Tuesday 8 September 2015

गाय का मांस भी हो रहा है साम्प्रदायिक।

आखिर किधर जा रहा है गौमाता का भारत।
वर्ष 1947 में जब भारत आजाद हुआ, तब करोड़ों लोगों ने सोचा होगा कि अब हम भारत में अपनी संस्कृति और रीति-रिवाज के साथ रह सकेंगे। इसमें हम गाय को अपनी माता मानेंगे और उसकी पूजा भी करेंगे। लेकिन आजादी के 68 साल बाद ऐसा प्रतीत होता है कि हमारी गौ माता का मांस साम्प्रदायिक हो गया है। आठ सितम्बर को न्यूज चैनलों पर दिनभर गौ माता के मांस पर विवाद होता रहा। रात होते-होते तो चैनलों पर लाइव बहस भी शुरू हो गई। मांस को लेकर इन चैनल वालों ने हिन्दुओं और मुसलमानों को आमने-सामने कर दिया।
सुबह की खबरों में कहा गया कि गुजरात सरकार ने एक विज्ञापन जारी किया है, जिसमें गाय के मांस को कुरान की शिक्षा के खिलाफ बताया है। इस विज्ञापन में गाय का मांस न खाने की बात कहते हुए गाय की रक्षा करने की अपील की गई। जब चैनलों में इस विज्ञापनों को गुजरात की भाजपा सरकार का बताया गया है, तो कांग्रेस और अन्य दल के मुस्लिम नेताओं ने बांहे चढ़ा ली। ऐसे नेताओं ने कहा कि कुरान में गाय का मांस नहीं खाने को लेकर कोई बात नहीं कही गई है। नेताओं ने आरोप लगाया कि गुजरात की भाजपा सरकार को पवित्र ग्रंथ कुरान की समझ ही नहीं है। लेकिन दोपहर होते-हाते गुजरात  सरकार न यह साफ कर दिया कि यह विज्ञापन सरकार की ओर से जारी नहीं किया गया है। लेकिन तब तक चैनल वाले गाय के मांस को साम्प्रदायिक रंग दे चुके थे। स्वभाविक था जब मुस्लिम नेता गाय के मंास खाने को जायज ठहरा रहे थे, तब हिन्दू नेता भी गाय के पक्ष में आकर खड़े हो गए। गाय को भारतीय संस्कृति से जोड़ते हुए नेताओं ने कहा कि किसी भी स्थिति में गाय का मांस नहीं खाना चाहिए।
यहां तक तर्क दिए गए कि गाय का मांस खाने से शरीर में अनेक बीमारियां होती है। जबकि गाय के दूध से बनने वाले दूध, दही, मक्खन, घी आदि का सेवन करने से शरीर स्वस्थ और मजबूत रहता है। सवाल यह नहीं है कि गाय का मांस कौन खाए और कौन नहीं, गाय का मांस तो अनेक हिन्दू भी खा जाते हैं। लेकिन चैनल वालों ने जिस प्रकार साम्प्रदायिक रंग दिया, वह देश के लिए खतरनाक है। जब इस देश में खूंखार आतंकी संगठन आईएस का खतरा मंडरा रहा हो, तब गाय के मांस को लेकर दोनों समुदायों का आमने-सामने होना देशहित में नहीं माना जा सकता। यह कटु सत्य है कि समाज में गौ माता को जितना सम्मान मिलना चाहिए, उतना नहीं मिलता, जब कोई गाय दूध देना बंद कर देती है, तो हमारे ही लोग गाय से पीछा छुड़ा लेते हैं। स्वाभाविक  है कि फिर ऐसी गाय कत्ल खाने में ही जाएगी। कत्ल होने के बाद उस मांस को कौन खा रहा है, इससे बेचारी गौ माता को क्या फर्क पड़ेगा। दूध न देने पर घर से बाहर निकालने और कत्ल करने वालों में क्या फर्क है? हालत तो इतने खराब है कि सरकार गौशालाओं के लिए जो अनुदान देती है, उसे भी गौशाला चलाने वाले गौ भक्त इधर-उधर कर देते हैं। फिर भी यदि भारतीय संस्कृति के अनुरूप गाय की रक्षा की जाए तो यह अच्छी बात है। गाय सिर्फ एक पशु नहीं है, बल्कि मनुष्य के जीवन के लिए अनिवार्य है। किसान हिन्दू हो या मुसलमान, गाय किसान के लिए खास महत्त्व रखती है। गाय के गोबर से किसान के घर का चूल्हा जलता है, तो गाय का दूध पीने से परिवार के बच्चे हष्ट-पुष्ट होते हैं। गाय किसान के घर की रखवाली भी करती है। गय जब मर जाती है, तब भी फायदा पहुंचाती है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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