Friday 15 May 2015

डंडे के बल पर अवैध निर्माणकर्ताओं ने अजमेर बंद कराया

राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश पर अजमेर नगर निगम पिछले कई दिनों से अवैध कॉम्प्लेक्सों, दुकानों और अन्य निर्माणों को सीज करने की जो कार्यवाही कर रहा है, उसके विरोध में 15 मई को अवैध निर्माणकर्ताओं ने डंडे के बल पर अजमेर को बंद करवा दिया। इस बंद से आम व्यापारियों का कोई सरोकार नहीं था। इसलिए सुबह अधिकांश दुकानें खुल गई, लेकिन जब खुली जीप और लोडिंग टैम्पो में अवैध निर्माणकर्ता मोटे-मोटे डंडे लेकर बाजारों में घूमे तो दहशत की वजह से व्यापारियों को अपनी दुकानें बंद करनी पड़ी। अवैध निर्माणों से न तो छोटे दुकानदारों का कोई संबंध है और न ही फुटपाथ पर सब्जी आदि सामान बेचने वाले गरीब तबके के लोगों का कोई स्वार्थ है। लेकिन इसके बावजूद भी अजमेर बंद का खामियाजा ऐसे सभी लोगों ने भुगता। जब अवैध निर्माणकर्ता और उनके संस्थानों में काम करने वाले कर्मचारी मोटे-मोटे डंडे लेकर खुलेआम लोगों को डरा धमका रहे थे, तब पुलिस मूक दर्शक बनी हुई थी, यहां तक कि किसी भी प्रशासनिक अधिकारी ने भी इस गुंडाई को रोकने की कोशिश नहीं की। ऐसा लगा कि जो शहर पीएम नरेन्द्र मोदी की पहल पर स्मार्ट सिटी बनने जा रहा है, उसका सरकारी अमला कमजोर की भूमिका निभा रहा है। क्या यह पुलिस और प्रशासन का दायित्व नहीं था कि वह गुंडाई करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करता? नगर निगम फिलहाल चुनिंदा अवैध निर्माणकर्ताओं के खिलाफ ही कार्यवाही कर रहा है। फिर भी जिस तरह से अजमेर बंद कराया गया, उससे हाईकोर्ट की अवमानना भी हुई है।
15 मई को इसलिए बंद कराया गया ताकि हाईकोर्ट पर दबाव डाला जा सके। आज ही हाईकोर्ट में अवैध निर्माण को सीज करने के मामलों की प्रगति रिपोर्ट पेश की गई। अवैध निर्माणकर्ताओं ने पहले तो नगर निगम के अधिकारियों और अपने वार्ड के पार्षद के संरक्षण में दुकानें और काम्प्लेक्स बना लिए और अब जब ऐसे कॉम्प्लेक्स सीज किए जा रहे हैं, तो डंडे के बल पर बंद करवाया जा रहा है। डंडों की दहशत से भले ही बंद सफल हो गया हो, लेकिन शहर के पांच लाख नागरिकों की सहानुभूति अवैध निर्माणकर्ताओं के साथ नही है। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि 15 मई को सौ-पचास अवैध निर्माणकर्ताओं  ने पांच लाख लोगों को बंधक बना लिया। आज जिस तरह डंडे के बल पर बंद कराया गया, उससे जिला और पुलिस प्रशासन की इच्छाशक्ति की भी पोल खुल गई। एक ओर जब स्मार्ट सिटी के लिए बड़े-बड़े काम करने होंगे, तब जिला प्रशासन सौ पचास अवैध निर्माणकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही नहीं कर सकता। जहां तक अजमेर पुलिस का सवाल है तो इस पुलिस की अपनी कोई ताकत नहीं है। इस ताकत को अवैध निर्माणकर्ताओं ने पहले ही खरीद रखा है। पिछले छह माह से आईपीएस महेन्द्र चौधरी अजमेर में बेमन से पुलिस अधीक्षक का काम कर रहे हैं। चौधरी की पदोन्नति 6 माह पहले ही डीआईजी के पद पर हो चुकी है, लेकिन सरकार के अनिर्णय की वजह से चौधरी डीआईजी होते हुए भी एसपी का काम कर रहे हैं।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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