Sunday 11 October 2015

घनश्याम तिवाड़ी अब भैरोसिंह शेखावत जैसी गलती ना करें।

शेखावत ने भी निकाली थी वसुंधरा के खिलाफ यात्रा
राजस्थान की भाजपा सरकार की सीएम वसुंधरा राजे के व्यवहार से क्षुब्ध होकर भाजपा के वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी ने यात्रा निकालने की घोषणा की है। तिवाड़ी का कहना है कि वे गांव-गांव जाकर सरकार के कामकाज का विश्लेषण करेंगे। मैं वसुंधरा राजे और तिवाड़ी के आपसी विवाद को यहां नहीं लिखना चाहता, लेकिन पाठकों को यह बताना चाहता हूं कि तिवाड़ी की तरह ही भैरोसिंह शेखावत ने भी अपने जीवनकाल में एक बार वसुंधरा राजे के भ्रष्टाचार के खिलाफ यात्रा शुरू की थी। उपराष्ट्रपति के पद पर रहने के बाद जब शेखावत ने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा और प्रतिभा पाटिल से हार गए, तब शेखावत अपना बोरिया बिस्तर समेट कर दिल्ली से जयपुर आ गए। तब शेखावत को राजस्थान में जो सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। इसकी वजह वसुंधरा राजे का मुख्यमंत्री होना बताया गया। तब शेखावत घनश्याम तिवाड़ी की तरह ही नाराज हुए और उन्होंने अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ यात्रा शुरू कर दी। यात्रा के दौरान शेखावत अजमेर भी आए। तब अधिकांश या यूं कहे कि सभी भाजपा नेता और कार्यकर्ता शेखावत से दूर रहे। उस समय अजमेर में एक समारोह का जो आयोजन किया, उसमें मुखिया सत्यनारायण गर्ग थे। गर्ग ने अपनी जेब में धनराशि खर्च कर शेखावत का समारोह आयोजित करवाया। अब्दुल बांरी जैसी भाजपा नेता को छोड़ दे तो कोई भी भाजपा नेता शेखावत को माला पहनाने नहीं आया। शेखावत की यात्रा की जो दुर्गति हुई, उसे देखते हुए स्वयं शेखावत ने ही अजमेर, जोधपुर, उदयपुर आदि के बाद अपनी यात्रा को समाप्त कर दिया। पूरा प्रदेश जानता हैं कि वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री रहते हुए किन विपरित परिस्थितियों में शेखावत को अपने दिन गुजारने पड़े और वह भी तब जब शेखावत देश के उपराष्ट्रपति के पद पर रह चुके थे। राजनीति में जो कद शेखावत का रहा, उसका आधा भी तिवाड़ी का नहीं है। जब शेखावत की यात्रा ही सफल नहीं हुई तो तिवाड़ी की यात्रा का अनुमान लगाया जा सकता है। उस समय तो शेखावत के साथ कैलाश मेघवाल भी थे लेकिन तिवाड़ी के साथ तो मेघवाल जैसा नेता भी नहीं है। यह बात अलग है कि शेखावत के निधन के बाद कैलाश मेघवाल वसुंधरा राजे की शरण में चले गए और आज विधानसभा का अध्यक्ष बन कर सत्ता का उपभोग कर रहे हैं।
अच्छा हो कि तिवाड़ी वसुंधरा सरकार के कामकाज के विश्लेषण के लिए गांव-गांव की यात्रा शुरू न करे, इसके बजाय तिवाड़ी को समय का इंतजार करना चाहिए। कम से कम बिहार चुनाव के नतीजों तक तिवाड़ी को शांति बनाए रखनी चाहिए। तिवाड़ी इस मुगालते में न रहे कि जब वे सरकार के विश्लेषण के लिए किसी गांव में जाएंगे तो ग्रामीण टूट पड़ेंगे। जहां तक भाजपा कार्यकर्ताओं का सवाल है तो कोई भी कार्यकर्ता तिवाड़ी के पास जाकर अपना राजनैतिक भविष्य खराब नहीं करेगा। अब कार्यकर्ता भी उसी नेता के पास जाता है जिसके पास सत्ता की मलाई होती है। जहां तक वसुंधरा राजे का सवाल है तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह स्वयं नजर बनाएं हुए हंै। जानकारों की माने तो राजे सरकार के कामकाज से केन्द्रीय नेतृत्व भी संतुष्ट नहीं है। जिस तरह से ललित मोदी और खान आवंटन प्रकरणों में राजे पर सीधे आरोप लगे हैं, उससे नेतृत्व भी मानता है कि भाजपा सरकार की छवि खराब हुई है।

(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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