Friday 13 November 2015

आडवाणी, जोशी, यशवन्त, शत्रुघन और नरेन्द्र मोदी की ऐसी है कहानी।



हाल ही के बिहार चुनाव में भाजपा के बुरी तरह हारने पर बुजुर्ग नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यशवन्त सिन्हा के साथ-साथ फिल्म स्टार रहे शत्रुघन सिन्हा ने भी भाजपा के वर्तमान नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया है। ऐसे नेता कोई ढाई वर्ष पहले तब से कुलबुला रहे हैं जब मोदी को भाजपा ने पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया था। बुजुर्ग नेताओं और नरेन्द्र मोदी को लेकर मैंने एक कहानी लिखने की कोशिश की है। हालांकि मैं कोई कहानीकार नहीं हूं लेकिन भाजपा के वर्तमान हालातों को अपने शब्दों में पिरोया है।
हुआ यूं कि भारतीय संस्कृति के तहत एक संयुक्त परिवार था। इस परिवार का मुखिया अपनी रणनीति से राजनीति में व्यवसाय को चला रहे थे लेकिन व्यवसाय के शीर्ष पर अकेले पहुंचने में हर बार विफल रहे। दुनिया में जब आधुनिकता का दौर चला तो परिवार के होशियार बच्चे आगे आ गए। युवा टीम ने अपना एक लीडर भी चुना। इस युवा टीम ने परिवार के बुजुर्गों को समझाया कि अब दुनिया बदल गई है और राजनीति के व्यवसाय में तेज दौडऩा पड़ रहा है। इसलिए आप लोग मार्गदर्शक की भूमिका में आ जाओ, लेकिन बुजुर्गों ने नहीं माना और अपने नजरिए से दखलांदाजी करते रहे। बुजुर्गों की अड़ंगेबाजी के बाद ही युवा टीम को सफलता मिली और अकेले ही दम पर राजनीति के उस शीर्ष स्थान पर पहुंच गए जहां बैठने का सपना देश की आजादी के बाद में देखा जा रहा था। लेकिन परिवार के बुजुर्ग सदस्यों को अपने ही खून की यह सफलता रास नहीं आई और इसलिए मौके बे मौके अपने ही बच्चों को अपमानित करने की कोई कसर नहीं छोड़ी। आमतौर पर एक पिता के लिए सबसे ज्यादा खुशी तभी होती है जब उसका बच्चा उससे भी आगे निकल जाए और लोग कहें कि यह बच्चा तो अपने पिता से भी ज्यादा होनहार है। लेकिन इस संयुक्त परिवार के बुजुर्ग सदस्य इस बात से खुश नहीं होते थे कि लोग उनके बच्चों की बढ़ाई करें। बल्कि इसके उलट बुजुर्ग सदस्य इस इंतजार में थे कि युवाओं को कब विफलता मिले। पर यह बात अलग है कि सफल होने के बाद भी परिवार के युवा सदस्यों ने बुजुर्गों के मान सम्मान में कोई कसर नहीं छोड़ी। जन्मदिन होने पर सारा काम काज छोड़कर सुबह-सुबह बुजुर्गों को गुलदस्ता भेंट किया। बार-बार कहा कि परिवार के बुजुर्ग सदस्यों की वजह से ही सफलता हासिल हुई है। शीर्ष पर बैठे युवाओं ने यह भी समझाया कि अब माहौल बदल गया है। इसलिए नई व्यवस्थाओं को लागू करना होगा। लेकिन बुजुर्ग सदस्य तो उस कुर्सी पर बैठना चाहते थे जो देश की जनता ने उन्हें पूर्व में नहीं दी थी। बुजुर्गों की दखलांदाजी के बाद ही युवा टीम ने न केवल अपने कारोबार को मजबूती दी बल्कि दुनिया भर में फैलाया। दुनिया के बड़े-बड़े राजनेता भी यह मानने लगे कि भारत की युवा टीम अच्छा कार्य कर रही है। दुनिया के जिन ताकतवर लोगों से मिलना मुश्किल होता था वो एक-एक कर आधुनिक शोरूम में आने लगे। लेकिन फिर भी परिवार के बुजुर्ग सदस्य खुश नहीं हुए। जो जलन प्रतिद्वंद्वियों में थी उससे ज्यादा बुजुर्ग सदस्यों में देखी गई। कई बार तो युवा टीम की दिलेरी की प्रशंसा प्रतिद्वंद्वियों ने भी की लेकिन परिवार के अपने ही बुजुर्ग सदस्य निन्दा करते रहे। युवा टीम जब भी किसी राज्य में जाकर अपने व्यवसाय को बढ़ाना चाहती तो सबसे पहले बुजुर्ग सदस्य ही आलोचना करते। जब अपने ही परिवार के लोग माल को खराब बता रहे हैं तो फिर माल बिकेगा कैसे? इधर अपने लोग खिलाफ और उधर संबंधित राज्य के छोटे-बड़े व्यवसायी एकजुट हो गए। ऐसे माहौल में एक राज्य के बाद दूसरे राज्य में युवा टीम की करारी हार हो गई। दो राज्यों में व्यवसाय फेल होने के बाद अब बुजुर्गों को और अवसर मिल गया है। परिवार के छोटे से छोटे सदस्य से तो यह अपेक्षा की जाती है कि वह परिवार के अनुशासन में बंधा रहे, लेकिन जब बुजुर्ग सदस्य ही अनुशासन तोड़े तो फिर छोटे सदस्य से क्या अपेक्षा की जा सकती है। बुजुर्ग सदस्यों के इस कातिलाना हमले के बाद भी युवा टीम ने फिलहाल अपने हौंसलों को कमजोर नहीं दिखाया है। लेकिन देखना होगा कि जो लोग युवा टीम की जड़ों को काट रहे हैं उससे कैसे मुकाबला हो सकता है?
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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