Saturday 5 September 2015

क्या एडीए का अध्यक्ष भी देवनानी ही बनाएंगे इस बार किशनगढ़ का भी दावा।

अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष के पद पर नियुक्ति को लेकर राजनीतिक सरगर्मी अचानक तेज हो गई है। हालांकि अध्यक्ष पद पर अंतिम फैसला प्रदेश की सीएम वसुंधरा राजे करेंगी, लेकिन पिछले दिनों अजमेर में जो राजनीतिक घटनाचक्र चला, उसमें यह सवाल उठा कि क्या एडीए के अध्यक्ष का निर्णय भी स्कूली शिक्षा राज्यमंत्री और शहर के विधायक वासुदेव देवनानी करेंगे? चार माह पहले हुए जिला प्रमुख के चुनाव में देवनानी ने जिस तरह वंदन नोगिया की ताजपोशी करवाई, उसे जिले के भाजपा विधायक भी नाराज बताए गए। सूत्रों के अनुसार विधायकों की राय को दरकिनार कर देवनानी ने 23 वर्ष की कॉलेज छात्रा वंदना को जिला प्रमुख की कुर्सी पर बैठा दिया। अभी हाल ही में सम्पन्न हुए नगर निगम के मेयर के चुनाव में भाजपा को बगावत का भी सामना करना पड़ा, लेकिन हुआ वही जो देवनानी ने चाहा। देवनानी पहले ही दिन से धर्मेन्द्र गहलोत के पक्ष में थे। सामान्य वर्ग का पद होने के बाद भी देवनानी ने ओबीसी के गहलोत को मेयर बनवा दिया। असल में देवनानी इन दिनों प्रदेश की सीएम वसुंधरा राजे के भरोसे के मंत्री हैं, इसलिए सीएम ने देवनानी को अजमेर का प्रभारी मंत्री भी बना रखा है। राजनीति चाहे शहर की हो या देहात की। दोनों में देवनानी की राय को प्रमुखता दी जाती है। इसलिए वंदना और धर्मेन्द्र का चयन भी हुआ। अब जब एडीए के अध्यक्ष की चर्चा शुरू हुई है तो दावेदारों की नजर एक बार फिर देवनानी पर टिक गई है। दावेदारों की पहुंच भले ही सीएम राजे तक हो, लेकिन वे देवनानी की मिजाजपुर्सी में भी लगे हुए हैं। दावेदारों को पता है कि अध्यक्ष की नियुक्ति में देवनानी की राय बेहद महत्वपूर्ण होगी और अपने समर्थक के लिए देवनानी अपनी राजनीतिक ताकत भी लगाते हैं। अध्यक्ष का सबसे मजबूत दावेदार अजमेर देहात भाजपा के अध्यक्ष बी.पी. सारस्वत को माना जा रहा है। सारस्वत ने अपनी राजनीतिक कुशलता गत पंचायती राज और हाल में स्थानीय निकाय चुनाव में दिखा दी है। चार में से तीन में भाजपा का बोर्ड बनवाया और क्षेत्रीय विधायकों को भी संतुष्ट रखा है। सारस्वत को भरोसा है कि उनके कार्य से संतुष्ट विधायक ही अब सीएम के सामने उनकी पैरवी करेंगे। यदि सारस्वत को देवनानी सहित भाजपा के विधायकों का थोड़ा भी समर्थन मिल गया तो सारस्वत की नियुक्ति एडीए के अध्यक्ष पद पर हो जाएगी क्योंकि सीएम राजे का भरोसा सारस्वत पर पहले से ही है। राजे की वजह से ही सारस्वत देहात भाजपा के अध्यक्ष बने थे। सारस्वत वर्तमान में एमडीएस यूनीवर्सिटी में वाणिज्य संकाय के डीन भी हैं। दूसरी सशक्त दावेदारी शिवशंकर हेड़ा की है। हेड़ा पूर्व में संघ और भाजपा के विभिन्न पदों पर कार्य कर चुके हैं। सीएम राजे भी हेड़ा को एक स्वच्छ छवि वाला नेता मानती हैं, लेकिन हेड़ा की नियुक्ति में उनका स्वास्थ्य आड़े आ सकता है। हालांकि इस कमजोरी को छिपाने के लिए हेड़ा इन दिनों भाजपा की राजनीति में जरूरत से ज्यादा सक्रिय हैं। पिछले