Monday 16 February 2015

तो क्या सीमा पर हार गया पाकिस्तान

तो क्या सीमा पर हार गया पाकिस्तान
16 फरवरी के दैनिक भास्कर के प्रथम पृष्ठ पर जो खबर प्रकाशित हुई उसका शीर्ष था 'क्रीज फायरÓ तथा राजस्थान पत्रिका के प्रथम पृष्ठ की ही मुख्य खबर का शीर्षक था 'दुश्मन के छक्के छुड़ा दें, हम इंडिया वालेÓ। ऐसी ही शीर्षक देश के प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों में देखने को मिले। यह खबर भारत और पाकिस्तान के मध्य खेले गए क्रिकेट मैच को लेकर थी। 15 फरवरी को हुए मैच में भारत ने पाकिस्तान को खेले के मैदान पर हराया था, लेकिन मीडिया ने ऐसा प्रचारित किया जैसे सीमा पर भारत ने पाकिस्तान को हरा दिया हो। एक ओर बार-बार यह कहा जाता है कि खेल को खेल की भावना से खेला जाना चाहिए। इसमें हार-जीत कोई मायने नहीं रखती है, लेकिन इसे दुर्भाग्य पूर्ण ही कहा जाएगा कि जब कभी क्रिकेट का मैच भारत और पाकिस्तान के बीच होता है, तो दोनों देशों में बहुत ही नाजुक हालात हो जाते हैं। टीवी चैनल मैच के दो दिन पहले से ही पूरे देश के हालात बिागड़कर रख देते हैं। दोनों देशों में ऐसा माहौल कर दिया जाता है जैसे सीमा पर युद्ध हो रहा हो। 15 फरवरी को जब पाकिस्तान हारा तो पाकिस्तान के कई शहरों में गुस्से में लोगों ने अपने टीवी फोड़ डाले, वहीं भारत में आतिशबाजी की गई। मीडिया को यह समझना चाहिए कि पाकिस्तान एक मुस्लिम राष्ट्र है और भारत धर्मनिरपेक्ष। भारत में सभी धर्मों के लोग अपने-अपने धर्म के अनुरूप रहते हैं। तनावपूर्ण हालात में पाकिस्तान में भले ही कुछ भी न हो, लेकिन भारत के हालात बिगड़ सकते हैं। कई बार क्रिकेट मैच को लेकर भारत में हालात बिगड़े भी हैं। ऐसे मौके आए हैं, जब पाकिस्तान की जीत पर भारत में आतिशबाजी भी की थी। एक ओर हम भारत की टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा और पाकिस्तान के क्रिकेटर शोएब मलिक के निकाह को दोनों देशों के संबंध सुधारने वाला बताते हैं तो दूसरी ओर पाकिस्तान की हार पर भारत में आतिशबाजी की निंदा की है। असल में हो यह रहा है कि टीवी चैनलों के दफ्तरों में बैठकर स्वयं को हथियार मानने वाले लोग भारत की जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं होते है। कोई माने या नहीं, लेकिन ग्राउंड जीरो पर भारत में हालात बेहद नाजुक हैं और इन नाजुक हालात में क्रिकेट मैच का परिणाम आग में घी डालने का काम करता है। क्या हमारा मीडिया देश में बेवजह साम्प्रदायिक तनाव करवा रहा है? आखिर क्यों भारत-पाक के मैच को ही इतना महत्त्व दिया जाता है? मैच तो हम इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका आदि से भी खेलते हैं। तब उसके परिणाम इतने प्रभावित नहीं करते। अखबार अपनी पाठक संख्या और चैनल अपनी टीआरपी के चक्कर में देश का नुकसान कर रहे हैं। समझ में नहीं आता कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और पीएम नरेन्द्र मोदी ने भी विश्वकप के पहले ही मैच के परिणाम पर भारतीय टीम को किस नजरिए से बधाई दे दी? क्या ऐसी बधाई अन्य देशों के साथ जीतने पर भी दी जाएगी? क्या राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी उस माहौल के पक्षधर हैं जो भारत-पाक के मैच पर मीडिया द्वारा तैयार किया जाता है? अच्छा होता कि राष्ट्रपति और पीएम विश्वकप जीतने पर भारत की टीम को बधाई देते। ऐसा प्रतीत होता है कि राष्ट्रपति और पीएम भी खेल के मैदान की जीत को सीमा की जीत मान रहे हंै।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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