Thursday 2 April 2015

राजस्थान में खेल नीति ही नहीं है

राजस्थान में खेल नीति ही नहीं है
जीटीवी के राजस्थान न्यूज चैनल पर दो अप्रैल को न्यूज-व्यूज का सशक्त लाइव प्रसारण हुआ। इस प्रसारण में मुझे भी भाग लेने का अवसर मिला। अन्य मुद्दों के साथ-साथ राजस्थन में खेल और खिलाडिय़ों की दुर्दशा पर भी चर्चा हुई। इस चर्चा में मैंने बताया कि राजस्थान में तो सरकार की ओर से कोई खेल नीति ही नहीं है। कांग्रेस के गत शासन में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने खेल मंत्री मांगीलाल गरासिया से खेलों की एक नीति बनवाई थी, लेकिन खेल मंत्री द्वारा तैयार की गई इस नीति को तब के खेल परिषद के अध्यक्ष और गहलोत के खासमखास शिवचरण माली ने रद्दी की टोकरी फेंक दिया। अब वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बने हुए डेढ़ वर्ष होने वाला है, लेकिन इस सरकार ने भी अभी तक भी कोई खेल नीति बनाने की घोषणा नहीं की है। खेल नीति नहीं होने से न तो खेल संघ सक्रिय है और न ही खिलाडिय़ों की कोई सुध ली जा रही है। यहजी वजह है कि जिन खिलाडिय़ों ने राष्ट्रीय स्तर पर कोई मेडल जीता है वे खिलाड़ी आज किसी फैक्ट्री में या किसी दफ्तर में श्रमिक अथवा चपरासी की नौकरी कर रहे हैं। ऐसे खिलाड़ी अपने मेडल को गले में टांगने के सिवाए कुछ भी नहीं कर पा रहे है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने पिछले शासन काल में तीरंदाज लिम्बाराम को सरकारी नौकरी दी थी। इसके बाद आज तक एक भी खिलाड़ी को खेल कोटे में राज्य सरकार की ओर से नौकरी नहीं मिली। राज्यस्तर की प्रतियोगिता में जीतने पर 30 हजार, 50 हजार और एक लाख तथा राष्ट्रीय स्तर पर मेडल प्राप्त करने पर एक लाख, दो लाख और तीन लाख का प्रावधान है, लेकिन इस प्रावधान के अनुरूप खिलडिय़ों को कोई आर्थिक मदद नहीं मिल पाती है। शर्मनाक बात तो यह है कि यदि कोई विजेता खिलाड़ी राजनीतिक दृष्टि से मजबूत जाति का होता है तो उसे इनाम की राशि मिल जाती है, इसका एक उदाहरण कृष्णा पुनिया का है, लेकिन पिछले दिनों सम्पन्न एशियन गेम में राजस्थान के जिन छह खिलाडिय़ों ने मेडल प्राप्त किए थे आज भी सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए राजनेताओं के सामने कटोरा लेकर खड़े हैं। राजस्थान में कोई 40 खेल संघ मान्यता प्राप्त हैं। इनमें से क्रिकेट, टेनिस जैसे तीन-चार खेल संघों को छोड़कर शेष खेल संघों की स्थिति बेहद खराब है। खेल प्रतियोगिताएं आयोजित करने और खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भेजने के लिए भी इन खेल संघों को इधर-उधर से भीख मांगनी पड़ती है। इन खेल संघों को सरकार की ओर से फूटी कोड़ी की भी आर्थिक मदद नहीं मिलती। शर्मनाक बात तो यह है कि जब कोई ख्ेाल संघ जयपुर के एसएमएस स्टेडियम में कोई प्रतियोगिता करता है तो उसे किराए के रूप में सरकार को लाखों रुपए चुकाने होते हैं। गत माह ही एक राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता के आयोजकों ने एसएमएस स्टेडियम के 6 लाख रुपए किराए आदि के चुकाए हैं। यह कहा जा सकता है कि प्रदेश के खिलाडिय़ों की योग्यता को उभारने के लिए सरकार का कोई सहयोग नहीं है। सरकार ने जिला स्तर पर खेलों के कोच तो नियुक्त कर रखे हैं, लेकिन खिलाडिय़ों के लिए कोई सुविधा नहीं है। ऐसे कोच अपनी नौकरी को बचाए रखने के लिए खिलाडिय़ों की फर्जी एंट्री तक कर रहे हैं। सरकार जब तक कोई खेल नीति नहीं बनाएगी, तब तक प्रदेश के खिलाड़ी सामने नहीं आएंगे। खेल संघ भी अपनी मान्यता को बचाए रखने के लिए झूठी सच्ची प्रतियोगिताएं आयोजित करते रहते हैं। खिलाडिय़ों को तैयार करने में खेल संघ भी निकम्मे साबित हो रहे हैं। संघों के पदाधिकारियों की रुचि विदेश यात्राओं में रहती है। असल में खेल संघों के हालात भी बद से बदत्तर है, जिस राजनेता, अधिकारी, उद्योगपति अथवा प्रभावशाली व्यक्ति ने जिस खेल संघ पर एक बार कब्जा कर लिया, वह फिर उसे छोडऩा नहीं चाहता है। ऐसे अनेक खेल संघ हैं जिन पर वर्षों से दो चार पदाधिकारी ही हमें हुए है। जब तक इन खेल संघों में खिलाडिय़ों की भूमिका प्रभावी नहीं होगी तब तक नए खिलाड़ी तैयार नहीं हो सकेंगे।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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