Saturday 29 August 2015

रक्षाबंधन पर लें देश की रक्षा करने का संकल्प

रक्षाबंधन के पर्व पर 29 अगस्त को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से अजमेर स्थित पंचशील क्षेत्र के सामुदायिक भवन में एक समारोह आयोजित किया गया। संघ की निर्धारित और अनुशासित परम्परा के अनुरुप हुए इस समारोह के अध्यक्ष पद से बोलते हुए मैंने कहा कि भारतीय संस्कृति के हर भाई अपनी बहन की रक्षा करता ही है। आज जरूरत देश की रक्षा करने की है। जिस तरह से आतंकवाद और अलगाववाद पनप रहा है उससे देश की एकता और अखंडता खतरे में पड़ गई है। देश में ऐसे लोग मौजूद है जो खुले आम भारत की आलोचना करते हैं। सवाल किसी एक सत्ता का नहीं सवाल उन नीतियों का है जिनकी वजह से आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा मिल रहा है। दावा  तो यह किया जाता है कि देश में सभी धर्मो के लोग अमन और भाईचारे के साथ रहें लेकिन हकीकत यह है छोटी-छोटी बात पर साम्प्रदायिक तनाव और हिंसा हो जाती है। जिस तरह से पड़ौसी देश पाकिस्तान में हालात बिगड़ रहे है जिसकी वजह से भारत में लगातार आतंकवादी घटनाएं हो रही है। मैंने कहा रक्षा बंधन का पर्व उपयुक्त अवसर है जब हम देश की रक्षा करने का संकल्प ले। अब किसी व्यक्ति को सीमा पर जाकर दुश्मन देश से युद्ध नहीं करना पड़ेेगा। अब तो मिसाइल और राकेट लॉचर का जमाना है। जिसके अन्तर्गत दुश्मन देश अपनी ही धरती से ही हमला कर देता। इन परिस्थितियों में यह जरूरी है कि हमारे देश में एकता एवं देशभक्ति की भावना मजबूत हो। यदि भारत में रहने वाला हर नागरिक देशभक्ति की भावना से जीवन यापन करेगा तो हम पाकिस्तान ही नहीं बल्कि चीन और अमेरिका की मिसाइलों का भी मुकाबला कर सकते है, लेकिन यदि हमारे देश में अलगाववाद पनपेगा तो फिर हमारे जवान का सीना दुश्मन देश की बंदूक से ही छलनी हो जाएगा।
संस्कृति के अनुरुप हो जीवन
मैंने कहा कि हर भारतीय का जीवन हमारी संस्कृति के अनुरुप होना चाहिए। असल में अपनी सस्कृति को भूल कर पश्चिम की संस्कृति को अपना रहे है। पश्चिम की संस्कृति भोग और विलास की संस्कृति है जिसमें तप और त्याग नहीं होता। हमको जीने की कला नहीं बल्कि छोडऩे की कला सीखनी चाहिए। जब-जब व्यक्ति छोडऩे के लिए तत्पर रहाता है तब-तब उसका जीवन सरल होता जाता है। पश्चिम की भोगवादी और विलासिता से भरी जिंदगी से ही टीवी सीरियल बन रहे है। ऐसे सीरियल ने हमारने सामाजिक ताने-बाने को खंडित कर दिया है। अखंडित संस्कृति से युवा पीढ़ी भटकाव में है।
हिन्दुत्व तो जीवनशैली है
समारोह में राजकीय महाविद्यालय के प्रवक्ता नारायणलाल गुप्ता ने मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि हिन्दुत्व तो व्यक्ति की जीवन पद्धति है। हिन्दुत्व संबंध किसी धर्म से नहीं बल्कि व्यक्ति को एक सदाचारी बनाना है। आज दुनिया ने भी हिन्दुत्व पद्धति को माना है। संघ देश भर में इस बात का प्रचार कर रहा है कि आम व्यक्ति को देशभक्त जवान बनाया जाए। उन्होंने कहा कि आजादी के आंदोलन के दौरान 1940 के आसपास किसी ने भी नहीं सोचा था कि हिन्दुस्तान विभाजित हो जाएगा, लेकिन 1947 के आते-आते ऐसे हालात बन गए कि हिन्दुस्तान से एक टुकड़ा अलग हो गया। आजादी के आंदोलन की लड़ाई जब सब लोग मिलकर लड़ रहे थे फिर देश विभाजित क्यों हुआ? उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में हर पर्व आस्था और उमंग का होता है। आज हम रक्षाबंधन का पर्व इसी भावना के साथ मना रहे है, लेकिन हमें देश की हालत पर भी चिंतन करना चाहिए। आज देश की एकता और अखंडता को खतरा है। विदेशी ताकत हमारी कमजोरी का फायदा उठाकर देश को तोडऩा चाहती है। रक्षा बंधन पर्व पर हमें देश की रक्षा करने का भी संकल्प लेना चाहिए। इस भावना के साथ संघ के कार्यकर्ता देश भर में पिछड़ी और कच्ची बस्तियों में जाकर रक्षा सूत का धागा बांधते है। यह धागा हमारी एकता का प्रतीक है। हम एक-दूसरे की रक्षा का भरोसा दिलाते है। उन्होंने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में देश के हर नागरिक को एकजुट रहने की जरूरत है। संघ का उद्देश्य एक ऐसा समाज बनाने का है जिसमें देशभक्ति को सर्वधर्म मानते हुए सुयोग्य नागरिक बने इसलिए समाज के विभिन्न क्षेत्र में सक्रिय है।
अनुशासित और गरिमापूर्ण रहा समारोह
सामुदायिक भवन में आयोजित संघ का रक्षाबंधन का पर्व का समारोह अनुशासित और गरिमापूर्ण रहा। संघ की परंपरा के अनुरुप ध्वजारोहण हुआ। ध्वज वंदना की। रक्षाबंधन के अवसर पर ध्वज पर रक्षासूत्र बांधा गया। आमतौर पर समारोह चमक-दमक वाले होते है लेकिन संघ  का यह समारोह अनुशासित और गरिमापूर्ण था। सबसे पहले मुख्य वक्ता ने विचार रखे तो उसके बाद समारोह के अध्यक्ष को अपनी बात कहने का अवसर दिया गया। दो वक्ता के साथ ही समारोह समाप्त कर दिया गया। मैं चाहता था कि समारोह की एक फोटो लिया जाए लेकिन इसकी अनुमति नहीं दी गई। संघ का यह निर्णय सही है क्योंकि खबर और फोटो से जरूरी है काम होना। समारोह की समाप्ति पर संघ सेवकों ने एक-दूसरे के रक्षासूत्र बांधा। आमतौर पर समारोह की समाप्ति पर जलपान एवं भोजन की व्यवस्था होती है। इस पर आयोजकों का काफी पैसा खर्च होता है, लेकिन संघ में ऐसी कोई व्यवस्था देखने को नहीं मिली। समारोह स्थल के निकट ही निवास करने वाले एक स्वयं सेवक के घर पर ही जलपान की व्यवस्था की जाती है। इसमें दो या तीन वरिष्ठ स्वयं सेवक और एक अतिथि को शामिल किया जाता है। स्वयं सेवक अपने घर पर अपने सामथ्र्य के अनुसार सत्कार करता है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

No comments:

Post a Comment