Friday 27 November 2015

ब्यावर में हो रही है भाजपा की जग हंसाई। प्रदेश नेतृत्व खामोश क्यों



मुंह को मिठास देने वाली ब्यावर की तिलपट्टी गजक पूरे देश में मशहूर है और अब जब सर्दी के मौसम में मीठा मुंह होने की बारी आ रही है तो सत्तारूढ़ भाजपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं के मुंह का स्वाद कड़वा हो गया है। राजस्थान में ब्यावर की जुझारू शहरों में गिनती होती है। यहां के लोग इतने जागरूक हैं कि पानी को लेकर भी कफ्र्यू लगवा लेते हैं। राजनीतिक दल भाजपा का हो या कांग्रेस का, ब्यावर की राजनीति दोनों ही दलों के प्रदेश नेतृत्व को हमेशा मुंह चिढ़ाती रही है। जब जो दल सत्ता में होता है उसकी राजनीति तो ब्यावर में कुछ ज्यादा ही गर्म होती है। ऐसा ही अब भाजपा में हो रहा है। ब्यावर की जनता ने तो विकास की उम्मीद में नगर परिषद से लेकर केन्द्र सरकार तक भाजपा की कड़ी से कड़ी जोड़ दी है, लेकिन ब्यावर की जनता का यह दुर्भाग्य है कि भाजपा के लोग ही उस कड़ी के टुकड़े-टुकड़े कर रहे हैं। यही वजह है कि न तो नगर परिषद में न राज्य सरकार में और न केन्द्र में सरकार होने से कोई लाभ मिल रहा है। भाजपा के मंडल अध्यक्ष का पद तो तमाशा बन गया है। ब्यावर के लोगों के यह समझ में ही नहीं आ रहा कि आखिर सत्तारूढ़ पार्टी का अध्यक्ष है कौन। क्षेत्रीय विधायक शंकर सिंह रावत के समर्थक जयकिशन बल्दुआ को अध्यक्ष मानते हैं तो पूर्व विधायक देवीशंकर भूतड़ा के समर्थक मुरली तिलोकानी को। अध्यक्ष को लेकर जो भ्रम की स्थिति है उस पर भाजपा का प्रदेश नेतृत्व खामोश है। हालांकि क्षेत्रीय सांसद हरिओम सिंह राठौड़ प्रदेश के महामंत्री भी हैं, लेकिन राठौड़ भी ब्यावर के  झगड़ालू नेताओं के बीच उलझना नहीं चाहते। इसलिए राठौड़ कभी विधायक रावत के साथ खड़े नजर आते हैं तो कभी भूतड़ा-तिलोकानी के साथ। विधायक का कहना है कि बल्दुआ का निर्वाचन विधिवत तरीके से हुआ है, लेकिन वहीं तिलोकानी-भूतड़ा गुट का कहना है कि चुनाव में फर्जीवाड़ा हुआ था। प्रदेश नेतृत्व कभी कहता है कि बल्दुआ के निर्वाचन पर स्टे है और कभी कहता है कि जांच के बाद चुनाव की प्रक्रिया को सही माना गया है। लेकिन प्रदेश नेतृत्व स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कह रहा। भाजपा के जिला अध्यक्ष बीपी सारस्वत की पटरी विधायक रावत से नहीं बैठती है इसलिए यह माना जा रहा है कि सारस्वत का झुकाव भूतड़ा-तिलोकानी गुट की तरफ है, लेकिन वहीं सारस्वत अपनी निष्पक्षता को भी बनाए रखे हुए हैं। पिछले दिनों सारस्वत को दोबारा से देहात का अध्यक्ष चुना गया, लेकिन तब विधायक रावत ने खुली खिलाफत की थी। अकेले रावत ही ऐसे विधायक थे जो सारस्वत के चुनाव के समय बैठक में उपस्थित नहीं हुए। हालांकि इसके बाद भी सारस्वत ने रावत का कोई विरोध नहीं किया, लेकिन वर्तमान में ब्यावर के जो हालात हैं उससे सारस्वत भी दूर ही रहना चाहते हैं। असल में ब्यावर विधानसभा क्षेत्र ग्रामीण और शहरी भाग में विभाजित है। रावत लगातार दूसरी बार ग्रामीण क्षेत्र के रावत मतदाताओं के बल पर विधायक बने। रावत को हराने के लिए ब्यावर के मतदाताओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। खुद देवीशंकर भूतड़ा ने बागी होकर रावत के सामने चुनाव लड़ा। भले ही भूतड़ा को पार्टी ने निष्कासित कर दिया हो, लेकिन शहरी कार्यकर्ताओं में आज भी भूतड़ा की पकड़ है। अब चूंकि भूतड़ा निष्कासित हैं इसलिए विधायक रावत शहर में भी अपने पैर जमाना चाहते हैं। पहले रावत ने नगर परिषद की सभापति अपनी समर्थक बबीता चौहान को बनवा दिया और अब ब्यावर शहर के ही जयकिशन बल्दुआ को अध्यक्ष बनवाने के लिए प्रयासरत हैं। विधायक रावत के शहर में बढ़ते प्रभाव की वजह से ही शहरी कार्यकर्ता एकजुट हो रहे हैं। टिकिट बंटवारे के समय भी शहरी और ग्रामीण उम्मीदवार को लेकर खींचतान होती है। कभी शहर के तो कभी ग्रामीण क्षेत्र के कार्यकर्ता को उम्मीदवार बना दिया जाता है, इसे राजनीति का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि भले ही पार्टी एक हो, लेकिन कार्यकर्ता शहर और देहात में बंटे हुए हैं। देखना है कि भाजपा का प्रदेश नेतृत्व ब्यावर के संकट को किस प्रकार से हल करता है। फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव तक मामले को टाल दिया गया है। फिलहाल जो आभार नजर आ रहे हैं उसमें विधायक रावत की ही जीत दिख रही है।

(एस.पी. मित्तल)
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