Friday 9 October 2015

आखिर क्यों बेइज्जती की जा रही है गरीब बच्चों की पहले सरकारी स्कूलों की दशा तो सुधारो

प्रदेशभर में इन दिनों सरकारी स्कूलों की शैक्षिक गुणवत्ता की जांच हो रही हैं। शिक्षा मंत्री से लेकर प्रशासनिक अधिकारी और ब्लॉक शिक्षा अधिकारी तक सरकारी स्कूलों में जाकर विद्यार्थियों की शैक्षिक गुणवत्ता जांच रहे हैं साथ ही स्कूलों के शिक्षकों की योग्यता को भी परखा जा रहा है। रोजाना समाचार पत्रों में यही बच्चों को बेइज्जत करने वाली खबरें छप रही हैं हर किसी की जांच में विद्यार्थी फेल हो रहे हैं। समझ में नहीं आता कि गरीब बच्चों को बेइज्जत कर सरकार क्या हासिल करना चाहती है। क्या सरकार को अपनी स्कूलों और उसमें पढऩे वाले बच्चों व पढ़ाने वाले शिक्षकों की हकीकत के बारे में पता नहीं है। क्या सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी प्राइवेट स्कूलों की तरह इन्टेलीजेन्ट हैं? जिसमें जब चाहो तब विद्यार्थियों की शैक्षिक योग्यता की जांच की जा सकती है। सरकार को इस कड़वे सच को स्वीकार करना चाहिए कि सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों की शैक्षणिक योग्यता बहुत कम है। जब हम आठवीं कक्षा तक विद्यार्थियों को बिना परीक्षा के ही अगली कक्षा में प्रवेश दे रहे हैं तो फिर विद्यार्थी की योग्यता खाक समझ में आएगी। ऐसे कई सरकारी स्कूल हैं जिनमें बच्चों की संख्या फर्जी है। स्कूल के शिक्षक अपनी नौकरी बचाने के लिए रजिस्टर में फर्जी नाम लिख रहे हैं। इतना ही नहीं कई स्कूलों में तो स्थाई शिक्षकों ने ठेके पर अपना शिक्षक रख रखा है। ग्रामीण क्षेत्रों की स्कूलों में तो शिक्षक सिर्फ खानापूर्ति करने के लिए जाते हैं। सरकार को सबसे पहले स्कूलों की दशा को सुधारना चाहिए। सरकार खुद मानती है कि हजारों शिक्षकों के पद रिक्त पड़े हैं स्कूलों में विषयवार शिक्षक तक नियुक्त नहीं हैं। हिन्दी विषय का शिक्षक बालिकाओं को होम साइन्स पढ़ा रहा है। शिक्षकों की नियुक्ति अपने गृह जिले से दूर-दराज में हो गई है। उनका समय तो आने जाने में ही पूरा हो जाता है। सरकार स्थानान्तरण की भले ही कितनी भी नीतियां बना लें लेकिन जब तक शिक्षक को अपने जिले अथवा शहर गांव में नियुक्ति नहीं मिलेगी तब तक सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर नहीं सुधर सकता है। होना तो यह चाहिए कि सरकार शिक्षक को अपनी मर्जी के अनुरूप स्कूल में नियुक्ति दे और फिर उससे परिणाम की गारन्टी ले। यदि शिक्षक संतुष्ट होकर बच्चों कों पढ़ाएगा तो फिर परिणाम भी दे सकता है। यह माना कि सरकार शिक्षकों को 50-50 हजार रुपए प्रति माह भुगतान कर रही है लेकिन इतनी तनख्वाह लेने के बाद भी शिक्षक संतुष्ट नहीं है। सरकारी स्कूलों में जब शिक्षक पढ़ाएंगे ही नहीं तो फिर विद्यार्थी क्या करेंगे। सरकारी स्कूलों में वे ही बच्चे जाते हैं जिनके परिवारों की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है कोई परिवार थोड़ा भी समृद्ध होता है तो वे अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में ही पढ़ाता है। बड़ी अजीब बात है कि प्राइवेट स्कूल के शिक्षक को मुश्किल से 10-15 हजार रुपए का वेतन मिलता है जबकि सरकारी स्कूुलों का शिक्षक वेतन के नाम पर मालामाल है असल में प्राइवेट स्कूल का मैनेजमेन्ट अच्छा होता है जबकि सरकारी स्कूल का मैनेजमेन्ट बेहद ही घटिया होता है। सरकार विद्यार्थियों की शैक्षिक गुणवत्ता जांचने के बजाए स्कूलों और शिक्षकों की दशा में पहले सुधार करे।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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