Thursday 10 September 2015

लोकतंत्र में खत्म नहीं हो सकता आरक्षण।

10 सितम्बर को अजमेर में कलेक्ट्रेट पर आरक्षण के विरोध में प्रदर्शन किया गया। गुंजन शर्मा, रिटायर्ड डीएसपी जसयिंह, पंडित सुदामा शर्मा, चन्द्र प्रकाश आदि के नेतृत्व में हुए प्रदर्शन में बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। प्रदर्शन के अगवा नेताओं ने अपनी पीड़ा को रखा भी, लेकिन सवाल उठता है कि क्या इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में आरक्षण खत्म हो सकता है? जब वोट से सरकार चुनी जाती है तो फिर कौनसा राजनीतिक दल है, जो अपनी मौत का समान एकत्रित करेगा। अजमेर ही नहीं बल्कि देशभर में कई आंदोलन हो चुके हैं, लेकिन घटने की बजाए आरक्षण का दायरा बड़ा ही है। जब तक देश में लोकतंत्र है, तब तक आरक्षण को समाप्त अथवा कम करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यह बात कोई मायने नहीं रखती कि जिस आरक्षित वर्ग के परिवार में आईएएस, आईपीएस, आरएएस जैसे अधिकारी हैं, उन्हें तो कम से कम आरक्षण के लाभ से वंचित कर दिया जाए। जब इस मामले में आरक्षित वर्ग के लोग ही कोई पहल नहीं कर रहे हैं तो फिर सामान्य वर्ग के विरोध करने से क्या होगा? जो लोग आरक्षण हटाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं, उन्हें चाहिए कि वह रोजगार के दूसरे विकल्प तलाश करे, जिसमें योग्यता ही चयन का मापदंड हो। ऐसा न हो कि इस आरक्षण के मुद्दे पर समाज विभाजित हो जाए। वर्तमान परिस्थितियों में देश की एकता को खतरा है और यदि हम आरक्षण के मुद्दे पर विभाजित होंगे, तो उन ताकतों को अवसर मिल जाएगा, जो इस मुल्क को तोडऩा चाहते हैं। कई बार अन्याय को भी सहन करना पड़ता है, लेकिन जिन लोगों का परमपिता ईश्वर पर भरोसा है,उन्हें उनकी काबिलियत का लाभ भी अवश्य मिलेगा।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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