Sunday 5 July 2015

क्या ओबामा और संघ मुसलमानों की सोच बदल सकते हैं?


(spmittal.blogspot.in)

व्हाइट हाउस से लेकर दिल्ली की संसद तक में इफ्तार पार्टी
मुसलमानों की सोच को लेकर अंतर्राष्ट्रीय जगत में जो स्थिति अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की है, वही स्थिति भारत में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की है। दुनियाभर के अधिकांश मुसलमान जहां अमरीका और ओबामा को मुस्लिम विरोधी मानते हैं, वहीं भारत के मुसलमान भी संघ के प्रति कोई सकारात्मक सोच नहीं रखते। एक तरह से संघ को मुसलमानों का विरोधी माना जाता है। मुसलमानों की जो सोच है, उसी को ध्यान में रखते रमजान माह के दौरान ओबामा  के व्हाइट हाउस से लेकर भारत की संसद तक में इफ्तार पार्टी के आयोजन हो रहे हंै। संघ से जड़े राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की ओर से चार जुलाई को संसद में एक इफ्तार पार्टी का आयोजन किया गया। इस पार्टी में अनेक केन्द्रीय मंत्री और मुस्लिम प्रतिनिधि शामिल हुए। संघ के प्रचारक और राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के मुखिया इन्द्रेश कुमार ने कहा कि अब देश के मुसलमान और उनकी सोच संघ के प्रति बदल रही है। कुल मिलाकर संसद की इफ्तार पार्टी का मकसद संघ की मुस्लिम विरोधी छवि में सुधार करना है।
इसी प्रकार अपने घर व्हाइट हाउस में इफ्तार पार्टी का आयोजन कर बराक ओबामा ने भी यह प्रदर्शित किया कि अमरीका का राष्ट्रपति मुसलमानों के खिलाफ नहीं है। अब सवाल उठता है कि क्या ओबामा और संघ मुसलमानों की सोच को बदल सकते हैं। असल में जब जब भी किसी मुस्लिम देश में कत्लेआम होता है, तो अमरीका मानवाधिकारों की दुहाई देकर उस देश पहुंच जाता है। अमरीका और मित्र देशों की सेना आज भी अफगानिस्तान में उलझी हुई है। अगले वर्ष तक अमरीका सहित सभी देशों की सेना को अफगानिस्तान से बाहर निकलना है। अफगानिस्तान के कट्टरपंथी मुसलमान आज भी अमरीका को अपना दुश्मन नम्बर वन मानते हैं। पड़ौसी देश पाकिस्तान में तो ड्रोन हमले कर बलूचिसतान जैसे क्षेत्रों में आतंकवादियों की कमर तोड़ रखी है। इससे पहले इराक में सद्दाम हुसैन जब शिया मुसलमानों पर अत्याचार कर रहे थे, तब शिया मुसलामनों की रक्षा के लिए अमरीका इराक में कूद पड़ा। इस जंग में अमरीका ने सद्दाम हुसैन से तो सत्ता छीन ली, लेकिन अमरीका पर एक बार फिर यह धब्बा लगा कि वह मुसलमानों विरोधी है। इससे पहले ईरान में भी ऐसे ही हालातों में अमरीका ने शाह खुमैनी के खिलाफ कार्यवाही की थी। समझ में नहीं आता कि अमरीका मुस्लिम देशों की घरेलू राजनीति और जंग में क्यों दखल देता है? हालांकि अमरीका के दखल से मुसलामनों का एक वर्ग मौत के घाट उतारे जाने से बच जाता है, लेकिन दूसरे वर्ग के खिलाफ जो कार्यवाही होती है, उसे सम्पूर्ण मुसलमानों के खिलाफ माना जाता है। आज यदि पाकिस्तान में आतंकवादियों के खिलाफ अमरीका ड्रोन हमले बंद कर दे तो आतंकवादी किसी भी समय नवाज शरीफ की सरकार को उखाड़ कर फेंक सकते हैं।
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ अब भले ही कुछ भी बकवास करें, लेकिन मुशर्रफ पाकिस्तान में आठ साल तक अमरीका के सहयोग से ही राष्ट्रपति बने रहे। हालांकि मुस्लिम देशों की घरेलू राजनीति में हस्तक्षेप करने की वजह से अमरीका को भारी खामियाजा भी भुगतना पड़ा है। बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने पर उम्मीद थी कि अमरीका के प्रति मुसलमानों की सोच में बदलाव आएगा, लेकिन ओबाका कोभी पाकिस्तान जैसे देशों में जो सैनिक कार्यवाही करनी पड़ी, उससे छवि सुधर नहीं पाई। हालांकि ओबामा के कार्यकाल में सैनिक कार्यवाही एक रणनीति के तहत की गई। यही वजह है कि आईएस जैसा खूंखार आतंकी संगठन सीरिया पर कब्जा करने के बाद इराक में भी जम गया है और अब आईएस की नजर पाकिस्तान और अफगानिस्तान पर लगी हुई है।
केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद संघ ने भी ऐसा कोई कदम नहीं उठाया, जिसकी वजह से मुसलमान नाराज हो। भाजपा की तरफ से धारा 370, सिविल कोर्ट और राममंदिर जैसे मुद्दों को संघ ने भी पीछे धकेल दिया है। पिछले सवा वर्ष से इन मुद्दों को लेकर संघ की ओर से कोई आंदोलन नहीं किया गया है। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी की सरकार को समर्थन देने के लिए भले ही नरेन्द्र मोदी को श्रेय दिया जा रहा हो, लेकिन इसके पीछे संघ की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही होगी। संघ के प्रचारक राम माधव को भाजपा का राष्ट्रीय महामंत्री इसलिए बनाया गया ताकि जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और भाजपा की गठबंधन वाली सरकार बन सके। आज भी जम्मू-कश्मीर की सरकार में राम माधव की पूरी  दखलंदाजी है। देखना है कि ओबामा और संघ की इफ्तार पार्टियों से क्या मुसलमानों की संच में कोई बदलाव होता है।
(एस.पी. मित्तल) M-09829071511

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