Thursday 29 October 2015

क्या आतंकी अबू कासिम के मारे जाने और छोटा राजन की गिरफ्तारी के विरोध में फिल्मकारों ने लौटाए अवार्ड?



29 अक्टूबर को भारतीय सेना ने आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर अबू कासिम को एक मुठभेड़ में मार डाला। कासिम पर सेना के सैकड़ों जवानों और कश्मीर के निर्दोष नागरिकों को मारने के आरोप है। कासिम पर सरकार ने 20 लाख रुपए का ईनाम भी घोषित कर रखा था। जम्मू-कश्मीर की सरकार और सेना के अधिकारियों का मानना है कि अबू कासिम के मारे जाने से कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति होगी। इससे पहले मुम्बई के कुख्यात अपराधी छोटा राजन को भी इंडोनेशिया में गिरफ्तार कर लिया गया। कुतर्क करने वाले भले ही इन घटनाओं को सरकार की कामयाबी न माने, लेकिन इससे आंतकियों और अपराधिक तत्वों में भय तो होगा ही। 29 अक्टूबर को ही देश के 12 फिल्मकारों ने अपने अवार्ड लौटाने की घोषणा की। सवाल उठता है कि क्या इन फिल्मकारों ने अबू कासिम के मारे जाने और छोटा राजन की गिरफ्तारी के विरोध में अवार्ड लौटाए हंै? इससे पहले भी देश के कुछ साहित्यकारों ने अपने अवार्ड लौटाए थे। कुछ साहित्यकारों और फिल्मकारों का आरोप है कि देश का माहौल खराब है और केन्द्र सरकार कुछ भी नहीं कर रही है। जो लोग अपने अवार्ड लौटा रहे हैं, वे यह नहीं बता रहे कि आखिर किस प्रकार से देश का माहौल खराब है। साहित्यकारों ने दो हत्याओं का जिक्र किया। एक हत्या कर्नाटक में और दूसरी यूपी में हुई। नि:संदेह किसी भी साहित्यकार की हत्या निदंनीय है। लेकिन हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। कर्नाटक में कांग्रेस की और यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार है। कायदे से साहित्यकारों और फिल्मकारों को संबंधित राज्य सरकारों के खिलाफ गुस्सा जाहिर करना चाहिए था। लेकिन जिस प्रकार केन्द्र सरकार के खिलाफ विरोध जताया जा रहा है, उससे प्रतीत होता है कि अवार्ड किसी राजनीतिक नजरिए से लौटाए जा रहे हैं। कुछ साहित्यकार और फिल्मकार देश का माहौल खराब होने की बात करते हैं, जबकि उनके अवार्ड लौटाने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेवजह भारत की प्रतिष्ठा कमजोर होगी।
अवार्ड लौटाने वालों के पास एक भी उदाहरण ऐसा नहीं है, जो यह जाहिर करता हो कि वर्तमान केन्द्र सरकार किसी पर जुल्म ढाह रही है। पूरा देश जानता है कि आजादी के बाद से किस प्रकार से दरबारियों को सरकारी अवार्ड मिले हैं। दरबार के प्रति वफादारी दिखाने के लिए बेवजह अवार्ड लौटा रहे हैं। यदि वाकई इस देश का माहौल खराब है, तो क्या माहौल को सुधारने की जिम्मेदारी देश के बुद्धिजीवी वर्ग की नहीं है। अच्छा होता कि  अवार्ड लौटाने वाले माहौल को सुधारने में सकारात्मक भूमिका निभाते। मैं अवार्ड लौटाने के मुद्दे को हिन्दू और मुसलमानों की राजनीति से नहीं जोडऩा चाहता। लेकिन इस बात का उल्लेख करना चाहता हंू कि कश्मीर के  4 लाख हिन्दू आज भी दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। कश्मीर में मौजूद आतंकवादी हिन्दुओं को अपने घरों में रहने नहीं देते हैं। इसी प्रकार तुष्टिकरण की नीति के चलते पश्चिम बंगाल की  सीएम ममता बनर्जी ने दुर्गा पूजा के आयोजनों पर ही रोक लगा दी है। असल में आज हिन्दुओं और मुसलमानों में सद्भावना का माहौल बढ़ाने की जरुरत है। यदि सत्ता के लालच में तुष्टिकरण की नीति को राजनीतिक दलों ने जारी रखा तो फिर हिन्दू और मुसलमानों के बीच खाई बढ़ती जाएगी। कुछ दरबारी साहित्यकार और फिल्मकार ऐसा ही कृत्य कर रहे हैं। 
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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