Tuesday 10 February 2015

क्या अब मोदी के खिलाफ भाजपा में बगावत होगी

क्या अब मोदी के खिलाफ भाजपा में बगावत होगी
दिल्ली के विधानसभा चुनाव में जिस तरह भाजपा की हार हुई है उससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या अब भाजपा में पीएम नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बगावत होगी? दस फरवरी को परिणाम के तुरन्त बाद ही भाजपा के सहयोगी शिवसेना के प्रमुख उदव ठाकरे ने मुम्बई से बयान दे दिया कि दिल्ली की हार नरेन्द्र मोदी की हार है। ठाकरे ने यहां तक कहा कि यदि अरविन्द केजरीवाल शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित करते है तो वे जरूर भाग लेंगे। स्वाभाविक है कि ठाकरे ने जो बयान दिया वह उनकी नाराजगी को प्रदर्शित करता है। सब जानते है कि महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव और फिर बाद में मुख्यमंत्री पद के मौके पर भाजपा ने शिवसेना को सार्वजनिक तौर पर अपमानित किया था। तब भी यह भी आरोप लगा कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने जो रणनीति बनाई उसकी वजह से ही शिवसेना के साथ गठबंधन नहीं किया गया। आज सहयोगी दल ने मोदी के खिलाफ जुबान खोली है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में भाजपा के अन्दर भी बगावत के सुर उठने लगे। गत 14 माह में यह पहला अवसर रहा जब भाजपा को दिल्ली में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जब भाजपा आगे बढऩे लगी तो सबसे पहले राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में भाजपा को सफलता मिली। इसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला और फिर हाल ही में हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों में भी भाजपा को जीत हासिल लेकिन दिल्ली चुनाव में भाजपा की जीत पर बे्रक लग गया है। राजनैतिक दृष्टि से दिल्ली विधानसभा का चुनाव केन्द्र की सरकार पर भले ही कोई बड़ा महत्व न डाल सके लेकिन जिस तरह से नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने दिल्ली में ताकत झोंकी उससे जाहिर है कि मतदाताओं ने मोदी और शाह की रणनीति को विफल कर दिया है। इन चुनावों में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा को भी भुनाने की ेकोशिश की गई। पीएम मोदी ने अपनी सभाओं में ओबामा की यात्रा का उल्लेख भी किया लेकिन ओबामा भी भाजपा को नहीं जितवा सके। दिल्ली चुनावों का असर बिहार और पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों पर भी पड़ेगा। लोकसभा चुनाव के बाद यह माना जाने लगा था कि फिलहाल नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती है, लेकिन केजरीवाल ने जिस प्रकार मोदी के नाक के नीचे हलचल कर दी उससे अब अन्य राजनैतिक दलों को भी यह लगने लगा है कि यदि संगठित होकर चुनाव लड़ा जाए तो परिणाम को अपने पक्ष में किया जा सकता है। जिन राज्यों में भाजपा की सरकारे है वहां भी भाजपा के कार्यकर्ता संतुष्ट नहीं है। यही वजह है कि दिल्ली के परिणाम के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया थी कि अब बड़े नेताओं को सबक मिल गया है। पीएम मोदी को अब अपने उस बयान का भी जवाब देना होगा जो उन्होंने दिल्ली चुनाव को अपने नसीब से जोड़ा था। मोदी अब यह बताए कि 70 सदस्यीय विधानसभा में मात्र 3 भाजपा विधायकों के जीतने पर कौन बदनसीब है। अरविन्द केजरीवाल की यह जीत इसलिए भी मायने रखती है कि गत लोकसभा चुनाव में आप का बहुत ही बुरा प्रदर्शन रहा, लेकिन मात्र 9 माह में केजरीवाल ने जिस तरह अपनी पार्टी को दिल्ली में खड़ा किया वह काबिले तारीफ है। गत लोकसभा चुनाव में भाजपा को दिल्ली की 60 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी लेकिन मात्र 9 माह में भाजपा को 67 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। लोकसभा का चुनाव जीतने के लिए मोदी ने स्वयं को भले ही चाय वाला कहा हो लेकिन पीएम बनने के बाद मोदी ने अपनी छवि को आम आदमी से कोसों दूर कर दिया। मोदी जिस प्रकार बार-बार अम्बानी और अडाणी जैसे उद्योगपतियों के साथ नजर आ्रए ्रउससे ऐसा लगा कि मोदी अपनी सरकार को कारपोरेट की तरह चला रहे है। देखना होगा कि मोदी और भाजपा दिल्ली की हार के सदमे से किस प्रकार बाहर निकलती है। अब चूंकि मोदी और शाह की रणनीति फेल हो गई है इसलिए हर आलोचक अपनी राय प्रकट करेगा। इस राय से भी मोदी और शाह कितने विचलित होते हैं यह भी देखना होगा। इसके साथ ही केजरीवाल के लिए भी जिम्मेदारियों की चुनौती है। चुनाव में जो वायदे किए उन्हें पूरा करना आसान नहीं होगा। परिणाम के बाद केजरीवाल ने कहा भी कि मैं अकेला कुछ भी नहीं कर सकता हूं। यदि दिल्ली की जनता साथ देगी तभी वायदों को पूरा किया जा सकता है। यह बात अलग है कि चुनाव प्रचार के दौरान केजरीवाल ने कहा था कि पूर्ण बहुमत से सरकार बनाओ तो मैं सभी समस्याओं का समाधान कर दूंगा। केजरीवाल ने भले ही दिल्ली में भाजपा  और कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया हो लेकिन मुख्यमंंत्री का पद चुनौती भरा है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो उसे गम से ज्यादा खुशी हो रही है। कांग्रेस की भले ही एक भी सीट न आई हो लेकिन भाजपा भी तो मात्र 3 सीट ही जीत पाई है। जब भाजपा को 70 में से 3 सीट मिली है तो फिर कांग्रेस को तो एक भी सीट की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। दिल्ली चुनाव में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भी व्यक्तिगत झटका लगा है। राष्ट्रपति की बेटी शमिष्ठा मुखर्जी भी कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव हार गई है। जब राष्ट्रपति की बेटी चुनाव हार गई तो किरण बेदी की हार कोई मायने नहीं रखती है। यानि केजरीवाल की आंधी में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि सभी उड़ गए।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

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