Tuesday 20 October 2015

केन्द्रीय मंत्री सांवरलाल जाट ने अपने कांग्रेसी समधी को बनवाया सहकारी बैंक का अध्यक्ष।



आखिर कार 20 अक्टूबर को अजमेर सेंट्रल को-ऑपरेटिव  बैंक के अध्यक्ष के पद पर मदन गोपाल चौधरी निर्विरोध चुन लिए गए। गत लोकसभा चुनाव से पहले तक कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे चौधरी अजमेर के सांसद और केन्द्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री सांवरलाल जाट के समधी हैं। जाट की पुत्री की शादी चौधरी के पुत्र से हुई है। जाट और चौधरी भले ही समधी रहे हो, लेकिन दोनों की राजनीतिक विचारधारा अलग-लग रही, जाट जहां भाजपा में सक्रिय रहे तो वहीं चौधरी कांग्रेस में सक्रिय थे। चौधरी केकड़ी ब्लाक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे तथा लम्बे समय तक देहात जिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष भी रहे। चौधरी ने गत विधानसभा के चुनाव में केकड़ी से कांग्रेस के उम्मीदवार रघु शर्मा के लिए प्रचार किया। चौधरी ने भाजपा के उम्मीदवार शत्रुघ्न गौतम  को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह बात अलग है कि चुनाव परिणाम गौतम के पक्ष में रहा। गत लोकसभा का चुनाव जब जाट ने भाजपा उम्मीदवार के तौर पर लड़ा, तब चौधरी ने कांग्रेस से संबंध तोड़े। क्योंकि उनके समधी चुनाव लड़ रहे थे। 
पीएम नरेन्द्र मोदी चाहे कितना भी दावा कर लें कि केन्द्रीय मंत्रियों और सांसदों के रिश्तेदारों को राजनीति में लाभ का पद नहीं दिया जाएगा। लेकिन अजमेर में सांवरलाल जाट ने अपने केन्द्रीय मंत्री की प्रतिष्ठा को दांव पर लगा कर अपने समधी मदन गोपाल चौधरी को बैंक का अध्यक्ष चुनाव दिया। इसे जाट का प्रभाव ही कहा जाएगा कि बैंक के 12 में से 10 निदेशक निर्विराध चुने गए। यह सभी जाट के समर्थक थे, इसलिए 20अक्टूबर को जब बैंक के अध्यक्ष का चुनाव हुआ तो चौधरी निर्विरोध चुन लिए गए। 
चूंकि जाट ने पिछले कई दिनों से अजमेर में ही जमे रहकर अपने समधी के लिए चुनावी चौपाल बिछाई थी, इसलिए निर्विरोध निर्वाचन के समय भी जाट ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। चौधरी ने सार्वजनिक मंच से स्वीकार किया कि वे अपने समधी सांवरलाल जाट की वजह से ही अध्यक्ष बने हैं। जाट ने भले ही अपने समधी को बैंक का अध्यक्ष बनवाया हो, लेकिन साथ ही एक बार फिर ये साबित कर दिया कि अजमेर की राजनीतिक पर उनका दबदबा है। 
नसीराबाद में क्यों हारी भाजपा
सांवरलाल जाट ने जिस प्रकार से समधी को बैंक का अध्यक्ष बनवाने में सारी ताकत झौंक दी, उससे यह सवाल उठता है कि आखिर नसीराबाद के उपचुनाव में भाजपा की हार क्यों हुई? मालूम हो कि जाट ने गत विधानसभा का चुनाव करीब 30 हजार मतों से नसीराबाद से जीता था, लेकिन बाद में लोसकभा चुनाव में जाट सांसद बन गए, तो नसीराबाद में उपचुनाव करवाने पड़े, तब भाजपा की उम्मीदवार श्रीमती सरिता गैना, कांग्रेस के रामनारायण गुर्जर से 386 मत से पराजित हो गई। तब यह आरोप लगा कि जाट ने पूरी ईमानदारी और मेहनत केसाथ भाजपा उम्मीदवार के लिए प्रचार नहीं किया। अजमेर की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि जाट जो तय कर लें, वही होता है। जाट ने अपने समधी मदन गोपाल चौधरी को अध्यक्ष बनवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यदि बैंक के चुनाव की तरह नसीराबाद के उपचुनाव में जाट ने मेहनत की होती तो भाजपा उम्मीदवार की हार नहीं होती। जब जाट कांग्रेस के नेता को बैंक का अध्यक्ष बनवा सकते हैं तो क्या उपचुनाव में भाजपा को जीत नहीं दिलवा सकते थे? और वह भी तब जब जाट स्वयं नसीराबाद से तीस हजार मतों से विजयी हुए। 
जिलेभर में बैंक की भूमिका
अजमेर सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक की जिलेभर में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सरकार भी विभिन्न योजनाओं में इसी बैंक के माध्यम से किसानों को रियायती दर पर ऋण उपलब्ध करवाती है। ऐसे में बैंक के अध्यक्ष की पकड़ जिलेभर के ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। 
मंत्री जाट के साथ अध्यक्ष चौधरी।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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