Thursday 23 July 2015

वसुंधरा राजे और कॉल बैक


(spmittal.blogspot.in)

जी न्यूज के राजस्थान चैनल पर 22 जुलाई को रात आठ बजे न्यूज-व्यूज का लाइव प्रोग्राम प्रसारित हुआ। एक पत्रकार के नाते इस प्रोग्राम में मुझे भी शामिल किया गया। चैनल के सम्पादक पुरुषोत्तम वैष्णव ने जयपुर में हो रही कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस का मुद्दा रखा। 22 जुलाई को शुरू हुई तीन दिवसीय कॉन्फ्रेंस के पहले ही दिन सीएम राजे ने कहा कि वे प्रतिमाह 5 हजार पत्रों का जवाब देती हैं और जिन व्यक्तियों के फोन आते हैं, उन्हें भी जवाब देती हैं। इतना ही नहीं यदि कभी मोबाइल पर बात नहीं हो पाती तो कॉल बैक भी करती हैं। राजे ने अफसरों से सवाल किया कि जब मैं आम आदमी के लिए इतनी चिंतित हंू तो आप क्यों नहीं? राजे के इस कथन को मैंने जी न्यूज के लाइव प्रोग्राम में भी प्रभावी ढंग से उठाया और तभी से मैं उस व्यक्ति को ढूंढ रहा हंू, जिसे कभी राजे ने कॉल बैक किया हो। जो लोग मेरा ब्लॉग पढ़ते हैं, उनसे भी विनम्र आग्रह है कि यदि आपको सीएम का कभी कॉल बैक आया तो जरूर बताएं। वह व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली होगा, जिसे वसुंधरा राजे जैसी शख्सियत का कॉल बैक मिला हो। खबर तो यह है कि बड़े-बड़े मंत्री, अधिकारी, विधायक आदि सीएम से मिलने को तरस जाते हैं। चाहे जितना भी जरूरी कार्य हो, राजे से मिलना इतना आसान नहीं। इतनी किसकी हिम्मत है जो सीएम साहिबा से फोन पर बात कर सके। जिन कलेक्टर और एसपी को नसीहत दी जा रही है, उन्हें भी पता है कि सीएम मैडम से कैसे मिला जाता है। सीएमओ में तो चीफ सैकेटरी को ही कोई नहीं पूछ रहा। कलेक्टर-एसपी की तो क्या बिसात है। शायद सीएम राजे को जमीनी हकीकत पता नहीं है। एक बार अजमेर में कलेक्टे्रट परिसर में आकर देखें तो पता चलेगा कि उनकी कलेक्टर साहिबा कैसे काम करती हैं। आम लोगों की बात तो छोडि़ए आरएएस अधिकारी भी संवाद करने में डरते हैं। यहां की कलेक्टर भी सीएम से कम नहीं है। मिलने के लिए ग्रामीणों को घंटों कलेक्टर के दरवाजे के बाहर खड़े रहना पड़ता है। यह हाल अजमेर का ही नहीं, प्रदेश के अधिकांश कलेक्टरों का है। अफसरशाही कैसी है, इसका अंदाजा अजमेर के तहसीलदार राजकुमार डाटा के तौर तरीकों से लगाया जा सकता है। डाटा ने भाजपा नेताओं से कहा तुम्हारी तो सीएम की खुद की हालत खराब है। डाटा ने नेताओं से कहा कि भाजपा का नाम लेने की जरुरत नहीं है। यह बात और कोई नहीं बल्कि भाजपा की बैठक में स्वयं नेताओं ने कही है। अब एक अदना सा तहसीलदार सीएम पर टिप्पणी कर रहा हो, तब कलेक्टर-एसपी के काम के तरीकों का अंदाजा लगाया जा सकता है। असल में लोकतांत्रिक व्यवस्था में जन प्रतिनिधियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। वर्तमान सांसद और विधायक तो राजा-महाराजाओं की भूमिका में हैं। आम व्यक्ति की सुनने वाला कोई नहीं है। जिस व्यक्ति के पास पैसा है, वह कलेक्टर से भी अपना काम करवा सकता है। सीएम राजे माने या नहीं गरीब आदमी की सुनने वाला कोई नहीं है। अफसरशाही आंकड़े प्रस्तुत कर बेवकूफ बनाती है।
(एस.पी. मित्तल)M-09829071511

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