Friday 20 February 2015

घर परिवार में कैसे रहते हैं आप के बच्चे

घर परिवार में कैसे रहते हैं आप के बच्चे
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अजमेर की भक्तिधाम शाखा के स्वयं सेवकों का 15 फरवरी को वार्षिक समारोह माकड़वाली रोड स्थित भक्तिधाम के निकट आयोजित किया गया। समारोह में मुझे मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया है। स्वयं सेवकों के विभिन्न शारीरिक प्रदर्शन के बाद संघ की परम्परा के अनुरूप मुझे भी बोलने का अवसर दिया गया। चूंकि अधिकांश स्वयं सेवक बालक और युवा थे, इसलिए मेरा संबोधन भी बच्चों तक ही सीमित रहा। संबोधन के साथ ही मैंने सवाल रखा कि घर परिवार में बच्चे किस प्रकार रहते हैं? यह सवाल भले ही साधारण सा लगे, लेकिन इस सवाल पर ही आज सम्पूर्ण समाज की नींव टिकी हुई है। चाहे कोई किसी भी धर्म का हो, लेकिन घर परिवार को सबसे पहले प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अब टीवी और उपभोक्तावादी संस्कृति पनम रही है, इसलिए उच्च वर्ग ही नहीं मध्यमवर्ग के परिवारों में भी मम्मी-डेड का रूम अलग होता है और स्टडी रूम के नाम पर लड़के और लड़की को भी अलग-अलग सुलाया जाता है। जिन परिवारों में बच्चों की मौजूदगी में उनके मम्मी-डेड अपने डबल बैड पर सोते हैं, उन परिवारों के बच्चों की देखभाल ठीक प्रकार से नहीं हो सकती है। मैंने कहा होना यह चाहिए कि लड़की अपनी माताजी और लड़का अपने पिताजी के साथ सोए। जब बच्चे उम्र के साथ बढ़ते हैं, तो उनकी कई समस्याएं अपने आप उत्पन्न हो जाती है। एक लड़की अपनी समस्याओं को अपनी माताजी से ही शेयर करती है। इसी प्रकार लड़का भी अपने पिता को ही दिनभर की बातें बताता है, लेकिन यह तभी संभव है, जब पिता अपने पुत्र को और माता अपनी पुत्री को साथ लेकर सोए। जिस तरह से समाज में तेजी से बदलाव हो रहा है, उससे एक पिता को अपने पुत्र और माता को अपनी पुत्री को दोस्त समझना चाहिए। मैंने स्वयं सेवकों से कहा कि भले ही मेरी यह बाते रुढ़ीवादी लगें, लेकिन यदि इन बातों पर अमल किया जाए तो हम टीवी और उपभोक्तवादी संस्कृति का मुकाबला कर सकते हैं। अब मॉम-डेड के बेडरूम में अपना टीवी और बच्चें के स्टडी रूम में इंटरनेट युक्त लेपटॉप होने लगा है। यह स्थिति सरासर घर परिवार को कमजोर ही नहीं बल्कि नष्ट करने वाली है। परिवार में सिर्फ एक टीवी होना चाहिए और वह भी ऐसे स्थान पर हो, जहां परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर देख सकें। ऐसा न हो कि मम्मी-डेडी बंद कमरे में कलर्स चैनल के गाली-गलौज वाले बिगबॉस जैसे सीरियल देखे और जवान होती लड़की और लड़का अपने-अपने स्टडी रूम में इंटरनेट पर स्वतंत्र विचरण करें। घर परिवार के मुखिया की यह जिम्मेदारी है कि वे टीवी पर ऐसे ही कार्यक्रम देखे जो परिवार की मर्यादा के अनुकूल हो। आमतौर पर संघ को भारतीय संस्कृति के अनुरूप चलने वाला संगठन माना जाता है और यह उम्मीद भी की जाती है कि उसके स्वयं सेवक घर परिवार से लेकर अपने कामकाजी स्थल तक अच्छा आचरण ही करेंगे, लेकिन यह भी सही है कि टीवी और उपभोक्तावादी संस्कृति की वजह से समाज का वातवरण प्रदूषित होता जा रहा है। स्टडी के नाम पर महानगरों में रहने वाले लड़के-लड़की जिस प्रकार लीव रिलेशनशिप में जीवन में व्यतीत कर रहे हैं, उसकी वजह से भारतीय संस्कृति का सत्यानाश हो रहा है। माता-पिता और समाज के दबाव की वजह से विवाह तो हो रहे हैं, लेकिन तलाक की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही है। समारोह में वरिष्ठ स्वयं सेवक प्रदीप गोयल ने भी अपेन विचार रखते हुए कहा कि स्वयं सेवक को एक अच्छा समाज भी बनाना है, जिसमें सभी लोग भाईचारे के साथ रह सके। गोयल ने संघ की गतिविधियों पर भी प्रकाश डाला।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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