Monday 19 October 2015

जजेज के बेटे-बेटियों की वकालत पर भी कोई नीति बनाए सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने यह अच्छा ही किया कि सरकारी की दखलांदाजी वाले राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को रद्द कर दिया। अब सुप्रीम की नीति से ही हाई कोर्ट के जजेज बनेंगे। पीएम नरेन्द्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को भले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाराजगी हो, लेकिनकल्पना कीजिए कि जब केन्द्र में मुलायम सिंह यादव, ओमप्रकाश चौटाला, जयललिता, करूणानिधि चन्द्रशेखर राव, लालू प्रसाद यादव आदि छह क्षत्रपों के सहयोग से कभी केन्द्र की सरकार बनी तो हाई कोर्ट के जज कैसे बनेंगे? इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। असल में सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों को जजेज बनाने से रोका है जो खुद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपराधी की तरह खड़े होते हैं, लेकिन इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट को जजेज के बेटे-बेटियों की वकालत पर भी कोई नीति बनानी चाहिए, ताकि कोर्टों में ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ काम हो सके। देश की जनता यह जानती है कि जजेज के बेटे और बेटियों की वकालत किस प्रकार से चलती है। देश विदेश की बड़ी-बड़ी कम्पनियां इन बेटे-बेटियों की क्लाइंट हैं। दिखाने को तो अपने रिश्तेदार वकील के कैसेज संबंधित जज सुनता नहीं है लेकिन जो दूसरा जज सुनता है उसे यह पता होता है कि किस जज का रिश्तेदार उसकी अदालत में उपस्थित हुआ है। मैं यह नहीं कहता कि अंकल जजेज एक दूसरे के बेटे-बेटियों का ध्यान रखते हैं, लेकिन आम जनता में ऐसी धारणा है कि योग्य और काबिल युवा वकील बड़ी मुश्किल से 10-20 कैसेज ले पाते हैं जबकि अंकल जजेज के रिश्तेदारों के पास कैसेज की लाइन लगी होती है। मैं यह भी नहीं कहता कि अंकल जजेज के रिश्तेदार वकील काबिल नहीं हैं। जिस किसी भी व्यक्ति ने लॉ की डिग्री ली है उसे मुंसिफ कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में वकालत करने का हक है। यदि सुप्रीम कोर्ट जजेज की नियुक्ति में राजनैतिक दखल नहीं चाहता है तो उसे जजेज के बेटे-बेटियों की वकालत पर भी कोई नीति बनानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट यह भी समझ ले कि यदि कोई अंकल जज तमिलनाडु में नियुक्त है तो उसके रिश्तेदार वकीलों के हितों की रक्षा देश के सभी हाई कोर्ट में हो सकती है। मतलब कि अपने राज्यों के वकीलों को जहां कैसेज मिलने में परेशानी होती है वहीं दूसरे राज्य का वकील आकर बड़ी-बड़ी कम्पनियों की पैरवी संबंधित राज्य में करता है। सिर्फ इसलिए कि उसका रिश्तेदार कहीं न कहीं जज है। यह माना कि अदालतों में बहुत ईमानदारी से काम होता है। कोई भी न्यायाधीश किसी भी प्रकार के लालच में नहीं आता है और न ही अपने वकील बेटे-बेटियों की सिफारिश करता है, लेकिन फिर भी अंकल जजेज के रिश्तेदारों के बारे में कोई नीति बननी ही चाहिए ताकि देश की जनता का भरोसा न्यायपालिका के प्रति बना रहे।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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