Monday 18 May 2015

डांगावास कांड: कहां है भाजपा के दलित नेता

गत 15 मई को राजस्थान के नागौर जिले के डांगावास गांव में दबंग लेागों ने दलित परिवार के तीन लोगों को ट्रेक्टर से कुचलकर मौत के घाट उतार दिया और परिवार की 6 महिलाओं और इतने ही पुरुष सदस्यों के हाथ पैर तोड़ डाले। दबंगों ने दलित महिलाओं के साथ वो सब कुछ किया जो एक सभ्य समाज में हो ही नहीं सकता। जख्मी महिलाएं और पुरुष अब अजमेर के जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में अपना इलाज करवा रहे हैं। दलितों के साथ हुए अत्याचार को सरकार ने पहले तो गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन जब राष्ट्रीय मीडिया में खबरें प्रसारित हुई तो नागौर के मंत्री युनूस खान मौके पर गए तथा अजमेर के अस्पताल में आकर जख्मियों के हालात जाने।
इस कांड पर कितनी गंभीर थी, इसका अंदाजा 16 मई को अजमेर के प्रभारी मंत्री वासुदेव देवनानी की कार्यशैली से लगता है। डांगावास कांड के जख्मी महिला-पुरुष जब इलाज के लिए नेहरू अस्पताल में तड़प रहे थे, तब 16 मई को ही देवनानी ने अस्पताल में चिकित्सकों की एक बैठक ली। इस बैठक में अस्पताल के हालात सुधारने के निर्देश दिए, लेकिन इस बैठक में न तो डांगावास के मरीजों के इलाज पर कोई चर्चा हुई और न ही अस्पताल में उपस्थित होने के बाद भी देवनानी जख्मियों को देखने वार्ड में गए। यदि सरकार गंभीर होती तो कम से कम देवनानी तो जख्मियों को देखने के लिए वार्ड में जाते ही।
सवाल उठता है कि जब दलितों पर दबंगों ने इतना बड़ा अत्याचार कर दिया, तब राजस्थान में भाजपा के दलित नेता कहां हैं? अजमेर शहर की भाजपा विधायक और प्रदेश की महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री अनिता भदेल सिर्फ दिखाने के लिए मरीजों से मिलकर आ गई। इसके अलावा दलितों के नाम पर जो नेता भाजपा की सरकार में मलाई खा रहे हैं, वे आए ही नहीं। जिस दलित परिवार के तीन सदस्यों को ट्रेक्टर से कुचल डाला गया, वह परिवार मेघवाल जाति का है, लेकिन विधानसभा के अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने अभी तक भी सरकार पर ऐसा कोई दबाव नहीं बनाया है, जिससे पीडि़त परिवार को राहत मिल सके। खौफजदा परिवार के सदस्य अभी भी डांगावास गांव में अपने घरों मं जाने से घबरा रहे हैं। हालांकि सरकार ने गांव में पुलिस बल तैनात किया है, लेकिन दलितों को भी यह पता है कि दबंगों के आगे पुलिस बोनी है। दबंगों ने दलित परिवार पर तब अत्याचार किए जब कुछ दिन पहले ही पुलिस ने 23 बीघा भूमि का कब्जा रतनाराम मेघवाल के परिवार को दिया गया था। कोई 18 वर्ष की कानूनी लड़ाई के बाद ही दलित परिवार दबंगों से अपनी जमीन का कब्जा लेने में सफल हुआ, जब पुलिस के कब्जे के बाद दबंग लोग दलितों को ट्रेक्टर से कुचलकर मार सकते हैं, तो फिर  अभी जो पुलिस मौजूद है, उसकी ताकत का अंदाजा भी लगाया जा सकता है। यंू तो विधानसभा में अध्यक्ष की हैसियत से कैलाश मेघवाल अनुशासन का पाठ विधायकों को पढ़ाते हैं, लेकिन डांगावास के दलितों की पीड़ा पर मेघवाल ने अभी तक भी अपनी जुबान नहीं खोली है। भले ही मेघवाल विधानसभा के अध्यक्ष के पद पर बैठे हों, लेकिन क्या उनका यह दायित्व नहीं बनता है कि वे पीडि़त परिवार को समुचित मदद दिलवावें। दलितों का मसीहा बनकर मेघवाल लम्बे अर्से से सत्ता का सुख भोग रहे हैं। प्रदेश के गृहमंत्री के साथ-साथ केन्द्र में भी मंत्री रहे हैं, लेकिन जब दलितों पर अत्याचार होते हैं तो मेघवाल खामोश ही रहते हैं।
यदि मेघवाल अजमेर अस्पताल में भर्ती मेघवाल परिवार की महिलाओं से आपबीती सुन लें तो उन्हें पता चल जाएगा कि दबंगों ने कितना जुल्म ढहाया है। सवाल यह नहीं है कि अत्याचार का शिकार परिवार विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल की जाति का है। सवाल यह है कि जो मेघवाल स्वयं को दलितों का मसीहा बताते हैं क्या वे दबंगों के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते। गत माह ही 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती पर मेघवाल ने भी दलितों की पीड़ा के लिए उच्च वर्ग को कोसा था। इतना ही नहीं बीकानेर के भाजपा सांसद अर्जुन मेघवाल ने भी दलित अफसरों की तरफदारी की थी, लेकिन अब जब पीडि़त दलित परिवार को मेघवालों की जरुरत है, तो ये दोनों नेता खामोश बैठे हैं। यदि दलितों के प्रति दोनों मेघवालों के मन में इतना ही दर्द है तो वे अजमेर में भर्ती जुल्म की शिकार महिलाओं से आकर क्यों नहीं मिलते हैं? क्या भाजपा के दलित नेताओं के अजमेर आने से प्रदेश की भाजपा की सरकार की छवि खराब हो जाएगी?
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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