Monday 22 June 2015

वसुंधरा के लिए नितिन गडकरी का बचाव क्या मायने रखता है।


(spmittal.blogspot.in)

गडकरी को तो खुद अध्यक्ष की कुर्सी छोडऩी पड़ी थी।
22 जून को केन्द्रीय सड़क मंत्री नितिन गडकरी ने जयपुर में राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद गडकरी ने पत्रकारों से कहा कि आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी के साथ संबंधों को लेकर सीएम राजे पर जो आरोप लगे हैं, वे सब झूठे हैं। यानि राजे के सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह की कंपनी ने जो 11 करोड़ 23 लाख रुपए मोदी की दिवालिया कंपनी से लिए, उसमें भी कोई सच्चाई नहीं है। गडकरी के बयान को तत्काल ही न्यूज चैनल पर फ्लैश भी करवाया गया। ईटीवी जैसे चैनल ने तो ऐसे दिखाया, जैसे सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने वसुंधरा राजे को बरी कर दिया हो। समझ में नहीं आता कि गडकरी ने इतने दावे से वसुंधरा को पाक-साफ कैसे बताया। शायद गडकरी कंपनियों के शेयरों के घोटाले को बेईमानी नहीं मानते हैं। पाठकों को याद होगा कि राजनाथ सिंह से पहले नितिन गडकरी ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और उन पर कंपनियों के गड़बड़ झाले के ही आरोप लगे। गडकरी पर भी आरोप वसुंधरा के बेटे की कंपनियों जैसे ही थे। तब गडकरी चिल्लाते रहे कि उनकी कंपनियों ने कोई बेईमानी नहीं की है, लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने गडकरी की एक नहीं सुनी और गडकरी को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा। अब वो ही गडकरी सीएम राजे को पाक साफ बता रहे है। क्या गडकरी का प्रमाण पत्र कोई मायने रखता है? कंपनियों की बेईमानी में गडकरी तो वसुंधरा को पाक साफ बताएंगे ही, क्योंकि उन की नजर में यह बेईमानी है ही नहीं। माना कि गडकरी और वसुंधरा के बेटे की कंपनियों में सब कार्य नियमानुसार हुआ है और इन्होंने ऐसा कोई सबूत भी नहीं छोड़ा है, जिससे कानून के शिकंजे में फंस सके। लेकिन सवाल उठता है कि राजनीति में सेवा की भावना से आने वाले नेता क्या कंपनियों  के गड़बड़ झाले से दूर नहीं रह सकते? आखिर सत्ता में आते ही नेता कंपनियां क्यों बनाते हैं? क्या कंपनियों के माध्यम से दस रुपए का शेयर 96 हजार रुपए में खरीदा और बेचा जाता है? जब भाजपा के कुछ नेता राजनीतिक में शुचिता की बात करते तो क्या भाजपा अपने नेताओं को कंपनियों से दूर नहीं रख सकती? जहां तक राजस्थान में वसुंधरा राजे का सवाल हे तो कांग्रेस को वसुंधरा  को हटाने का कोई प्रयास नहीं करना चाहिए, क्योंकि वसुंधरा की वजह से कांग्रेस फिर से सत्ता में आएगी। यदि वसुंधरा की जगह बिना कंपनी वाला कोई संघ निष्ठ भाजपाई सीएम बन गया तो प्रदेश की दशा भी सुधरने लगेगी और कांग्रेसियों के मंसूबे पर पानी फिर जाएगा। पीएम नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी भले ही वसुंधरा को टिकाए रखे, लेकिन कम से कम सरकार तो चलाएं। विधानसभा और लोकसभा चुनावों का एक भी वायदा पूरा नहीं किया गया है।
(एस.पी. मित्तल) M-09829071511

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