Thursday 25 June 2015

इसे कहते हैं भगवान का साथ छोड़ जाना।


(spmittal.blogspot.in)

आज नहीं तो कल वसुंधरा को जाना ही होगा।
धर्म के पथ पर चलने वाले व्यक्तियों को कई बार ऐसा लगता है कि जो लोग अधर्म के पथ पर चल रहे हैं उनका कुछ भी नहीं बिगड़ रहा। इसके लिए कई बार भगवान को भी कोसा जाता हे, लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि जब तक भगवान की कृपा होती है, तब तक अधर्म के पथ पर चलने पर भी लेकिन जब भगवान का साथ छूट जाता है तो अधर्म नहीं करने पर भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है। धर्म और अधर्म का कुछ ऐसा ही खेल राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे के साथ इन दिनों हो रहा है। राजस्थान ही नहीं पूरा देश और खासकर दुनिया के क्रिकेट जगत को यह पता है कि क्रिकेट के किंग ललित मोदी और वसुंधरा राजे के बीच कितनी अच्छी मित्रता थी। 2005 में वसुंधरा राजे जब पहली बार सीएम बनी तो सत्ता की एक चाबी ललित मोदी के पास भी थी। चूंकि तब वसुंधरा के साथ भगवान थे। इसलिए अधर्म के पथ पर चलते हुए भी वसुंधरा राजे का कुछ नहीं बिगड़ा। किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि  वे ललित मोदी की दखलदांजी के विरोध में एक शब्द भी कह पाते। 2009 में सत्ता छिन जाने के बाद भी वसुंधरा और ललित मोदी की दोस्ती परवान पर रही। इसलिए 18 अगस्त 2011 को वसुंधरा राजे ने ललित मोदी की इमिग्रेशन एप्लीकेशन के लिए हस्ताक्षर किए। उस समय वसुंधरा राजस्थान विधानसभा में प्रतिपक्ष की नेता थी। यह बात अलग है कि पूरे पांच वर्ष में राजे ने विधानसभा में मुश्किल से पांच बार उपस्थिति दर्ज करवाई। इतना ही नहीं कांग्रेस के पांच वर्ष के शासन में वसुंधरा राजे साढ़े तीन वर्ष तक ललित मोदी के साथ लंदन में ही रही। प्रतिपक्ष के नेता का पद भी भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं को ब्लैकमेल कर लिया गया। दिल्ली में भाजपा विधायकों की परेड कराते समय यह साफ कहा गया कि यदि राजे को प्रतिपक्ष का नेता घोषित नहीं किया गया तो भाजपा विधायक दल टूट जाएगा। जब भगवान आपके साथ होता है तो आप अधर्म के मार्ग पर कितना भी तेज दौड़ सकते हैं।  वर्ष 2013 में जब विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई तो वसुंधरा राजे ललित मोदी को लंदन छोड़कर एक बार फिर राजस्थान की धरती पर आ गई। भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं को इस बात के लिए बाध्य किया गया कि वसुंधरा राजे को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष घोषित किया जाए। मजबूरी में एक बार फिर राष्ट्रीय नेतृत्व को झुकना पड़ा और राजे को न केवल प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, बल्कि यह भी घोषणा करनी पड़ी कि विधानसभा का चुनाव वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही लड़ा जाए। इसे भगवान का साथ होना ही कहा जाएगा कि राजे के नेतृत्व में 200 में से 163 भाजपा के विधायक बने। जो लोग धर्म के पथ पर चल रहे थे, उन्हें बार-बार इस बात की ईष्र्या हो रही थी कि अधर्म के पथ पर चलने वाले लगातार सफल हो रहे हैं। लेकिन भगवान तो भगवान ही है अधर्म पर चलने वालों को कब सजा दी जाए, इसका फैसला भगवान ही करता है।
