Wednesday 4 November 2015

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उत्तराधिकारी के विवादों का हो जाएगा निपटारा।



असली खरीददार बच जाएंगे ब्लैकमेलिंग से।
देश भर की अदालतों में लाखों ऐसे मामले विचाराधीन है, जिसमें बहनों ने भाइयों द्वारा बेची गई जमीन अथवा अन्य सम्पत्तियों को चुनौती दे रखी है। ऐसी चुनौती हिन्दू उत्तराधिकारी कानून में 2005 में हुए संशोधन की आड़ में दी गई। 2005 से पहले पिता के निधन के बाद यदि भाइयों ने किसी जमीन को बेच दिया है तो इसे वैद्य बेचान माना गया। लेकिन वर्ष 2005 में इस कानून में संशोधन कर पिता की सम्पत्ति में विवाहित और अविवाहित बेटियों को भी पुत्रों के समान अधिकार दे दिए गए। कानून में संशोधन होते ही एसडीएम कोर्ट से लेकर राजस्व अदालतें और न्यायिक अदालतों में मुकदमों के अम्बार लग गए। जिस किसी व्यक्ति ने लाखों-करोड़ों रुपए देकर बेशकीमती जमीन खरीदी, उस बेचान को परिवार की बहनों ने चुनौती दे दी। 20-30 बरस पुराने बेचान को भी न्यायालय में ले जाकर  अटका दिया। अदालतों ने भी ऐसी जमीनों पर बनने वाले प्रोजेक्ट को बंद करवा दिया। इस मामले में गंभीर बात यह रही कि जिन भाइयों ने विधिवत रूप से जमीन को बेचा, उन्होंने ही अपने वकील के माध्यम से बहनों के जरिए मुकदमें करवा दिए। जिस व्यक्ति ने जमीन खरीदी वह अदालत के सामने बहुत गिड़गिड़ाया कि भाइयों ने जब जमीन बेची तब बहनों के अधिकार की बात ही नहीं थी। अदालतों में यह भी तर्क दिया गया कि जब 2005 में कानून में संशोधन हुआ है तो फिर 2005 से पहले के मामलों में यह संशोधन लागू होता ही नहीं है, लेकिन बेचारे खरीददार की एक नहीं सुनी गई। जिस खरीददार को भारी नुकसान हो रहा था उसने अदालत का स्टे हटवाने के लिए बहनों को भी जमीन की मुंहमांगी कीमत दी। यानि एक व्यक्ति को एक जमीन को दो बार खरीदना पड़ा। कई उदाहरण तो ऐसे आए जिसमें वकीलों ने ही बहनों की खोजबीन कर अदालतों में मुकदमे दायर किए। आज भी अदालतों में बहनों के उत्तराधिकार के मामले विचाराधीन है। इस उत्तराधिकार कानून के तहत ही बहनों ने राजस्व रिकार्ड में बेची गई जमीन अपने नाम दर्ज करवा ली। उस व्यक्ति की पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है जिसने 20-30 बरस पहले पिता के निधन के बाद उत्तराधिकारी पुत्रों से जमीन खरीदी और फिर उस पर प्रोजेक्ट बना लिया, लेकिन इसी बीच कानून की आड़ लेकर बहनों ने अदालत में चुनौती दे दी। जो खरीददार ब्लैकमेलिंग का शिकार हो रहे थे उन्हें दो नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक खंडपीठ ने कहा कि हिन्दू उत्तराधिकारी कानून में संशोधन 9 सितम्बर 2005 को हुआ है। ऐसे में 9 सितम्बर 2005 से पहले जो भी खरीद फरोख्त हुई है उस पर नया कानून लागू नहीं होगा। यानि 9 सितम्बर 2005 से पहले जिस व्यक्ति ने पिता के निधन के बाद सिर्फ पुत्रों से जमीन अथवा संपत्ति खरीदी है उसमें बहनों का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। यानि ऐसे बेचान पूरी तरह वैध है और उन्हें बहनों द्वारा न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद पटवारी, नायब तहसीलदार, तहसीलदार आदि अधिकारी राजस्व रिकार्ड में बहनों के नाम भी दर्ज नहीं कर सकते है। 9 सितम्बर 2005 से पहले के बेचान को जिन बहनों ने चुनौती दे रखी है उनके विवाद भी अब अपने आप निरस्त हो जाने चाहिए। अब कोई भी राजस्व अदालत 9 सितम्बर 2005 के पहले के मामलों में बहनों को उत्तराधिकारी नहीं मान सकती है। इसी प्रकार पार्षद, सरपंच आदि किसी सूची को लेकर परिवार का सिजरा बनाते है उसमें बहनों को उत्तराधिकारी नहीं दर्शा सकते। अब 9 सितम्बर 2005 के बाद जो बेचान हुए है उसी में अदालतें बहनों को उत्तराधिकारी मान कर निर्णय दे सकती है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511

2 comments: