लिए जो नाममात्र की कमेटी बनाई उसका अध्यक्ष डीसी को बना तो दिया, लेकिन अधिकार कुछ भी नहीं दिए। प्रशासनिक व्यवस्था में सारे अधिकार जिला कलेक्टर के पास होते हैं। सच्चाई यह है कि डीसी भटनागर और कलेक्टर आरुषि मलिक के बीच तालमेल ही नहीं है। मलिक सीधे आईएएस बनी हैं, जबकि भटनागर आरएएस से प्रमोट होकर आईएएस बने हैं। सरकार कितना भी जोर लगा ले, लेकिन सीधे आईएएस बनने वाले कभी भी प्रमोटी आईएएस को सम्मान देते ही नहीं। डीसी भले ही कमेटी के अध्यक्ष बन गए हों, लेकिन प्रशासनिक व्यवस्था में वे जिला प्रशासन के अधिकारियों को सीधे निर्देश नहीं दे सकते। गाइड लाइन आ जाने के बाद भी यदि कलेक्टर और डीसी में तालमेल नहंीं हुआ तो अजमेर स्मार्ट बन ही नहीं सकता। जहां तक लोगों को जागरुक करने का सवाल है, तो संबंधित विभागों के अधिकारी और कर्मचारी ही शहर का सौंदर्य बिगाड़ते हैं। यातायात सुरक्षा सप्ताह में भी अस्थाई अतिक्रमण नहीं हटाने से जाहिर होता है कि जिला प्रशासन का सहयोग डीसी भटनागर को नहीं मिल रहा है। नगर निगम और प्रशासन की अनदेखी की वजह से ही अतिक्रमणों की बाढ़ सी आ गई है। प्रशासन के अधिकारियों को भी पता है कि भटनागर 5-6 माह में रिटायर होने वाले हैं,जबकि अजमेर की कलेक्टर आरुषि मलिक लम्बे समय तक आईएएस बनीं रहेंगी। सरकार को चाहिए कि पहले प्रशासनिक खींचतान को समाप्त करवाए।
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Wednesday 25 February 2015

सरकार बनने से पहले ही पीडीपी की मांगे पूरी

सरकार बनने से पहले ही पीडीपी की मांगे पूरी
जम्मू-कश्मीर में भाजपा और पीडीपी की सरकार बनना लगभग तय है। लेकिन सरकार बनने से पहले ही भाजपा पीडीपी की मांगें पूरी करने लगी है। चूंकि केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की ही सरकार है, इसलिए पीडीपी चाहती है कि सरकार बनने से पहले मांगें पूरी कर दी जाए। पीडीपी की मांग के मद्देनजर ही 25 फरवरी को केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री हरिभाई चौधरी ने राज्यसभा में लिखित में बयान दिया कि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 नहीं हटाई जाएगी। इसी प्रकार विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया कि भारत और पाकिस्तान के बीच विदेश सचिव स्तर की बैठक पर सहमति बन गई है। आने वाले दिनों में मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पीडीपी की अन्य मांगे भी पूरी कर देगी। भाजपा यह पहले ही मान चुकी है कि पीडीपी के संरक्षक मुफ्ती मोहम्मद सईद ही गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री होंगे। पीडीपी भाजपा की यह मांग पहले ही ठुकरा चुकी है कि 6 वर्ष के कार्यकाल में तीन वर्ष के लिए भाजपा का सीएम हो। यानि जम्मू-कश्मीर में भाजपा गठबंधन की सरकार तो बना रही है, लेकिन पीडीपी की शर्तों पर। पीडीपी ने भाजपा का स्तर इतना नीचे गिरा दिया है, जिसमें सरकार के गठन से पहले ही मांगे पूरी की जा रही है। असल में पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों को यह भरोसा दिलाना चाहती है कि भाजपा से गठबंधन से हानि नहीं राजनीतिक फायदा ज्यादा है। जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों को जो सुविधाएं और अधिकार कांग्रेस की गठबंधन सरकार में नहीं मिले वे अब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र की भाजपा सरकार देगी। सरकार के गठन के बाद महबूबा की आलोचना न हो, इसलिए पाकिस्तान से वार्ता और धारा 370 बनाए रखने पर सार्वजनिक सहमति करवा दी गई है। पीडीपी के साथ सरकार बनाने से भाजपा और देश को क्या मिलेगा, यह तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ही बता सकते हैं, लेकिन फिलहाल तो पीडीपी की ही स्थिति मजबूत हो रही है। पीएम मोदी को अब देश की जनता को यह बताना चाहिए कि किन करणों से पीडीपी की शर्तों को माना जा रहा है। क्या अब किसी चुनाव में भाजपा कश्मीर से धारा 370 हटाने का वायदा कर सकेगी? पूरा देश जानता है कि पीडीपी इस पक्ष में नहीं है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बना रहे। महबूबा मुफ्ती तो हमेशा से ही अलगाववादियों के साथ वार्ता की इच्छुक रही हैं। पीडीपी की यह सोच है कि कश्मीर समस्या का हल भारत और पाकिस्तान मिल कर निकाले। महबूबा अब कह सकती है कि उनकी सोच के अनुरूप ही मोदी सरकार ने पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव स्तर की वार्ता की घोषणा की है। यानि कश्मीर के मुद्दे पर एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता होगी।
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क्यों छिपाया जा रहा है राहुल गांधी को

क्यों छिपाया जा रहा है राहुल गांधी को
राहुल गांधी उस कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, जिसका इतिहास सवा सौ साल पुराना है। आजादी के बाद से अधिकांश समय कांग्रेस का ही शासन रहा। अब यदि ऐसी पार्टी के उपाध्यक्ष अचानक देश की राजनीति से गायब हो जाएं तो सवाल तो उठेंगे ही। 25 फरवरी को कांग्रेस की ओर से दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर भूमि अधिग्रहण बिल के विरोध में जो धरना दिया गया, उसमें भी राहुल गांधी नजर नहीं आए। इतना ही नहीं राहुल की माताजी और कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी भी धरना स्थल पर नहीं पहुंची। टीवी चैनलों पर सोनिया राहुल के धरना स्थल पर नहीं पहुंचने की खबरों के बीच ही कांग्रेस के एक नेता जगदीश शर्मा ने दावा किया कि राहुल गांधी उत्तराखंड में हैं। अपने इस दावे की पुष्टि के लिए शर्मा ने टीवी चैनलों को एक फोटो दिया, जिसमें राहुल गांधी के होने का दावा किया गया। हालांकि जगदीश शर्मा के इस दावे को दिल्ली  में बैठे कांग्रेस के नेताओं ने खारिज कर दिया। दिल्ली वाले नेताओं ने यह तो कहा कि राहुल गांधी उत्तराखंड में नहीं हैं, लेकिन यह नहीं बताया कि आखिर राहुल गांधी हैं कहां? जगदीश शर्मा का आरोप है कि दिल्ली में बैठे कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को थाइलैंड, बैंकॉक, दुबई आदि में बताकर राहुल गांधी की छवि को खराब कर रहे हैं। शर्मा ने सवाल उठाया कि आखिर राहुल गांधी इन देशों में क्यों जाएंगे? कांग्रेस के जो कार्यकर्ता यह नारा लगाते हैं कि देश का नेता कैसा हो, राहुल गांधी जैसा हो। क्या ऐसे नारे लगाने वाले कार्यकर्ताओं को अपने नेता के बारे में जानने का हक नहीं है। आखिर क्यों राहुल गांधी को रहस्यमयी व्यक्ति बनाया जा रहा है। जब राहुल गांधी यह कहते हैं कि उन्हें देश के गरीब आदमी की चिन्ता है, तो फिर राहुल गांधी ही बताए कि संसद का बजट सत्र शुरू होने  से पहले ही कहां चले गए? राहुल कांग्रेस के उपाध्यक्ष ही नहीं है बल्कि अमेठी के सांसद भी हैं। कम से कम अमेठी की जनता को तो यह पता होना चाहिए कि उनका सांसद कहां पर है। कोई माने या नहीं, लेकिन इतना जरूर है कि राहुल गांधी के गायब होने से सबसे ज्यादा दु:खी सोनिया गांधी हंै। सोनिया गांधी राहुल गांधी की मां भी है। सोनिया गांधी को यह अच्छी तरह पता है कि उनका बेटा कहां है, लेकिन सोनिया गांधी यह कभी नहीं चाहेंगी कि उनका बेटा राजनीति का मैदान छोड़कर अचानक चला जाए। राहुल गांधी को लेकर देश में जो रहस्यमयी माहौल बन रहा है उसका पटाक्षेप जल्द होना चाहिए।
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Tuesday 24 February 2015

संघ प्रमुख भागवत के बयान पर बवाल क्यों

संघ प्रमुख भागवत के बयान पर बवाल क्यों
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने राजस्थान के भरतपुर में धर्मांतरण को लेकर जो बयान दिया है, उस पर देशभर में बबेला हो रहा है। सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के नेताओं के विरोध से तो प्रतीत होता है कि जैसे कांग्रेस के घर में कोई हमला हो गया है। न्यूज चैनल और अखबार भी अपने नजरिए से भागवत के बयान की व्याख्या कर रहे हैं। कुछ चैनलों पर तो लाइव बहस भी शुरू हो गई है। सवाल उठता है कि आखिर भागवत ने ऐसा क्या कहा? भागवत ने कहा कि गरीब की सेवा में धर्मांतरण का भाव नहीं होना चाहिए। अपने इस बयान के साथ भागवत ने मदर टेरेसा का नाम भी जोड़ दिया। अब यदि मदर टेरेसा ने भारत में नि:स्वार्थ भावना से गरीब की सेवा की है तो फिर विरोध क्यों हो रहा है? भागवत ने अपने बयान में यह भी कहा है कि मदर टेरेसा ने अच्छी तरह गरीब की सेवा की है। इसमें कोई दो राय नहीं कि मदर टेरेसा और उनके बाद उनके अनुयायी देश में सेवा की भावना से शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में काम कर रहे है। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि देश के कई प्रांतों में और आदिवासी क्षेत्रों में गरीब वर्ग के लोगों ने बड़ी संख्या में ईसाई धर्म अपनाया है। भारत में आज भी सैंकड़ों ईसाई संस्थाए सक्रिय है, जो चमत्कार के नाम पर गरीब लोगों को ईसाई धर्म की ओर आकर्षित करती हैं। ऐसी बहुत सी संस्थाएं हंै, जिन्हें करोड़ों रुपया यूरोप के देशों से अनुदान के रूप में मिलता है। हम सब जानते हैं कि देशभर में ईसाई संस्थाओं द्वारा बड़े पैमाने पर शिक्षा और चिकित्सा के संस्थान चलाए जाते हैं। सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार ने पूर्व में जब प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं के लिए आरटीई कानून बनाया तो इस कानून के दायरे से ईसाई शिक्षण संस्थाओं को बाहर रखा गया। यही वजह है कि आज देशभर में ईसाई संस्थाओं की शिक्षण संस्थाओं पर सरकार का कोई अंकुश नहीं है। संस्थान के संचालक अपनी मर्जी से फीस निर्धारित करते हैं और प्रवेश के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है। समझ में नहीं आता कि कांग्रेस के नेता धर्मांतरण के मुद्दे पर हर बार क्यों जहर उगलते हैं। मीडिया और कांग्रेस के नेताओं को यह समझना चाहिए कि यदि सातवीं शताब्दी में अफगानिस्तान और अरब देशों के लुटेरे भारत में नहीं आते तो यहां हिन्दू और सिंधु संस्कृति ही कायम रहती। चूंकि 800 वर्षों तक इस देश पर मुगल बादशाहों का शासन रहा, इसलिए आजादी के समय पाकिस्तान भी बन गया। चूंकि 200 वर्षों तक अंग्रेजों ने शासन किया, इसलिए भारत में ईसाई धर्म को मानने वाले भी जन्म लेते रहे। देखा जाए तो भारत में ताकत के बल पर धर्मांतरण हुआ है। इतिहास गवाह है कि गुलामी के दौर में भारत के लोगों पर कितने अत्याचार हुए हैं। आज भी धर्मनिरपेक्षता की आड़ में धर्म के आधार पर भेदभाव हो रहा है। यदि संघ प्रमुख भागवत ने यह कहा कि गरीब की सेवा में धर्मांतरण का भाव नहीं होना चाहिए, तो इसमें क्या बुराई है? जिस तरह से भारत के अंदर और आसपास के देशों में आतंकवाद पनप रहा है, उससे विरोध करने वालों को कुछ तो सबक लेना चाहिए। हम यह तो देखे कि आखिर भारतीय संस्कृति को कितना नुकसान पहुंचाया गया है। देश की एकता और अखंडता की खातिर राजनीति से ऊपर उठकर सोचना चाहिए। जहां तक भाजपा का सवाल है तो वह भी कांग्रेस की तरह एक राजनीतिक दल है और उसका उद्देश्य भी येनकेन प्रकारेण सत्ता हासिल करना है। इसलिए जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ मिलकर भाजपा सरकार बना रही है। अच्छा हो कि भागवत के बयान को सेवा की भावना से जोड़कर ही देखा जाए।
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Monday 23 February 2015

राहुल गांधी अपनी माता जी का ख्याल रखें

राहुल गांधी अपनी माता जी का ख्याल रखें
श्रीमती सोनिया गांधी सिर्फ कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष ही नहीं है, बल्कि वह पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी की माता जी भी है। इस नाते राहुल गांधी को ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिसकी वजह से माता जी का दिल दुखे। जहां तक सोनिया गांधी के दु:खों का सवाल है तो पति राजीव गांधी की हत्या के समय ही उन्हें जीवन के सबसे बड़े दु:ख का सामना करना पड़ा। फिलहाल राजनीति में हार जीत की बात छोड़ भी दी जाए तो यह दु:ख कम नहीं है कि सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी ने 45 वर्ष की उम्र में भी अभी तक विवाह नहीं किया है। पति की मौत के बाद यदि 45 साल की उम्र का इकलौता बेटा विवाह न करें तो दु:खों का हाल माता ही जान सकती है। 23 फरवरी को संसद के बजट सत्र के दौरान जिस प्रकार राहुल गांधी तथाकथित छुट्टी पर चले गए, यह कृत्य सोनिया गांधी के दु:खों को और भी बढ़ाने वाला है। कांग्रेस संगठन को लेकर राहुल गांधी को कोई ऐतराज हो सकता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह अपनी माताजी के दु:खों को और बढ़ाएं। राहुल गांधी को यह समझना चाहिए कि कांग्रेस की अध्यक्ष से पहले सोनिया गांधी उनकी माताजी है। राहुल संसद सत्र के दौरान जिस प्रकार नाराज होकर चले गए, उससे सोनिया गांधी को ही सबसे ज्यादा परेशानी होगी। अच्छा होता कि राहुल गांधी पूरी ऊर्जा के साथ सरकार के जनविरोधी नीतियों का विरोध करते। हो सकता है कि मुद्दों पर राहुल और सोनिया में मतभेद हो, लेकिन इन मतभेदों को आपस में बैठकर सुलझाना चाहिए। राहुल गांधी यह अच्छी तरह जानते है कि उनके अवकाश पर आने से मोटी चमड़ी वाले कांग्रेसी नेताओं को कोई फर्क नहीं पडऩे वाला। जो भी परेशानी होगी वह उनकी माताजी को ही झेलनी पड़ेगी। यदि कांग्रेस के नेताओं को शर्म ही होती तो दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीतने पर अफसोस प्रकट करते। चूंकि सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी को ही कांग्रेस की बागडोर संभालनी है, इसलिए इस प्रकार नाराज नहीं होना चाहिए।
(एस.पी.मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511