Tuesday 22 December 2015

आखिर डंडे की भाषा ही समझती है संसद।



जिस राज्यसभा में पिछले सात माह से जुवेनाइल जस्टिस बिल लंबित पड़ा था, उसी राज्यसभा में 22 दिसम्बर को इस बिल को स्वीकृत करने के कगार पर ला दिया। इसलिए यह सवाल उठता है कि क्या हमारी संसद भी डंडे की भाषा ही समझती है। बहुचर्चित निर्भया गैंग रेप में 20 दिसम्बर को जब मुख्य आरोपी नाबालिग होने का वास्ता देकर मात्र तीन साल में जेल से बाहर आ गया तो देश की राजधानी दिल्ली में एक बार फिर जनआंदोलन उफान पर आ गया। जिन सांसदों ने राज्यसभा में इस बिल को लटका रखा था, उन्हें शर्म आनी चाहिए थी कि निर्भया की मां भी इंडिया गेट पर धरने पर बैठ गई। सांसदों को शर्म महसूस हो इसके लिए एक मां ने अपनी उस बेटी की पहचान भी उजागर कर दी, जिसके साथ बेरहमी से गैंगरेप हुआ था। सवाल राज्यसभा में भाजपा और कांग्रेस या अन्य विपक्षी दलों का नहीं है। सवाल तो यही है कि राज्यसभा में इस बिल को मंजूरी नहीं मिली। यह भी माना कि यदि बिल मंजूर हो जाता, तब भी निर्भया का बलात्कारी जेल से रिहा ही होता, लेकिन बाद में तो इस बिल का प्रभाव पड़ता ही। बिल जब मंजूर हो जाएगा, तभी तो कानून बनेगा। इस मामले में निर्भया की निडर मां को शाबासी मिलनी चाहिए कि उसने जनआंदोलन से जुड़कर संसद पर जो दबाव बनाया, उसी का नतीजा रहा कि 22 दिसम्बर को राज्यसभा में अधिकांश सांसदों ने संशोधित बिल पर अपना समर्थन जताया। यह सही है कि यदि निर्भया की मां डंडा लेकर इंडिया गेट पर नहीं बैठती तो यह बिल राज्यसभा में यूं ही पड़ा रहता। इस बिल को भाजपा सांसद शांताकुमार ने प्रस्तुत किया। बिल में यह प्रावधान किया गया कि नाबालिग की उम्र 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष कर दी जाए। लेकिन इस बिल को कांग्रेस के सांसद आनंद शर्मा ने सलेक्ट कमेटी में भिजवा दिया। फलस्वरूप बिल आगे बढ़ ही नहीं सका। यदि सात माह पहले यह बिल मंजूर हो जाता तो इस अवधि में अनेक अपराधियों को सजा मिल सकती थी। जो कांग्रेस राज्य सभा में लगातार हंगामा कर रही थी, उसने भी 22 दिसम्बर को बिल पर अपनी सहमति जतार्ई। राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलामनबी आजाद ने हंसते हुए कहा कि भले ही सरकार से हमारे मतभेद हैं, लेकिन फिर भी इस बिल का हम समर्थन कर रहे हैं। आजाद के इस बयान से साफ प्रतीत होता है कि यदि निर्भया की मां का डंडा नहीं होता तो 22 दिसम्बर को भी राज्यसभा में कांग्रेस इस बिल का समर्थन नहीं करती। 
विरोध में तर्क:
नाबालिग की उम्र 18 से घटाकर 16 करने के विरोध में भी राजनेताओं ने तर्क दिए हैं। यहां तक कि महिला सांसदों ने भी कहा कि यह समस्या का समाधान नहीं है। अपराधी की कोई उम्र नहीं होती है। आज 18 से 16 वर्ष उम्र की जा रही है और जब 16 वर्ष से कम उम्र का युवा कोई अपराध करेगा तो क्या नाबालिग होने की उम्र को 16 वर्ष से भी कम कर दिया जाएगा? महिला सांसदों का कहना था कि उम्र घटाने के बजाए पुरुषों खासकर युवाओं की मानसिकता में बदलाव किया जाना है। ऐसा क्यों होता है कि जब किसी लड़की को अकेला और असहाय देखा जाता है तो युवा गंदी निगाह से देखते हैं। महिला सांसदों का कहना रहा कि घर परिवार का वातावरण ऐसा होना चाहिए कि जिसमें लड़कों को अच्छी शिक्षा दी जा सके। लड़कों को इस बात का भी अहसास होना चाहिए कि उनके परिवार में भी मां, बहन, भाभी, पत्नी आदि के रूप में महिलाए हैं। 

(एस.पी. मित्तल)
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