Friday 18 September 2015

तो क्या खान मंत्री रिणवा सीएम राजे को जिम्मेदार मान रहे हैं।

दैनिका भास्कर के राजस्थान संस्करण में 18 सितम्बर को प्रदेश के खान राज्यमंत्री राजकुमार रिणवा का एक इन्टरव्यू छपा है। यह इन्टव्यू बहुचर्चित खान आवंटन प्रकरण पर है। एसीबी ने खान विभाग के प्रमुख शासन सचिव अशोक सिंघवी सहित अब तक सात व्यक्तियों को गिरफ्तार किया है और इनके पास से कोई 5 करोड़ नगद, कई किलो सोना, चांदी और सम्पत्तियों के दस्तावेज बरामद किए हैं। एसीबी ने जिस मामले को पकड़ा है उसे 200 करोड़ रुपए का बताया जा रहा है। इन्टरव्यू में रिणवा ने कहा कि मैं तो नाम मात्र का खान राज्यमंत्री हूं। फाइलें मेरे पास आती ही नहीं हैं। फाइलें खान निदेशालय और विभाग के प्रमुख शासन सचिव अशोक सिंघवी के बीच ही आती-जाती हैं। मैंने इस संबंध में उचित स्तर पर अपनी बात भी कही है। रिणवां ने यह नहीं बताया कि वो उचित स्तर कौनसा है? हम यदि सरकार के प्रशासनिक ढांचे को समझें तो रिणवां का उचित स्तर सीएम वसुंधरा राजे हैं। चूंकि रिणवां खान विभाग के राज्यमंत्री हैं। इसलिए केबिनेट मंत्री के अधिकार सीधे मुख्यमंत्री के पास होते हैं। सब जानते हैं कि हर कोई मुख्यमंत्री कमाऊ विभागों की नकेल अपने पास रखता है। राज्यमंत्री वाले मंत्रालय में आईएएस स्तर का अधिकारी अपने भरोसे का लगाया जाता है। अशोक सिंघवी पर सीएम का भरोसा था इसलिए तो उन्हें खान और पेट्रोलियम विभाग का प्रमुख शासन सचिव बनाया गया। यह तो रिणवां की शराफत है कि उन्होंने मुख्यमंत्री का नाम लेने के बजाय उचित स्तर की बात कही है। अब सवाल उठता है कि जब रिणवां ने उचित स्तर पर अपनी बात रखी यानि सीएम को बताया तब सिंघवी की लूट-खसोट पर रोक क्यों नहीं लगी। एसीबी की जांच में यह सामने आया है कि गत जनवरी माह में जब निदेशक डीएस मारू तीन दिन की छुट्टी पर गए तो भ्रष्ट अति. निदेशक पंकज गहलोत ने 360 खानों की लीज जारी कर दी। इस लीज की प्रक्रिया पर अशोक सिंघवी की भी सहमति ली गई। यह सवाल अपने आप में महत्वपूर्ण है कि आखिर सिंघवी को किसका संरक्षण प्राप्त था। खान मंत्री की हैसियत से रिणवां ने तो साफ कर दिया है उनके पास तो फाइलें आती नहीं थी। रिणवां की सफाई के बाद अब इस मामले में सीएम राजे को अपनी ओर से पहल कर सफाई देनी चाहिए कि आखिर खान आवंटन की फाइलें मंत्री के पास क्यों नहीं आती थी? मैं यह पहले भी लिख चुका हूं कि किसी भी अधिकारी की इतनी औकात नहीं है वह अपने स्तर पर करोड़ों रु. की रिश्वत खा ले। अधिकारी रिश्वत तभी खाता है जब उसे सरकार में बैठे नेताओं का संरक्षण होता है। अभी सिंघवी की जुबान पूरी तरह खुली नहीं है। यदि सिंघवी बेइमानी की बात ईमानदारी के साथ बताएंगे तो प्रदेश के कई राजनेताओं के चेहरे पर से नकाब उतर जाएगी। इस मामले में सिंघवी के पिता का बयान बहुत महत्व रखता है। सिंघवी के मां-पिताजी जोधपुर में रहते हैं। उनके पिता का कहना है कि मेरे बेटे को रिश्वत खाने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि उसके सास-ससुर करोड़ों की सम्पत्ति दे गए हैं। एसीबी को अपनी जांच में सिंघवी के पिता के कथन को भी शामिल करना चाहिए।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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