Thursday 2 July 2015

डॉक्टर हो तो एस.के.आरोड़ा जैसा।


(spmittal.blogspot.in)

अब अपने पुत्र डॉ. पीयूष  को भी बना रहे है अपने जैसा
आमतौर पर शिकायत रहती है कि डॉक्टर सेवा की भावना रखने के बजाए लूट और स्वार्थ की भावना रखते हैं। सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों को जब तक घर पर रिश्वत न दे दी जाए, तब तक अस्पताल में इलाज भी सही ढंग से नहीं हो पाता। ऑपरेशन के एक दिन पहले डॉक्टर के घर पर जाकर नोट से भरा लिफाफा देना पड़ता है। यदि लफाफा नहीं दिया तो अगले दिन ऑपरेशन टेबल पर मरीज के शरीर में कोई कमी निकालकर ऑपरेशन नहीं किया जाता और कुछ नहीं तो ब्लडप्रेशर ऊंचा अथवा नीचा होने का बहाना ही कर दिया जाता है। चिकित्सा के पेशे में ऐसे माहौल के बीच डॉक्टर एस.के.अरोड़ा जैसे सेवाभावी इंसान भी है। डॉ.अरोड़ा अजमेर के जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के मेडीसिन विभाग के प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए हंै। डॉ. अरोड़ा वैशाली नगर स्थित एलआईसी कॉलोनी के अपने निवास स्थान पर ही बरसों से मरीजों को देख रहे हैं। अजमेर का शायद ही कोईघर परिवार बचा होगा, जो डॉ. अरोड़ा के सम्पर्क में न आया हो। किसी न किसी तरह जो लोग सम्पर्क में आए हैं उन्हें पता है कि डॉ. अरोड़ा लूट और स्वार्थ के बजाए सेवा की भावना से मरीज का इलाज करते हैं। यदि कोई मरीज फीस देने में असमर्थ है तो उसका इलाज भी उसी मरीज की तरह किया जाता है, जो फीस देता है।
ऐसा नहीं कि जिस मरीज से फीस नहीं ली, उसे कमीशन वाली दवा लिख दी। डॉ. अरोड़ा को पता है कि जो मरीज उनकी मामूली फीस भी नहीं दे सकता, वह बाजार से महंगी दवा भी नहीं खरीद सकता है, इसलिए डॉ. अरोड़ा ऐसे मरीज को सस्ती से सस्ती दवा लिखते हैं। मरीज जांच कहीं भी कराए, इससे डॉ. अरोड़ा को कोई सरोकार नहीं होता है। अलबत्ता रियायती दर पर जांच करने वाला सिविल लाइन स्थित दयाल वीणा अस्पताल का सुझाव अवश्य दिया जाता है। धर्मार्थ में चलने वाले इस अस्पताल में रियायती दर पर जांच होती है। ऐसा नहीं कि डॉ. अरोड़ा के पास मरीजों की कमी है, यदि डॉ. अरोड़ा चौबीस घंटे मरीजों को देखने का काम करें तो रात और दिन उनके घर के बाहर मरीजों की भीड़ लगी रहे। वर्तमान में सात-आठ घंटे रोजाना मरीज देखने का काम डॉ. अरोड़ा करते हैं। इस अवधि में उनके घर पर मरीजों की हमेशा भीड़ रहती है। चिकित्सा के क्षेत्र में डॉ. अरोड़ा ने जो मुकाम हासिल किया है, उसी के अनुरूप अब वे अपने पुत्र डॉ. पीयूष अरोड़ा को तैयार कर रहे हैं। ऐसा बहुत कम होता है, जब कोई बेटा अपने पिता के पदचिह्नों पर चले। आमतौर पर युवा वर्ग जल्द से जल्द पैसा कमाने की तमन्ना रखता है। लेकिन डॉ.पीयूष भी अपने पिता के पदचिह्नों पर ही चलना चाहते हैं। डॉ. पीयूष ने यूएसए तक में जाकर चिकित्सा की पढ़ाई की है। टीबी और चेस्ट के तो विशेषज्ञ हैं ही, साथ ही एलर्जी और अस्थमा जैसे रोग में सुपर स्पेशलिस्ट हैं। फेफड़ों में कैंसर के रोग पर फेलोशिप भी प्राप्त है। डॉ. पीयूष फेफड़ों की जांच दूरबीन से करने में विशेषज्ञ है। डॉ. पीयूष अपनी योग्यता के बल पर ही आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन उनका यह भी मानना है कि उनके पिता के मन में जो सेवा की भावना बरकरार है, वही भावना ईश्वर उनके मन को भी प्रदान करें। यही वजह है कि डॉ. पीयूष  अधिकांश नि:शुल्क चिकित्सा शिविरों में अपनी सेवाएं देते हैं। कोई भी संस्था जब डॉ. पीयूष को चिकित्सा शिविर के लिए आमंत्रित करती है तो अपने घर से दवाइयां और उपकरण लेकर डॉ. पीयूष शिविर में पहुंच जाते हैं। मुझे पता है कि डॉ. एस.के.अरोड़ा को अब प्रसिद्धी की कोई आवश्यकता नहीं है।
मैंने यह लेख डॉ. एस.के.अरोड़ा के लिए लिखा भी नहंी है। मैंने यह आलेख डॉ. पीयूष अरोड़ा के लिए लिखा है और इस लेख के लिखने का मकसद सिर्फ यही है कि डॉ. पीयूष भी डॉक्टरी के इस पेशे को अपने पिता की तरह सेवा की भावना से अपनाएं। आज डॉ. एस.के.अरोड़ा का समाज में जो मान सम्मान है, उसका मूल्य रुपयों से नहीं आंका जा सकता। समाज में आज भी किसी धनाढ्य व्यक्ति से ज्यादा सम्मान सेवाभावी इंसान की होता है।
(एस.पी. मित्तल) M-09829071511

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