Monday 20 July 2015

आखिर जिला जज ने दिलावा ही दी महिला जज को कुर्सी


(spmittal.blogspot.in)

इसमें कोई दो राय नहीं कि अजमेर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश उमेशचंद शर्मा के पास हर समस्या का समाधान हैं। वे किसी भी समस्या का समाधान निकाल ही लेते हैं। आज हम जिला न्यायालय परिसर को इतना साफ सुथरा और अतिक्रमण रहित देख रहे हैं, उसके पीछे भी शर्मा की इच्छा शक्ति ही रही है। वकीलों के वाहन बाहर खड़े हों, इस पर किस प्रकार सहमति करवाई, यह शर्मा ही जानते हैं। ऐसी ही एक समस्या का समाधान शर्मा ने हाल ही में किया है।
हाईकोर्ट ने महिला जज आशा कुमारी की नियुक्ति अजमेर की एसीबी कोर्ट में की। इससे पहले तक एसीबी कोर्ट का चार्ज टाडा कोर्ट के न्यायाधीश फूलचंद झाझडिय़ा के पास था। टाडा कोर्ट का कक्ष सेंट्रल जेल में हैं,जबकि एसीबी कोर्ट कलेक्ट्रेट परिसर स्थित पुराने आरपीएससी भवन में है। चूंकि टाडा कोर्ट में मुकदमों की संख्या नहीं के बराबर है, इसलिए न्यायाधीश झाझडिय़ा जेल के बजाए कलेक्टे्रट परिसर स्थित एसीबी की कोर्ट में ही बैठते रहे। अब जब हाईकोर्ट ने आशा कुमारी की नियुक्ति स्थायी जज के तौर पर कर दी तो स्वाभाविक था कि एसीबी की कोर्ट में झाझडिय़ा के स्थान पर आशा कुमारी ही बैठेंगी। इस स्थिति को देखते झाझडिय़ा ने प्रॉब्लम शूटर जिला जज शर्मा से कहा कि उन्हें एसीबी कोर्ट में बैठने की अनुमति दी जाए, क्योंकि हाईकोर्ट ने 20 मुकदमों की सुनवाई का विशेष अधिकार दे रखा है। इन मुकदमों में करीब-करीब रोजाना सुनवाई होती है। इन मुकदमों की सुनवाई सेंट्रल जेल स्थित टाडा कोर्ट में नहीं हो सकती। यदि कोई अन्य जिला जज होता तो शायद झाझडिय़ा की मदद नहीं हो पाती।  क्योंकि स्थायी जज को अन्य किसी अदालत में नहीं बैठाया जा सकता। लेकिन शर्मा ने सूझबूझ दिखाते हुए एसीबी कोर्ट की जज आशा कुमारी को जिला न्यायालय परिसर स्थित लेबर कोर्ट में बैठने पर राजी कर लिया। महिला जज ने लेबर कोर्ट में बैठ कर अपना काम काज भी शुरू कर दिया, लेकिन इसकी जानकारी जैसे ही पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश रवि कुमार गुप्ता को लगी तो उन्होंने तत्काल जिला जज शर्मा से सम्पर्क किया। न्यायाधीश गुप्ता ने कहा, मैं सप्ताह में तीन दिन पारिवारिक न्यायालय और तीन दिन लेबर कोर्ट में बैठता हंू। यदि लेबर कोर्ट में महिला जज को बैठाया गया है तो मैं कहां बैठंूंगा। यानि जिला जज के सामने फिर समस्या खड़ी हो गई।
इस बार समस्या वह भी थी कि आखिर एक महिला जज की कुर्सी कितनी बार बदली जाएगी। महिला जज आशा कुमारी भी जिला सत्र न्यायाधीश स्तर की ही है। फर्क इतना ही है कि उमेश चंद शर्मा वरिष्ठ हैं, लेकिन शर्मा ने एक बार फिर समस्या का समाधान करते हुए महिला जज को एडीजे कोर्ट संख्या तीन में बैठने को तैयार कर लिया। 20 जुलाई से आशा कुमारी ने इसी कोर्ट की कुर्सी पर बैठ कर काम काज निपटाया। महिला जज को भी उम्मीद है कि अब यह कुर्सी नहीं छीनेगी, जबकि पॉब्लम शूटर जिला जज को डर है कि कहीं एडीजी संख्या तीन में किसी जज की नियुक्ति आज कल में नहीं हो जाए। चूंकि अभी यह कोर्ट रिक्त है, इसलिए अस्थायी तौर पर महिला जज को बैठाया गया है। इस बीच न्यायाधीश फूलचंद झाझडिय़ा ने भी हाईकोर्ट से आग्रह किया है कि उनका स्थानांतरण अन्य किसी स्थान पर कर दिया जाए, क्योंकि वर्तमान में सिर्फ बीस मुकदमों का काम ही उनके पास है और यह भी स्थायी अदालत का काम नहीं है। टाडा कोर्ट का न्यायाधीश तो होना या नहीं होना बराबर ही है। यहां यह खासतौर से उल्लेखनीय है कि ये सभी न्यायाधीश जिला जज के स्तर हैं। ऐसे जजों में सामजस्य बैठाना कोई आसान काम नहीं है। फिलहाल जिला जज ने जो व्यवस्था कायम की है, उससे सभी जज संतुष्ट बताए जा रहे हैं। न्यायाधीश उमेश चंद शर्मा को तो एक वर्ष पहले ही हाईकोर्ट का न्यायाधीश बन जाना चाहिए था, लेकिन केन्द्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया उलझने की वजह से ही शर्मा अभी तक अजमेर में ही अपने साथी जजों की कुर्सी की समस्याओं को ही निपटाने में लगे हुए हैं और अब तो शर्मा की सेवानिवृत्ति भी होने वाली है।
शारदा प्रकरण की भी करेंगी सुनवाई
जज आशा कुमारी अजमेर में तब एडीजे थीं, जब डीजे के पद पर अजय शारदा कार्यरत थे। यानि आशा कुमारी ने शारदा के अधीन कार्य किया था, लेकिन अब अजय शारदा को मुल्जिम के रूप में आशा कुमारी की अदालत में खड़ा होना पड़ेगा। एसीबी कोर्ट की न्यायाधीश होने के नाते आशा कुमारी कोर्ट लिपिक भर्ती घोटाले की भी सुनवाई करेंगी। शारदा इस मुकदमे में मुल्जिम हैं। शारदा पर रिश्वत लेकर भर्ती करने का आरोप है। शारदा एक वर्ष तक जेल में रहने के बाद अभी जमानत पर हैं।
(एस.पी. मित्तल)M-09829071511

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