Wednesday 15 April 2015

आखिर क्या चाहते है कैलाश मेघवाल और अर्जुन मेघवाल

राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने 14 अप्रैल को झुंझुनूं में अम्बेडकर जयंती के एक समारोह में कहा कि अनुसूचित जाति  के डॉक्टर से सवर्ण जाति के लोग इलाज नहीं करवाते। यहां तक कि एससी के अधिकारी की सीआर बिगडऩे की भावना रखी जाती है। इसी प्रकार लोकसभा में भाजपा सांसद दल के मुख्य सचेतक और बीकानेर के सांसद अर्जुन मेघवाल ने 14 अप्रैल को ही बीकानेर में अम्बेडकर जयंती के समारोह में कहा कि सवर्ण जाति को आज भी एससी के विधायक सांसद, मंत्री, अधिकारी पचते नहीं है, चूंकि दोनों समारोह अम्बेडकर जयंती पर आयोजित थे, इसलिए जब इन दोनों भाजपा नेताओं ने यह बातें कही तो उपस्थित लोगों ने जोरदार समर्थन किया। समझ में नहीं आता कि इन दोनों मेघवालों ने किस नजरिए से ऐसी बात कहीं हंै। पहले बात कैलाश मेघवाल की। सब जानते है कि मेघवाल वकालत के पेशे से राजनीति में आए हैं। कोई पांच सात वर्ष का कार्यकाल छोड़ दें तो मेघवाल हमेशा ताकत में रहे। कभी विधायक कभी सांसद तो कभी केन्द्रीय मंत्री। आज भी मेघवाल राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष हैं। विधानसभा में मेघवाल के अधिकारों को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। मेघवाल जब भी चुनाव लड़ते हैं, तो क्या उन्हें सवर्ण जाति के मतदाता वोट नहीं देते? यदि सवर्ण जाति के मतदाता वोट नहीं देते तो फिर मेघवाल कैसे चुनाव जीतते? अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केन्द्र में सरकार बनी तो मेघवाल को केन्द्रीय मंत्री बनाया गया। राजस्थान में जब भैरोसिंह शेखावत मुख्यमंत्री थे तो मेघवाल गृहमंत्री बने। इसके अलावा भी राजस्थान में मेघवाल कई बार मंत्री रह चुके हैं। वसुंधरा राजे ने तो अपने दूसरे कार्यकाल में मेघवाल को तब विधानसभा का अध्यक्ष बनाया है, जब मेघवाल ने वसुंधरा राजे पर 33 हजार करोड़ रुपए का घोटाला करने का आरोप लगा दिया था। जब कैलाश मेघवाल यह कहते हैं कि एससी के अफसरों की सीआर बिगाडऩे की भावना रखी जाती है तब मेघवाल को यह भी बताना चाहिए कि 33 हजार करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगने के बाद कैसे पलट गए? इस समय तो कैलाश मेघवाल एक संवैधानिक पद पर बैठे हैं, इस पद पर बैठने के बाद तो उनके लिए सभी एक समान है, लेकिन 14 अप्रैल के ताजा बयान से यह प्रतीत होता है कि उनके मन में सवर्णो के प्रति नाराजगी है। ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने के बाद किस प्रकार न्याय करेंगें। यह मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ही बता सकती हंै। कैलाश मेघवाल माने या नहीं, लेकिन यह सच्चाई है कि यदि वसुंधरा राजे की मेहरबानी न हो तो कैलाश मेघवाल विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर एक मिनट भी टिके नहीं रह सकते।
अब बात अर्जुन मेघवाल की। अर्जुन मेघवाल अनुसूचित जाति के उन भाग्यशाली व्यक्तियों में शामिल है, जिन्होंने 36 वर्ष तक आईएएस की नौकरी कर सभी प्रकार के सुख भोंगे और अब लगातार दूसरी बार बीकानेर से भाजपा के सांसद हैं। यदि निहालचंद मेघवाल को मंत्री नहीं बनाया जाता तो अर्जुन मेघवाल ही केन्द्र में मंत्री होते। अर्जुन मेघवाल की काबिलियत को देखते हुए ही उन्हें लोकसभा में भाजपा संसदीय दल का मुख्य सचेतक बनाया गया है। यह माना कि अर्जुन मेघवाल ने अपनी काबिलियत से 36 साल तक आईएएस की नौकरी की और फिर लगातार दूसरी बार सांसद का चुनाव जीता। क्या सवर्ण जाति के वोटों के बगैर मेघवाल बीकानेर से सांसद बन सकते हैं? यदि बीकानेर के सवर्णोंको मेघवाल पचते नहीं तो फिर पहले बीकानेर में ही कलेक्टर और फिर सांसद कैसे रहते? अर्जुन मेघवाल ने जो बात कही है, वह एक तरह से बीकानेर के मतदाताओं का अपमान है, यह कहा जाता है कि कोई भी जनप्रतिनिधि किसी एक समुदाय का नहीं होता बल्कि सम्पूर्ण विधानसभा अथवा लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधि होता है। ऐसे में अर्जुन मेघवाल अपने आप को सिर्फ अनुसूचित जाति तक ही सीमित क्यों रखना चाहते हैं।
कैलाश मेघवाल और अर्जुन मेघवाल आज जिस मजबूत स्थिति में खड़े हैं, उसमें क्या उन्हें कोई एससी, एसटी और पिछड़े वर्ग के लोगों की मदद करने से रोक रहा है? यह दोनों भाजपा नेता अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर पिछड़े वर्गों के लोगों की चाहे जितनी मदद कर सकते हैं। सवर्णों की आलोचना करने की बजाए यदि दोनों मेघवाल पिछले वर्ग के लोगों की मदद करते तो ज्यादा अच्छा होता। हकीकत तो यह है कि सत्ता में आने के बाद यह दोनों मेघवाल उन्हीं सवर्ण जाति के लोगों के गोद में बैठ जाते हैं, जो मालामाल होते हैं। कैलाश मेघवाल और मार्बल किंग अशोक पाटनी के रिश्ते किसी से भी छिपे नहीं है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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