दिसम्बर 2013 में दोबारा सीएम बनने के बाद जो परिस्थितियां उत्पन्न हुई, उनमें वसुंधरा राजे का ललित मोदी के साथ ऐसा भीषण विवाद हुआ कि ललित मोदी को राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष पद से रातों रात बर्खास्त कर दिया गया। जो वसुंधरा राजे 18 अगस्त 2011 को भगोड़े ललित मोदी के लिए इमिग्रश्ेान एप्लेकेशन पर हस्ताक्षर कर रही थी उसी वसुंधरा राजे की सरकार में क्रिकेट जगत में ललित मोदी की इज्जत मिट्टी में मिला दी। अब जब ललित मोदी के साथ वसुंधरा राजे का कोई संबंध नहीं रहा तो ललित मोदी की वजह से ही राजे के सीएम के पद पर खतरा मंडरा रहा है। इसे भगवान का फैसला ही कहा जाएगा कि जब राजे ललित मोदी से पिंड छुड़ाना चाहती है, तब उन्हें कहना पड़ रहा है की मोदी के साथ उनके पारिवारिक रिश्ते रहे हैं। 25 जून को तो वसुंधरा राजे ने साफ-साफ कह दिया कि ललित मोदी से दोस्ती की खातिर उसकी इमिग्रेशन एप्लीकेशन पर हस्ताक्षर किए थे।
राजे माने या नहीं, लेकिन अब कहा जा सकता है कि राजे के साथ भगवान नहीं है। 163 भाजपा विधायकों के होने के बाद भी राजे को सीएम के पद से जाना पड़ सकता है। हालांकि केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने एक बार फिर जोर देकर कहा है कि वसुंधरा राजे को नहीं हटाया जाएगा। हो सकता है कि वसुंधरा को लोकसभा के वर्षाकालीन सत्र के शुरू होने तक टिकाए रखा जाए। लेकिन जब 23 जुलाई को संसद सत्र शुरू होगा तो वसुंधरा राजे के इस्तीफे के मुद्दे पर ही कांग्रेस संसद को नहीं चलने देगी। हो सकता है कि तब पीएम नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह बड़ी समझदारी से वसुंधरा राजे को चलता कर देवे। जो लोग सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे के मामलों को एक नजरिए से देख रहे हैं वो गलत है। पहली बात तो यह है कि वसुंधरा राजे और ललित मोदी के बीच जो पारिवारिक संबंध रहे वैसे पारिवारिक संबंध सुषमा स्वराज के नहीं रहे। दूसरा वसुंधरा के बेटे दुष्यंत सिंह की कंपनी ने ललित मोदी की दिवालिया कंपनी से 11 करोड़ 23 लाख रुपए प्राप्त किए। जबकि ललित मोदी और सुषमा के बीच रुपयो का लेनदेन नहीं हुआ। 2004 के कार्यकाल में राजस्थान के जिन लोगों ने वसुंधरा ललित मोदी का गठजोड़ देखा है, उन्हें पता है कि 11 करोड़ 23 लाख रुपए तो रिकॉर्ड में है, जो राशि रिकॉर्ड पर नहंी है, उसका अनुमान लगाना मुश्किल है। वसुंधरा और ललित मोदी के विवाद की जड़ में पुराना हिसाब किताब ही तो है।
वसुंधरा राजे के समर्थक, प्रदेश के चिकित्सा मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने कहा कि भाजपा हाईकमान के द्वारा इस्तीफा मांगे जाने पर भी भाजपा के विधायक वसुंधरा राजे के साथ रहेंगे। राठौड़ को यह समझना चाहिए कि अब भाजपा का नेतृत्व नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के पास है जो ऐसी धमकियों से निपटना जानते हैं। वो वक्त गुजर गया जब सीएम नहीं रहने पर भी वसुंधरा के साथ भाजपा के विधायक रहे। राठौड़ भी अब अच्छी तरह समझ ले कि भगवान साथ नहंी है। आज नहीं तो कल वसुंधरा राजे को जाना ही होगा।
(एस.पी. मित्तल) M-09829071511

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