Tuesday 7 July 2015

आईएएस निरंजन आर्य ने झूठ बोलकर हासिल किया स्काउट गाइड के चीफ कमीशनर का पद?


(spmittal.blogspot.in)

राजस्थान के वरिष्ठ आईएएस निरंजन आर्य इस समय विभागीय जांच के आयुक्त के पद पर तैनात हैं। इसके साथ ही आर्य स्काउट एवं गाइड के राज्य संगठन के चीफ कमीशनर भी बने हुए हैं। आर्य वर्ष 2013 में तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत के सचिव थे, तब उन्होंने स्काउट गाइड के चीफ कमीशनर का चुनाव लड़ा था। तब उन्होंने कांग्रेस के पूर्व मंत्री ललित भाटी को हराया था। लेकिन अब आरटीआई से प्राप्त दस्तावेजों से पता चलता है कि आर्य ने झूठ बोलकर चीफ कमीशनर का पद हासिल किया है। किसी भी आईएएस को गैर राजनीतिक संगठन में शामिल होने के लिए अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम 1968 के नियम 13 के अंतर्गत सरकार से अनुमति लेनी होती है। इस नियम का पालन करते हुए आर्य ने 5 जून 2013 को कार्मिक विभाग को एक पत्र लिखा। इस पत्र में कहा गया कि उन्होंने वर्ष 2010 में भी स्काउट एवं गाइड के राज्य संगठन के चीफ कमीशनर का चुनाव लड़ा था और आज भी वे इस पद पर कायम हैं। इसलिए दो-तीन माह बाद होने वाले चुनाव में भाग लेने की अनुमत प्रदान की जाए।
चूंकि इस समय आर्य सीएम अशोक गहलोत के सचिव थे, इसलिए राजस्थान में किसी भी अधिकारी की इतनी हिम्मत नहीं थी कि वे आर्य के कथन को झूठा मानकर कोई जांच पड़ताल करते। सब जानते हैं कि गहलोत के कार्यकाल में आर्य ने जो चाहा वो किया। आर्य के रुतबे को देखते हुए ही कार्मिक विभाग के तत्कालीन विशेषाधिकारी इन्दरजीत सिंह ने 7 सितम्बर 2013 को सशर्त अनुमति दे दी। कार्मिक विभाग ने आर्य के इस कथन पर भरोसा दिया कि गत बार 2010 में चुनाव लडऩे से पहले विधिवत अनुमति प्राप्त कर ली गई थी। लेकिन आरटीआई कार्यकर्ता सूरज गर्ग ने जब कार्मिक विभाग से वर्ष 2010 की आर्य की अनुमति का पत्र मांगा तो कार्मिक विभाग ने साफ कर दिया कि उपलब्ध रिकॉर्ड में 2010 में अनुमति लेने का कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। कार्मिक विभाग ने  3 जून 2014 को गर्ग को जो जानकारी दी है। उसमें साफ लिखा है कि विभाग के पास 2010 की पत्रावली में अनुमति देने का कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए अब यह सवाल उठता है कि वर्ष 2013 में आईएएस निरंजन आर्य ने झूठ बोलकर चीफ कमीशनर का चुनाव लड़ा। आरटीआई कार्यकर्ता गर्ग की मांग है कि आर्य के खिलाफ सेवा नियमों के उल्लंघन के अंतर्गत सख्त कार्यवाही होनी चाहिए। इसके लिए गत 22 मई को गर्ग ने एक पत्र अजमेर के प्रभारी मंत्री वासुदेव देवनानी को भी दिया। इस पत्र में वो सारे दस्तावेज संलग्न किए गए, जो आर्य को झूठा साबित करते हैं। देवनानी ने भरोसा दिलाया कि आर्य के खिलाफ उचित कार्यवही की जाएगी। लेकिन इस पूरे प्रकरण में आर्य के खिलाफ अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हो पाई है। गर्ग का आरोप है कि आलोक गर्ग और पी.के.गोयल जैसे आईएएस अफसर निरंजन आर्य को बचा रहे हैं।
मलेशिया कांड भी उजागर हो चुका है
वर्ष 2012 में 4 से 7 जून के बीच मलेशिया के संडाकन शहर में स्काउट और गाइड की एक अंर्तराष्ट्रीय  कार्यशाला आयोजित हुई। एनवायरमेंट पर आयोजित इस कार्यशाला में आईएएस निरंजन आर्य ने भी भाग लिया। इस ससमय भी आर्य राज्य संगठन के चीफ कमीश्नर के पद पर थे। आर्य 4-5 दिनों तक मलेशिया में तो रहे, लेकिन एक भी दिन संडाकन की कार्यशाला में उपस्थित नहीं हुए। स्काउट गाइड के जॉनल डायरेक्टर अब्दुल रशीद ने तब स्काउट गाइड के देश के चीफ कमीशनर और हरियाणा के मुख्य सचिव एम.एल.जैन को एक पत्र लिखा। इस पत्र में निरंजन आर्य के कृत्य पर नाराजगी प्रकट करते हुए कहा गया कि आर्य भारत के प्रतिनिधि के तौर पर मलेशिया आए, लेकिन एक भी दिन कार्यशाला में शामिल नहीं हुए। इससे भारत की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ा है। चूंकि वर्ष 2012 में भी राज्य और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी, इसलिए भारत की छवि करने के बाद भी आर्य के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो सकी। गंभीर बात यह है कि इस कार्यशाला में आर्य को अकेले ही भाग लेना था, लेकिन वे अपने साथ ज्योतिबा फूले विश्वविद्यालय के निदेशक निर्मल तंवर को भी ले गए थे। तंवर को साथ ले जाने का मकसद यही था कि मलेशिया में जो मौजमस्ती है, उसके इंतजाम सरलता के साथ हो जाए। आर्य के इस कृत्य को लेकर राजस्थान के तत्कालीन मुख्य सचिव सी.के.मैथ्यू से भी शिकायत की गई, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के संरक्षण की वजह से आर्य के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई।
पत्नी ने लड़ा विधानसभा का चुनाव
निरंजन आर्य ने अशोक गहलोत के शासन में किस तरह से कार्य किया, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दिसम्बर 2013 में जब राज्य विधानसभा के चुनाव हुए तो पाली जिले के एक विधानसभा क्षेत्र से निरंजन आर्य की पत्नी ने भी कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। यह बात अलग है कि श्रीमती आर्य चुनाव हार गई। चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवारों को तय करवाने में भी आर्य की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। चूंकि आर्य ने कांग्रेस के शासन में एक तरफा नजरिया रखा, इसलिए अब भाजपा के शासन में आर्य को किसी भी महत्त्वपूर्ण पद पर नियुक्ति नहीं दी जा रही है।
(एस.पी. मित्तल) M-09829071511

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