Saturday 15 August 2015

अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार की हार चाहते हैं कार्यकर्ता

इसे राजनीति का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि सत्ता की मलाई खाते वक्त तो कार्यकर्ता संतुष्ट नजर आता है, लेकिन जब ऐसी मलाई खत्म या छिन जाती है, तो वह अपनी ही पार्टी का सर्वनाश देखना चाहता है। ऐस ही कुछ अजमेर नगर निगम के चुनाव में हो रहा है। निगम के साठ वार्डों के लिए 17 अगस्त को मतदान होना है, चुनावों के संबंध में जब कांग्रेस के किसी कार्यकर्ता से बात की जाती है तो वह अपनी पार्टी के उम्मीदवार की स्थिति को कमजोर बताता है। ऐसी ही राय भाजपा के कार्यकर्ता की भी होती है। यानि दोनों ही प्रमुख दलों के कार्यकर्ता अपनी पार्टी के उम्मीदवार की हार चाहते हैं। यही वजह है कि जो उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा है, वह चुनाव की जाजम अपने दम पर बिछा रहा है। कांग्रेस और भाजपा का शायद ही कोई उम्मीदवार होगा जो कार्यकर्ताओं के दम पर चुनाव लड़ रहा हो, यही वजह है कि उम्मीदवारों के साथ दूसरे वार्डों के समर्थक ज्यादा संख्या में हंै। वार्डों के आरक्षण की वजह से नेताओं को दूसरे वार्डों में जाकर चुनाव लडऩा पड़ रहा है। ऐसे नेताओं का जी जानता है कि उन्हें किन परिस्थितियों में चुनाव लडऩा पड़ रहा है। पार्टी के दफ्तर में बैठने के बाद भी कार्यकर्ता का कहना है कि इस वार्ड से तो पार्टी उम्मीदवार की हालत पतली है। जिन नेताओं को टिकिट नहीं मिला वो तो हर हाल में अपनी पार्टी के उम्मीदवार को हरवाना चाहते हैं, कई वार्डों में तो पार्टी के कार्यकर्ता निर्दलीय अथवा बागी उम्मीदवार के साथ खड़े है। दोनों ही दलों में इस बार बागियों की संख्या ज्यादा है। कंाग्रेस के मुकाबले भाजपा में इस मुद्दे पर रोचक स्थिति है। हालांकि अभी यह तय नहीं है कि भाजपा का मेयर बनेगा या नहीं, लेकिन मेयर पद के सभी दावेदार एक-दूसरे को हटाने के तिकड़मों में लगे हुए है। ऐसा इसलिए कि यदि मेयर का दावेदार पार्षद चुनाव में ही हार जाएगा, तो फिर दूसरे का मेयर बनाना आसान हो जाएगा। ऐसे उम्मीदवारों को अपनी जीत से ज्यादा दूसरे उम्मीदवार की हार की चिंता ज्यादा है। भाजपा में मेयर के सभी दावेदार अपनी जीत तो पक्की मान रहे, लेकिन दूसरे दावेदार की हार निश्चित मान रहे हंै। दूसरे दावेदार को हरवाने के लिए जो कुछ भी किया जा सकता है, वह किया जा रहा है।
राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों की इस स्थिति की वजह से ही माना जा रहा है कि इस बार निर्दलीय उम्मीदवार भी अधिक संख्या में विजय होंगे। भाजपा का चुनाव तो उत्तर और दक्षिण क्षेत्र में बंटा हुआ है। परिणाम के बाद मेयर के पद के लिए जो घमासान होगा, उसमें भी उत्तर और दक्षिण क्षेत्र के पार्षद विभाजित रहेंगे। यदि उत्तर क्षेत्र में पार्षद ज्यादा जीते तो धर्मेन्द्र गहलोत तथा दक्षिण क्षेत्र में पार्षद ज्यादा जीते तो सुरेन्द्र सिंह शेखावत मेयर बन सकते हैं। यही वजह है कि उत्तर क्षेत्र के विधायक वासुदेव देवनानी अपने क्षेत्र के उम्मीदवारों तथा दक्षिण क्षेत्र की विधायक अनिता भदेल अपने क्षेत्र के उम्मीदवारों का ही प्रचार कर रही है। जबकि ये दोनों सरकार में राज्यमंत्री भी हैं। कहा जाता है कि मंत्री का कार्य क्षेत्र तो पूरा प्रदेश होता है, लेकिन देवनानी अपने विधानसभा क्षेत्र से सटे दक्षिण क्षेत्र में तथा भदेल उत्तर विधानसभा क्षेत्र में प्रचार नहीं कर रही है। पार्टी के किसी भी बड़े नेता की इतनी हिम्मत नहीं की। वह देवनानी को भदेल और भदेल को देवनानी के क्षेत्र में प्रचार के लिए भेज दे। वहीं कांग्रेस का चुनाव प्रचार पूरी तरह भगवान भरोसे चल रहा है।
विधायकों की प्रतिष्ठा दाव पर
अजमेर जिले में अजमेर नगर निगम किशनगढ़ और केकड़ी नगर परिषद तथा सरवाड़ व बिजयनगर में नगर पालिका के चुनाव होने है। जिस प्रकार अजमेर शहर में देवनानी और अनिता भदेल की प्रतिष्ठा दाव पर है। उसी प्रकार किशनगढ़ में भाजपा के विधायक भागीरथ चौधरी, केकड़ी और सरवाड़ में भाजपा विधायक शत्रुघ्न गौतम तथा बिजयनगर में भाजपा की विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा व उनके पति भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा की प्रतिष्ठा दाव पर है। भाजपा ने पार्षद उम्मीदवारों के चयन में संगठन से ज्यादा क्षेत्रीय विधायकों को तवज्जों दी है, इसलिए अब हार जीत का श्रेय भी विधायकों के माथे पर ही है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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