Thursday 28 May 2015

मजाक बन गई है अजमेर पुलिस

राजनेताओं और अफसरों के गठजोड़ से लूट ही लूट
केन्द्र की भाजपा सरकार के एक वर्ष पूरा होने पर पार्टी के नेता और कार्यकर्ता जश्न में डूबे हुए हैं। ऐसे नेताओं को अजमेर पुलिस के बिगड़े ढांचे की ओर भी देखना चाहिए। गठजोड़ ऐसा हुआ है, जिसमें चारों तरफ लूट ही लूट हो रही है। सबसे पहले एसपी महेन्द्र सिंह चौधरी का किस्सा जानिए। चौधरी को गत 31 दिसम्बर 2014 को एसपी से डीआईजी बनाया गया, लेकिन छह माह गुजर जाने के बाद भी चौधरी एसपी का काम कर रहे हैं। हालांकि डीआईजी के पद पर नियुक्ति सीएम वसुंधरा राजे को करनी है, लेकिन चौधरी को भी पता है कि डीआईजी के पद पर नियुक्त होने से कोई फायदा नहीं है, जिस प्रकार अपने इलाके में थानेदार पावरफुल होता है, उसी प्रकार पुलिस की सेवा में एसपी ही जिले का मालिक होता है। चूंकि पदोन्नति होने के बाद भी चौधरी एसपी का ही काम कर रहे हैं, इसलिए शहर के चार थानों पर डीएसपी बने इंस्पेक्टर अभी तक कार्य कर रहे हैं। क्रिश्चियनगंज में नेम सिंह, रामगंज में नेनूराम मीणा, अलवरगेट में विजय सिंह और महिला थाने में रामेश्वर लाल अभी तक इंस्पेक्टर का ही काम कर रहे हैं। जिस प्रकार चौधरी की एसपीगिरी छोडऩे में रुचि नहीं है, उसी प्रकार से डीएसपी भी इंस्पेक्टरगिरी ही करना चाहते हैं। मजाक की हद तो तब है, जब स्मार्ट सिटी बनने वाले अजमेर शहर के कई थानों पर इंस्पेक्टर की जगह एसआई ही काम कर रहे हैं। कोतवाली में जितेन्द्र गंगवानी, सिविल लाइन में हनुमानाराम विश्नोई, गंज में करण सिंह तथा दरगाह जैसे पुलिस थाने में एसआई भूपेन्द्र सिंह ही इंस्पेक्टर का काम कर रहे हैं। जबकि भरत सिंह, राधा किशन, बाबूलाल मीणा, राजेन्द्र सिंह, हस्तीमल जैसे इंस्पेक्टर कबाड़ में लगे हुए हैं। यानी इंस्पेक्टर तो ठाले बैठे हैं और एसआई थानों में इंस्पेक्टरगिरी कर रहे हैं। बिजयनगर थाने के एसआई रविन्द्र सिंह ने टाइगर साहब से कहा कि मैं आपके हिसाब से काम नहीं कर पा रहा हंू, इसलिए एक सैकंड अफसर नियुक्त किया जाए। बस फिर क्या था कान सिंह को सैकंड अफसर नियुक्त कर दिया। सिविल लाइन थाने पर कनिष्ठ एसआई हनुमानाराम विश्नोई नियुक्त हैं, तो उनके अधीन आने वाली रोडवेज बस स्टैंड चौकी पर सीनियर एसआई लक्ष्मण सिंह राठौड़ काम कर रहे हैं। राठौड़ किन हालातों में काम कर रहे होंगे, यह वे ही बता सकते हैं। मजाक तो यह भी है कि रेंज के आईजी दफ्तर में चार-चार महिला एसआई अटेचमेंट में है। अरे जब थानों पर एसआई से ही काम चलाना है तो फिर इन चार महिला एसआई में से किसी को नियुक्ति दे दी जानी चाहिए। बहती गंगा में हाथ धोने के लिए महिला एसआई के साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है।
आईजी तो बादशाह से कम नहीं
रेंज के आईजी अमृत कलश तो बादशाह अकबर से कम नहीं है। गत 14 मई को जब रेंज के नागौर जिले के डांगावास में दबंग लोग मेघवाल परिवार की महिलाओं और पुरुषों को ट्रेक्टर से कुचल रहे थे, तब बादशाह अकबर बड़े आराम से हैड कांस्टेबल से एएसआई बनाने के काम में लगे हुए थे। 15 व 16 मई लगातार दोनों दिन पदोन्नति के लिए इंटरव्यू का काम चलता रहा। कोई 37 हैड कांस्टेबलों को एएसआई बना दिया। इन दोनों दिनों में बादशाह का कलश चमक उठा। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि जिस हत्याकांड में चार-पांच लोगों की मौत हो गई और 20 से भी ज्यादा महिला व पुरुषों के हाथ-पांव तोड़ दिए गए। उस वारदात में आईजी चार दिन बाद मौके पर गए। खबर तो यहां तक है कि मेड़ता थाना प्रभारी पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी का रिश्तेदार है। इसीलिए आईजी घटना के तुरंत बाद मौके पर नहीं गए। पदोन्नत हुए अधिकारी कह सकते हैं कि नए पद पर सरकार नियुक्ति देगी, तब ही जाएंगे। असल में अजमेर में राजनेताओं और अधिकारियों का ऐसा गठजोड़ बन गया है, जिसमें पद से ज्यादा लूट का महत्त्व है।
एस.पी.मित्तल (spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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