Thursday 8 October 2015

मावे की क्या बात है! सरकार में ही मिलावट है।

राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने 8 अक्टूबर को ऐलान किया कि प्रदेश में मावे की बिक्री पर रोक नहीं लगेगी। 7 अक्टूबर को स्वास्थ्य विभाग के आयुक्त बी.आर.मीणा और फूट सेफ्टी ऑफिसर शशिकांत शर्मा ने हाईकोर्ट में लिखकर दिया कि मावे में मिलावट की स्थिति को देखते हुए प्रदेशभर में मावे और उससे बनी मिठाई पर रोक लगा दी गई है। सवाल उठता है कि अफसरों ने जो रोक लगाई थी, उसे चौबीस घंटे के अंदर-अंदर मंत्री ने कैसे पलट दिया? क्या अफसरों ने रोक का आदेश जारी करने से पहले मंत्री को विश्वास में नहीं लिया? क्या राजस्थान में सरकार और अधिकारियों के बीच इतनी खाई हो गई है कि महत्त्वपूर्ण फैसलों में भी आपसी तालमेल नहीं होता है? खुद मंत्री राठौड़ ने स्वीकार किया कि मेरी जानकारी के बिना ही मावे पर रोक के आदेश जारी किए गए हैं। मावे पर रोक लगाने और फिर हटाने के मामले में एक बार फिर राजस्थान की भाजपा सरकार और सीएम वसुंधरा राजे की किरकिरी हुई है। अभी हाल ही में जो खान आवंटन घोटाला उजागर हुआ,उसमें भी सीएम राजे पर सीधे आरोप लगे हैं। राजे ने प्रदेश में खान विभाग का केबीनेट मंत्री नहीं बना रखा है। इस लिहाज से राजे ही खान विभाग की केबीनेट मंत्री हैं। एसीबी ने खान विभाग के प्रमुख शासन सचिव अशोक सिंघवी सहित आठ लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया है। आरोप है कि 45 हजार करोड़ का भ्रष्टाचार खान विभाग में हुआ है। सवाल उठता है कि जब मिलावटी मावे के प्रकरण में संबंधित मंत्री ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का फैसला अगले दिन ही पलट दिया, तो फिर खान विभाग में खानों के आवंटन के अफसरशाही के आदेशों को क्यों नहीं पलटा गया? क्या 45 हजार करोड़ के नुकसान में अधिकारियों को सरकार का संरक्षण था? इससे पहले भी सीएम राजे पर क्रिकेट के भस्मासुर ललित मोदी से शेयर बेचाने के नाम पर 11 करोड़ रुपए लेने के आरोप लगे हैं। सवाल मावे की बिक्री पर रोक लगाने और हटाने का नहीं है। सवाल यह है कि आखिर वसुंधरा राजे की सरकार में इतना घालमेल क्यों हो रहा है? क्यों सरकार की छवि मिलावट वाली बनती जा रही है। 7 अक्टूबर को जस्टिस महेश चंद शर्मा ने मौखिक टिप्पणी की थी कि यदि सरकार मावे में मिलावट को नहीं रोक सकती है, तो क्यों न मावे की बिक्री पर रोक लगा दी जाए? इसके बाद स्वास्थ्य विभाग के आयुक्त ने न्यायालय में मावे की बिक्री पर रोक लगाने का आदेश ही प्रस्तुत कर दिया। क्या वसुंधरा राजे की सरकार में इतनी मिलावट है कि वह मावे की मिलावट को नहीं रोक सकती? यदि राजेन्द्र सिंह राठौड़ को अपने विभाग की ईमानदार छवि बनानी है तो उन अधिकारियों के खिलाफ तत्काल कार्यवाही होनी चाहिए, जिन्होंने सरकार की मंजूरी के बिना मावे पर रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया। इसके साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि जांच के नाम पर स्वास्थ्य विभाग के इंस्पेक्टर मिठाई विक्रेताओं से वसूली न करें। सब जानते हैं कि प्रदेश में हेल्थ इंस्पेक्टरों का अभाव है। बडे-बड़े शहरों में भी तीन-चार इंस्पेक्टर ही कार्यरत हैं। अधिकांश इंस्पेक्टर कोई प्रभावी जांच की बजाए दुकानदारों से मासिक वसूली करने में लगे रहते हैं।
हलवाईयों पर राहत:
सरकार ने मावे की बिक्री पर से रोक हटाने का जो निर्णय लिया है, उससे प्रदेशभर के हलवाइयों को राहत मिली है। त्यौहारी सीजन में मावे की बिक्री पर रोक लगाने से हलवाइयों में हड़कंप मच गया था। बड़े हलवाई सीजन से पहले ही बड़ी मात्रा में मावे का स्टॉक कर लेते हैं। राजस्थान ही नहीं देशभर में कोल्डस्टोरेजों मेें इन दिनों लाखों किलो मावा हलवाइयों का ही भरा पड़ा है। अब यह हलवाइयों की भी जिम्मेदारी है कि वे शुद्ध मावे की मिठाई बनाकर बेचे। इसके लिए स्वयं हलवाइयों को आचार संहिता बनानी चाहिए। स्वास्थ्य विभाग के इंस्पेक्टरों को दिवाली के मौके पर रिश्वत देने के बजाए उपभोक्ताओं को शुद्ध मावे की मिठाई दी जाए। जस्टिस महेश चंद शर्मा का भी यही उद्देश्य है कि त्यौहारी सीजन में उपभोक्ताओं को शुद्ध मावे की मिठाई उपलब्ध हो।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

No comments:

Post a Comment