Saturday 4 July 2015

अजमेर में भी हो प्राइवेट अस्पतालों की एम्बुलेंस पर कार्यवाही


(spmittal.blogspot.in)

मालिकों ने लूट मचा रखी है
प्राइवेट अस्पतालों की एम्बुलेंस का मनमाना किराया वसूलने की शिकायतों के मद्देनजर जयपुर में जिला कलेक्टर ने परिवहन विभाग को निर्देश दिए हैं कि ऐसी एम्बुलेंसों का किराया निर्धारित किया जाए ताकि प्राइवेट अस्पतालों के मालिकों की लूट को रोका जा सके। असल में जयपुर में प्रशासन ने जो कार्यवाही की है उसी तरह की कार्यवाही अजमेर में भी होनी चाहिए। प्राइवेट अस्पतालों की कमाई का एक मोटा जरिया एम्बुलेंस भी है। चूंकि एम्बुलेंस पर सरकार ने अनेक रियायतें दे रखी है इसलिए हर प्राइवेट अस्पताल के मालिक के पास एक से अधिक एम्बुलेंस है। एम्बुलेंस के लिए न तो कोई परमिट लेना पड़ता है और न ही टोल बूथ पर टैक्स चुकाना पड़ता है। असल में चिकित्सा के क्षेत्र में एम्बुलेंस को भी सेवा माना गया है, लेकिन जब प्राइवेट अस्पताल भर्ती मरीज के प्रति ही सेवा की भावना नहीं रखते है तो फिर एम्बुलेंस में आने वाले मरीज के प्रति तो सेवा की भावना का सवाल ही नहीं उठता। अस्पताल मालिकों की तब तो सारी संवेदना ही मर जाती है जब अस्पताल में मरे मरीज के शव को घर तक छोडऩे के लिए भी एम्बुलेंस का मोटा किराया वसूला जाता है। चूंकि तब परिजनों को अपने रिश्तेदार का शव ले जाने की जल्दी होती है इसलिए अस्पताल मालिकों द्वारा मांगी गई रकम देनी ही पड़ती है। अजमेर में ऐसे कई प्राइवेट बेईमान अस्पताल है जिन्होंने कई तरह की एम्बुलेंस रखी हुई है। जब कभी मरीज को अजमेर से जयपुर, अहमदाबाद, दिल्ली आदि किसी बड़े शहर में स्थानान्तरित करना होता है तो ऐसे अस्पताल एम्बुलेंस में सुविधा का झांसा देकर हजारों रुपया वसूलते है। एम्बुलेेंस के किराए पर ऐसे ही सौदेबाजी की जाती है जैसे कोई ट्रेवल्स एजेन्सी वाला करता हो। ऑक्सीजन, डॉक्टर, नर्स आदि की सुविधा वाली एम्बुलेंस की दर अलग है तो साधारण एम्बुलेंस की दर अलग है और अब तो एसी और नॉन एसी के नाम पर भी मरीज के परिजनों को लूटा जाता है। एम्बुलेंस का कोई किराया निर्धारित नहीं है। बेईमान अस्पतालों के मालिक उस मरीज के परिजनों से बेरहम होकर मोटी राशि वसूलते हंै जिसे जल्द से जल्द जयपुर के किसी अस्पताल में भर्ती करना होता है। यूं दिखाने को अस्पताल के मालिक समाज में चंदा देकर स्वयं को दानवीर प्रदर्शित करते हैं, लेकिन वही मालिक गरीब की लाश पर एम्बुलेंस के नाम पर लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ता। मोटी रकम चुकाने के बाद भी कई बार एम्बुलेंस बीच रास्ते में ही खराब हो जाती है। मरीज के परिजन कुछ भी नहीं कर सकते क्योंकि एम्बुलेंस का किराया एडवांस में ही वसूल किया जाता है। ऐसा नहीं कि खटारा एम्बुलेंसों के बारे में जिला प्रशासन को जानकारी न हो। अजमेर की जिला कलेक्टर डॉ. आरूषी मलिक तो खुद भुगतभोगी है। पिछले दिनों डॉ. मलिक जब अपने बीमार पिता को क्रिटिकल एम्बुलेंस में अजमेर से जयपुर ले जा रही थी कि तभी रास्ते में एम्बुलेंस खराब हो गई। चूंकि एम्बुलेस में कलेक्टर के पिता थे इसलिए हाथोंहाथ वैकल्पिक व्यवस्था भी हो गई, लेकिन साधारण मरीज को ले जाते वक्त जब एम्बुलेंस खराब हो जाती है तो कोई भी प्राइवेट अस्पताल का मालिक किराया वापस नहीं करता है। अजमेर की जिला कलेक्टर को चाहिए कि वे परिवहन विभाग को निर्देश देकर एम्बुलेंस का किराया निर्धारित करवावें। एम्बुलेंस के किराए की सूची अस्पताल के मुख्य द्वार पर चस्पा होनी चाहिए ताकि कोई भी अस्पताल मालिक निर्धारित दर से ज्यादा नहीं वसूले। अस्पताल की एम्बुलेंस का उपयोग ट्रेवल्स एजेन्सी की टैक्सी की तरह नहीं बल्कि सेवा के उद्देश्य से होना चाहिए। इस बात की भी सूची बननी चाहिए कि किस अस्पताल के पास कितनी एम्बुलेंस है और क्या ऐसी एम्बुलेंस चिकित्सा नियमों के अनुरुप संचालित हो रही है।
(एस.पी. मित्तल)M-09829071511

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