Wednesday 24 June 2015

कांग्रेस की इमरजेन्सी को तो हमने भी दी थी मात


(spmittal.blogspot.in)

मेरी उम्र 53 साल है और 40 वर्ष पहले जब 25 जून 1975 को देश में एमरजेन्सी लगी थी तब के माहौल की स्मृति अभी भी मेरे मस्तिष्क में है। तब मेरे पिता कृष्णगोपाल जी गुप्ता अपना पाक्षिक समाचार पत्र भभक  प्रकाशित करते थे। उस समय उनकी निडर लेखनी का लोहा माना जाता था। अखबार भले ही पाक्षिक था, लेकिन उसमें लिखे अक्षरों की मार सरकार में उपर तक थी। पिताजी ने अखबार कोई समाचार पत्र के उद्देश्य से नही निकाला, बल्कि एक मिशन के तौर पर अखबार को निकाला गया। अखबार के संपादक के साथ-साथ श्रमिकों के लिए संघर्ष और नगर पार्षद के रूप में जनसेवक की भी भूमिका निभाई। जिस रात को इमरजेन्सी घोषित हुई, उसके अगले दिन तब के जिला कलेक्टर का फरमान सभी अखबारों में संपादकों के पास आ गया। इस फरमान में कहा गया कि अब अखबार में जो कुछ भी प्रकाशित होगा, उसको पहले जिला कलेक्टर को दिखाया जाएगा। इसके साथ ही कलेक्टर ने पीआरओ को अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया। तब बड़े-बड़े अखबार मालिक अपने लेखन को लेकर पीआरओ के दफ्तर में लाइन लगाकर खड़े हो गए। कुछ प्रभावशाली समाचार पत्रों ने पीआरओ को रोज अपने दफ्तर बुलाया और प्रकाशित होने वाले मेटर को दिखाया। उस समय सरकार के खिलाफ कोई भी समाचार प्रकाशित नहीं किया जा सकता था, लेकिन मेरे पिता ने अपने लेखन को पीआरओ से जंचवाने से साफ इंकार कर दिया। 25 जून के बाद प्रकाशित भभक को अपने नजरिए से ही प्रकाशित किया। स्वाभाविक था कि कांग्रेस शासन का जिला कलेक्टर एक संपादक की इस जुर्रत को बर्दाश्त नहीं कर सका था। अगले ही दिन भभक के प्रकाशन पर रोक लगा दी गई। जिन लोगों ने इमरजेन्सी की ज्यादतियों को देखा है उन्हें पता है कि उस समय सरकार के खिलाफ बोलने वाले को जेल में ही जाना पड़ता था, लेकिन इस ज्यादती की परवाह किए बगैर मेरे पिता ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया में अपील की और अजमेर के जिला कलेकटर के आदेश को चुनौती दी। उस समय पूरे राजस्थान में मेरे पिता ही एक मात्र पत्रकार थे, जिन्होंने अपने अखबार के प्रकाशन के रोक के मामले को उठाया। अपील के साथ ही जिला कलेक्टर को नोटिस जारी कर पूछा गया कि आखिर भभक के प्रकाशन पर रोक किन कारणों से लगाई गई है। कलेक्टर ने एक कारण बताया कि भभक अनियमित है। कलेक्टर का यह कथन सरासर झूठा था। कलेक्टर के कथन को झूठा साबित करने के लिए मेरे पिता अजमेर से भभक के प्रकाशित सभी अंक प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया में ले गए। मैं यह बात गर्व से कह सकता हूं कि इमरजेन्सी के उस आतंक के काल में मेरे पिता की सच्चाई की जीत हुई। इमरजेन्सी के दौरान ही काउंसिल के अध्यक्ष ने कलेक्टर के आदेश को निरस्त किया और भभक के प्रकाशन को जारी रखने के आदेश दिए। मेरे पिता ने इमरजेन्सी में ही भभक का प्रकाशन अपने नजरिए से फिर शुरू किया। थोड़े ही दिनों में इमरजेन्सी हटी और फिर चुनाव के बाद केन्द्र में गठबंधन की सरकार बनी। उस समय लोकसभा में तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि राजस्थान में भभक के संपादक ने ही इमरजेन्सी के ज्यादती के खिलाफ प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया में विरोध जताया था। इमरजेन्सी में और भी अखबारों के प्रकाशन बंद किए गए, जिन्हें इमरजेन्सी हटने के बाद शुरू किया जा सका। अजमेर के पुराने लोग मेरे पिता के जुझारूपन को जानते है। मेरे पिता का निधन 3 मार्च 1991 में हुआ। पिता के अंतिम समय तक भभक का प्रकाशन होता रहा और आज भी जारी है। मेरे पिता ने मुझे पत्रकारिता में जो कुछ भी सिखाया है, उस पर चलने की कोशिश मैं भी कर रहा हूं। विपरीत परिस्थितियों में भी अपने लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जाता है, यह मैंने अपने पिता से ही सीखा।
(एस.पी. मित्तल) M-09829071511

1 comment:

  1. आपके पिताश्री स्वर्गीय कृष्णगोपाल गुप्ता जी को शत-शत नमन.

    निर्भीक, स्पष्ट और जागरूकता के लिए लिखते रहें, ऐसी शुभकामना आप के लिए. अभिवादन सहित ...

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