Saturday 11 April 2015

पंडितों को कश्मीर में बसाने के लिए मुसलमान आगे आए

पंडितों को कश्मीर में बसाने के लिए मुसलमान आगे आए
कोई चार लाख कश्मीरी पंडित पिछले कई वर्षों से दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। बच्चे, महिलाएं, बूढ़े आदि खानाबदोश की जिन्दगी जीने को मजबूर हैं। जम्मू कश्मीर में पिछले दिनों जब भाजपा और पीडीपी की गठबंधन की सरकार बनी थी, तब उम्मीद जगी कि कश्मीरी पंडितों की घर वापसी हो जाएगी, लेकिन घर वापसी को लेकर जो कुछ कश्मीर में हो रहा है, उससे यह नहीं लगता कि राजनीति से जुड़े लोग पंडितों को पुन: कश्मीर में बसा पाएंगे। सब जानते हैं कि कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के अल्पसंख्यक हो जाने पर ही उन्हें मार-मार कर कश्मीर से बाहर खदेड़ दिया गया। जब पूरे देश में धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देकर मुसलमान और ईसाई भी हिन्दुओं के साथ अमन चैन से रहते हैं, तब यह सवाल उठता है कि कश्मीर में बहुसंख्यक मुसलमानों के बीच अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडित क्यों नहीं रह सकते? क्या यह देश के आम मुसलमान की जिम्मेदारी नहीं है कि वे कश्मीरी पंडितों को वापस से कश्मीर में बसाए। जब कश्मीर में कश्मीरी पंडित मुसलमानों के साथ अमन चैन के साथ रहेंगे, तभी धर्म निरपेक्षता की बात मजबूत होगी। आईएस, तालिबान, लश्कर ए तोएबा, बोकोरहम जैसे खूंखार आतंकवादी जिस तरह से मुस्लिम देशों में हालात बिगाड़ रहे हैं उसमें यदि कश्मीर में मुसलमानों ने कश्मीरी पंडितों को अपने साथ नहीं रखा तो आने वाले दिनों में सम्पूर्ण भारत वर्ष में हालात बिगड़ेंगे। तब न तो हिन्दू सुरक्षित रहेगा और न भारतीय कहे जाने वाले मुसलमान।
मुस्लिम देशों में आतंकवादी जिस प्रकार मुसलमानों को ही मौत के घाट उतार रहे हैं, उससे भारत में रहने वाले मुसलमानों को सावचेत हो जाना चाहिए। छोटी-छोटी बातों को लेकर जिस प्रकार देश में साम्प्रदायिक उन्माद हो जाता है, उसे रोकने की सख्त जरुरत है। आतंकवादियों का अपना एजेंडा है, उनहें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी बंदूक के सामने खड़ा होने वाला हिन्दू है या मुसलमान। भारत में कुछ मुस्लिम नेता हिन्दू कट्टरपंथ की आड़ लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा पर तीखे हमले करते हैं। उन्हें इस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए कि सूफी संतों की दरगाहों और मस्जिदों में बड़ी संख्या में हिन्दू सिर झुकाते हैं। यदि हिन्दू कट्टरवाद होता तो क्या करोड़ों हिन्दू अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह और दिल्ली में निजामुद्दीन की दरगाह में जियारत के लिए जाते? जिस तेजी से मुस्लिम देशों से आतंकवाद भारत की ओर आ रहा है, उससे हिन्दू और मुसलमान दोनों को एकजुट रहने की सख्त जरुरत है। मंदिर-मस्जिद के झगड़ों को छोड़कर ऐसी पहल करनी चाहिए, जिसमें सबसे पहले कश्मीर में कश्मीरी पंडितों को वापस अपने घरों में बसाया जाए। यदि कोई आतंकवादी कश्मीरी पंडितों पर हमला करता है तो उसे रोकने की जिम्मेदारी भी कश्मीर के बहुसंख्यक मुसलमानों की है। पूरे देश में जिस प्रकार हिन्दू बहुसंख्यकों के बीच मुस्लिम समुदाय के लोग सभी सुविधाओं के साथ रह रहे हैं, उसी प्रकार कश्मीर में भी कश्मीरी पंडितों को रहने देना चाहिए। ज्यादा दूर जाने की जरुरत नहीं है। पड़ौसी देश पाकिस्तान के पीएम मियां नवाज शरीफ कई बार कह चुके हैं कि पाकिस्तान तो खुद आतंकवाद से त्रस्त है। भारत में रहने वाले मुसलमानों को पाकिस्तान के हालातों से सबक लेना चाहिए। जहां तक भारत में रहने वाले मुसलामनों के विकास का सवाल है तो खुद पीएम नरेन्द्र मोदी भी चिंतित है। मुद्रा बैंकिंग की शुरुआत करते हुए पीएम ने कहा कि भारत के मुसलमानों के पास जो हुनर है वो किसी के पास भी नहीं मिल सकता है। बैंकों को चाहिए कि हुनरबाज मुसलमानों को बिना किसी जमानत के ऋण दें। गुजरात में जो पतंग उद्योग मात्र 35 करोड़ का था, उसे इन्हीं हुनरबाज मुसलमानों ने 500 करोड़ तक पहुंचा दिया। गांव ढाणी से लेकर महानगरों तक में जुगाड़ पद्धति को जीवित रखने में मुसलमान हुनरबाज ही है। ऐसे हुनरबाज अपने क्षेत्र में कभी भी हिन्दू और मुसलमान का भेद नहीं करते। समाज में नीचे के स्तर पर आज भी हिन्दू और मुसलमानों के बीच भाईचारा बना हुआ है, लेकिन स्वार्थी लोग बेवजह मंदिर-मस्जिद की आड़ में फसाद करवाते रहते हैं। यदि इस मामले में हिन्दू समुदाय को भी कोई समझदारी दिखानी हो तो उसे भी दिखानी चाहिए। मेरा ऐसा मानना है कि दोनों समुदायों के लेाग पूरी ताकत के साथ कश्मीरी पंडितों को वापस कश्मीर में बसाते है तो यह सद्भावना की एक नई शुरुआत होगी।
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