Wednesday 22 April 2015

केजरीवाल की रैली में किसान की खुदकुशी और निर्वस्त्र हो गई राजनीति

22 अप्रैल को दिल्ली के जंतर-मंतर पर जब आम आदमी पार्टी की किसान रैली हो रही थी, तभी राजस्थान के दौसा जिले के किसान गजेन्द्र सिंह राजपूत ने एक पेड़ से लटकर खुदकुशी कर ली, जिस पेड़ पर गजेन्द्र ने खुदकुशी की, उसके ठीक सामने रैली का मंच था। जिस पर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और आप के अन्य नेता बैठे हुए थे। ऐसा नहीं कि गजेन्द्र ने अचानक पेड़ पर फंदा लगाया और लटक गया। गजेन्द्र जिस कपड़े को लेकर पेड़ पर चढ़ा, उसे पहले पेड़ और अपने गले में बांधा और फिर अपनी खराब हुई फसल के बारे में चिल्ला-चिल्ला कर जानकारी दी। उधर सामने मंच पर आप के नेता किसानों के प्रति हमदर्दी जता रहे थे, इधर तो पेड़ पर गजेन्द्र सिंह की खुदकुशी को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया गया। शर्मनाक बात तो यह है कि रैली में बड़ी संख्या में पुलिस के जवान और अधिकारी भी मौजूद थे। इन सभी लोगों के सामने गजेन्द्र सिंह ने अपनी पीड़ा के बाद खुदकुशी की। गजेन्द्र जब पेड़ पर लटक गया, तब आप के कुछ कार्यकर्ता पेड़ पर चढ़े और गजेन्द्र को पेड़ से ही नीचे पटक दिया। हालांकि गजेन्द्र की पेड़ पर ही मौत हो गई थी। गजेन्द्र ने जिस तरह किसान रैली में खुदकुशी की, उससे भारतीय राजनीति निर्वस्त्र हो गई है। चूंकि मृतक किसान राजस्थान के दौसा जिले का रहने वाला है, इसलिए राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने भी बयान दिया है। पायलट का आरोप रहा कि यदि आप के नेता रैली को रोककर गजेन्द्र को बचाने का प्रयास करते तो गजेन्द्र की जान बचाई जा सकती थी, लेकिन आप के नेता लगातार राजनीति करते रहे। खुदकुशी के बाद भी डेढ़ घंटे तक अरविंद केजरीवाल और अन्य नेता भाषण देते रहे। यानि इन नेताओं को एक किसान की मौत का कोई गम नहीं था, अब केजरीवाल से लेकर राहुल गांधी और बीजेपी के बड़े नेता भी अस्पताल में जाकर गजेन्द्र सिंह की लाश को देख रहे हैं। गजेन्द्र सिंह ने भले ही दिल्ली में जाकर खुदकुशी की, लेकिन गजेन्द्र राजस्थान के दौसा का रहने वाला है। गजेन्द्र ने खुदकुशी से पहले जो नोट लिखा है, उसमें कहा कि हाल ही  में ओलवृष्टि और बेमौसम बरसात की वजह से फसल खराब हो गई, उसके घर में अब खाने को कुछ भी नहीं है। इसलिए वह मौत को गले लगा रहा है। सवाल उठता है कि क्या गजेन्द्र की मौत के लिए राजस्थान की भाजपा सरकार जिम्मेदार नहीं है? सीएम वसुंधसरा राजे बार-बार यह दावा कर ही हैं कि उन्होंने पीडि़त किसानों को मुआवजा दिलवा दिया है, जबकि गजेन्द्र की खुदकुशी यह बताती है कि आम किसान को मुआवजा नहीं मिला है। किसान को मुआवजा मिला या नहीं, इसे देखने की फुर्सत वसुंधरा राजे के पास नहीं है। प्रदेश में जब ओलवृष्टि और बरसात से किसान त्राहि-त्राहि कर रहा था, तब सीएम साहिबा विदेशी निवेश के लिए जापान चली गई। कोई दस दिन की जापान और दिल्ली यात्रा के बाद जयपुर लौटी तो उद्योगपतियों से ही मिलने का सिलसिला जारी रखा। इन दिनों भी सीएम साहिबा कोलकाता में पश्चिम बंगाल के उद्योगपतियों से ही मुलाकात कर रही हैं। इसे राजनीति का निर्वस्त्र होना ही कहा जाएगा कि जब प्रदेश का किसान खुदकुशी कर रहा है, तब सीएम साहिबा उद्योगपतियों को बुलानो में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। आखिर उद्योग लगाने के लिए किसानों की ही जमीन उद्योगपतियों को दी जाएगी। अब गजेन्द्र की मौत के लिए एक जांच कमेटी का गठन भी किया गया है, लेकिन इस जांच के दायरे में जिम्मेदार राजनेताओं को शामिल नहीं किया गया है। यदि राजनीति किसान की हमदर्द के लिए होती तो गजेन्द्र सिंह को किसान रैली में ही खुदकुशी नहीं करनी पड़ती।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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