दिनों मेयर के चुनाव में भाजपा पार्षदों की पहली बाड़ाबंदी हेड़ा ने अपने की समाज की माहेश्वरी पब्लिक स्कूल में की। शहर भाजपा के अध्यक्ष  अरविन्द यादव भी दावेदार हैं। यादव को भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री भूपेन्द्र यादव का संरक्षण है। भूपेन्द्र यादव की वजह से ही अरविन्द शहर भाजपा के अध्यक्ष बने थे। यदि देवनानी और यादव ने मिलकर राजनीतिक जोर लगाया तो अरविन्द यादव एडीए की कुर्सी पर विराजमान हो सकते हैं। शहर की राजनीति में यादव अनिता भदेल के बजाए देवनानी के पाले में खड़े नजर आए हैं। जहां तक महिला एवं बाल विकास मंत्री भदेल का सवाल है तो मेयर चुनाव में उनके समर्थक सुरेन्द्र सिंह शेखावत की बगावत की वजह से भदेल की राजनीति स्थिति फिलहाल कमजोर है। धर्मेश जैन को भी दावेदार माना जा सकता है, लेकिन उनके साथ कोई बड़ा नेता नहीं है। जैन भाजपा के गत शासन में नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष रह चुके हैं, लेकिन भ्रष्टाचार से जुड़ी एक तथाकथित सीडी की वजह से जैन को दो वर्ष में ही इस्तीफा देना पड़ा। इस बार एडीए के अध्यक्ष पद पर किशनगढ़ की भी सशक्त दावेदारी है, क्योंकि एडीए की सीमा में पुष्कर और किशनगढ़ को भी शामिल किया गया है। ऐसे में किशनगढ़ से भाजपा के नेता भी लाइन में लगे हुए हैं। इसमें प्रमुख दावेदारी किशनगढ़ मार्बल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश टांक की है। टांक पूर्व में नगर परिषद के सभापति भी रह चुके हैं। लेकिन गत विधानसभा और हाल ही में नगर परिषद के चुनाव में टांक को भाजपा की आंतरिक राजनीति का शिकार होना पड़ा। पहले विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरणों के चलते टिकट कटा तो इस बार नगर परिषद के चुनाव में उपयुक्त वार्ड नहीं मिलने से पार्षद भी नहीं बन पाए। भाजपा के अधिकांश स्थानीय नेता भी मानते हैं कि सुरेश टांक के साथ राजनीतिक अन्याय हुआ है। मार्बल एसोसिएशन का अध्यक्ष होने के नाते टांक का किशनगढ़ की राजनीति में तो दबदबा है ही साथ ही उन्हें सीएम राजे का आर्शीवाद भी प्राप्त है। राजे ने टांक को भरोसा दिला रखा है कि उचित अवसर पर राजनीतिक समायोजन किया जाएगा। टांक को आर.के. मार्बल संस्थान का भी संरक्षण प्राप्त है। किशनगढ़ शहर की राजनीति में टांक की ही आवाज गूंजती है। हालांकि क्षेत्रीय विधायक भागीरथ चौधरी से पटरी नहीं बैठती है लेकिन चौधरी को भी यह अच्छी तरह पता है कि गत विधानसभा के चुनाव में उन्हें किस प्रकार भाजपा की उम्मीदवारी मिली और फिर किस प्रकार जीत हुई। टांक को क्षेत्रीय सांसद और केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री सांवरलाल जाट का भी समर्थन है। टांक के समर्थकों का कहना है कि अजमेर शहर के भाजपा नेताओं को बहुत कुछ मिल गया है इसलिए अब किशनगढ़ को मिलना चाहिए। चूंकि किशनगढ़ की सीमा जयपुर जिले से लगी हुई है इसलिए एडीए के संचालन में अजमेर के साथ किशनगढ़ की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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