Sunday 8 November 2015

आखिर बिहार में कैसे जीतती नरेन्द्र मोदी की भाजपा



7 नवम्बर को पीएम नरेन्द्र मोदी ने चन्द्रकोट पहुंचकर कश्मीरियों के लिए 80 हजार करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा की और अगले ही दिन 8 नवम्बर को बिहार में नरेन्द्र मोदी की भाजपा बुरी तरह विधानसभा का चुनाव हार गई। मोदी की भाजपा की हार सुनिश्चित होने के साथ ही टीवी चैनलों पर राजनीति के पंडितों ने दिनभर बताया कि भाजपा क्यों हारी। किसी ने मंत्रियों के बयानों का हवाला दिया तो किसी ने कहा कि मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान से नितीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के महागठबंधन की जीत हुई है। लूटे-पीटे भाजपा नेताओं ने भी अपने तरीके से प्रतिक्रिया दी। असल में बिहार में शुरू से ही महागठबंधन के जीतने की उम्मीद थी। गत लोकसभा चुनाव में भाजपा को जो एक तरफा जीत मिली उसका कारण लालू और नितीश के अलग-अलग होना था। भाजपा मात्र 39 प्रतिशत मतों से ही लोकसभा की अधिकांश सीटें जीत गई लेकिन तब भी 59 प्रतिशत वोट भाजपा के खिलाफ पड़ा। अब विधानसभा चुनाव में जब नितीश, लालू, कांग्रेस आदि सब एकजुट हो गए तो फिर भाजपा कैसे जीतती? बिहार में जातीय समीकरण इस तरह हावी है कि वहां राजनीति का गणित गड़बड़ा जाता है। ऐसा नहीं कि 59 प्रतिशत वोटों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए भाजपा ने कोई प्रयास नहीं किया। भाजपा ने पूरी ताकत लगाकर प्रचार तो किया लेकिन जातीय समीकरण को तोड़ा नहीं जा सका। यह बात माननी ही होगी कि नितीश कुमार के शासन को बिहार के लोगों ने सही माना है। इसलिए जब लालू के वोट नितीश के साथ आ गए तो भाजपा और नरेन्द्र मोदी की हार को टाला नहीं जा सका। इस महागठबंधन में कांग्रेस ने भी बहती गंगा में हाथ धो लिए हैं। गत बार जिस कांग्रेस में चार-पांच उम्मीदवार जीते थे इस बार यह संख्या बढ़कर करीब 25 तक पहुंच गई है। कांग्रेस की तो इसी से जीत है कि बिहार में नरेन्द्र मोदी की हार हो गई। 243 में से महागठबंधन को 178 और भाजपा गठबंधन को मात्र 60 सीटें मिली है। सबसे ज्यादा उम्मीदवार लालू की राजद के जीते हैं, जबकि भाजपा तीसरे नम्बर पर है। दूसरे नम्बर पर जेडियू है।
मोदी को करना होगा विचार :
पीएम की कुसी पर बैठने के साथ ही मोदी ने नारा दिया -सबका साथ सबका विकास। इस नारे के पीछे मुसलमानों की राजनीति भी थी। मोदी यह नहीं चाहते थे कि उन पर मुसलमान विरोधी होने का आरोप लगे। इसलिए पिछली दिवाली को भी मोदी कश्मीर गए और इस बार भी 7 नवम्बर को कश्मीर पहुंचकर 80 हजार करोड़ का पैकेज दिया। भले ही नरेन्द्र मोदी कश्मीर में 4 लाख हिन्दुओं को वापस नहीं बसा सके हो, लेकिन कश्मीर की मदद करने में मोदी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। बिहार के चुनाव में भी गली कूचों की रैली में मोदी ने मुसलमानों के लिए जारी की गई योजनाओं की जानकारी दी। मोदी ने कई बार कहा कि नितीश कुमार और लालू प्रसाद मुसलमानों के हितैशी नहीं है जितना मैं ध्यान रखता हूं। अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से बड़े-बड़े विज्ञापन इलेक्ट्रोनिक और प्रिन्ट मीडिया में बिहार चुनाव के दौरान जारी किए गए जिसमें बताया गया कि मुसलमानों के लिए विकास की कौन-कौनसी योजनाए हैं, लेकिन इन सब के बाद भी मोदी की भाजपा को बिहार में बुरी तरह हार देखनी पड़ी। अगले दो वर्षो में उत्तर प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु सहित 8-10 छोटे-बड़े राज्यों में चुनाव होने हैं। कांग्रेस का यह प्रयास होगा कि जीत का जो फार्मूला बिहार में अपनाया गया वहीं फार्मूला संबंधित राज्यों में भी अपनाया जावे। राजनीति में सब संभव है। यदि यूपी में मुलायम सिंह और मायावती ने मिलकर चुनाव लड़ा तो भाजपा की बिहार से भी ज्यादा दुर्गति यूपी में होगी। पंजाब में अकाली दल के खिलाफ पहले से ही नाराजगी है। जबकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व को चुनौती देना मुश्किल है।  दो साल बाद लोकसभा चुनाव की सरगर्मी शुरू हो जाएगी और मोदी का सबका साथ सबका विकास का नारा धरा रह जाएगा। 
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

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