Wednesday 23 December 2015

स्मार्ट सिटी का भट्टा, भ्रष्टाचार से बना अजमेर का मास्टर प्लान ही बैठाएगा।



पीएम नरेन्द्र मोदी और सीएम वसुंधरा राजे ने अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने का जो सपना संजोया है, उसका भट्टा भ्रष्टाचार से बना मास्टर प्लान ही बैठाएगा। 22 दिसम्बर को अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष हेमंत गेरा ने जनप्रतिनिधियों के साथ एक बैठक कर प्रस्तावित मास्टर प्लान पर सुझाव मांगे। जनप्रतिनिधियों ने अपने नजरिए से सुझाव भी दिए, लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि का ध्यान भ्रष्टाचार से बने मास्टर प्लान की ओर गया ही नहीं। जिस मास्टर प्लान पर सुझाव आमंत्रित किए जा रहे हैं। उसे एक प्राइवेट कंपनी में तैयार किया है। मास्टर प्लान के प्रारूप को देखने से साफ पता चलता है कि कंपनियों के अधिकारियों ने ईमानदारी के साथ काम नहीं किया। प्रारूप में कंपनी को अजमेर शहर और आसपास के क्षेत्र की वास्तविक स्थिति दिखानी चाहिए थी, लेकिन कंपनी ने भ्रष्टाचार की वजह से अपने नजरिए से मास्टर प्लान तैयार कर लिया। अजमेर के पेरोफेरी क्षेत्र में 118 गांवों को शामिल किया गया है। इन गांवों को एक मुश्त रुरल बेल्ट दिखा दिया गया है, जबकि मौके पर वाणिज्य गतिविधियों के साथ-साथ अनेक आवासीय कॉलोनियां विकसित हो गई है। पेराफेरी क्षेत्र के जनप्रतिनिधि पिछले कई वर्षों से आबादी क्षेत्र घोषित करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन इनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। जमीनों के जिन जानकारों ने मास्टर प्लान बानने वाली कंपनी के अधिकारियों से सम्पर्क किया तो मास्टर प्लान में कृषि भूमि को भी वाणिज्य दर्शा दिया गया है। इससे ज्यादा और क्या मजाक होगा कि परबतपुरा क्षेत्र में जहां ऑटो मोबाइल हब बना हुआ है, उसे मास्टर प्लान में औद्योगिक क्षेत्र बताया गया है। इसी प्रकार खाली पड़ी भूमि को ऑटो मोबाइल क्षेत्र दर्शाया गया है। जिस भूमि को ओसीएफ बताया गया है, वहां पहले से ही कोमर्शियल गतिविधियां चल रही है। 
यह अच्छी बात है कि प्राधिकरण के अध्यक्ष हेमंत गेरा ने जनप्रतिनिधियों से सुझाव मांगे, लेकिन अच्छा होता कि अजमेर के जनप्रतिनिधि मास्टर प्लान बनाने वाली कंपनी के भ्रष्टाचार का भी मुद्दा उठता। यदि मास्टर प्लान के प्रारूप की जांच करवाई जाए तो बहुत बड़ा भ्रष्टाचार सामने आ सकता है। पीएम मोदी और सीएम राजे जब अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने जा रहे है, तो यह जरूरी है कि अजमेर की वर्तमान स्थिति को सामने लाया जाए। ऐसा नहीं हो सकता कि 118 गांवों को रुरल बेल्ट बताकर हकीकत को छिपाया जाए। जब तक पेराफेरी के 118 गांवों के बारे में कोई स्पष्ट स्थिति नहीं आएगी, तब तक अजमेर स्मार्ट सिटी नहीं बन सकता है। जहां तक शहरी क्षेत्र का सवाल है तो सड़कों की चौड़ाई वर्तमान स्थिति को देखकर निर्धारित की जानी चाहिए। इस मामले में अजमेर शहर के दोनों भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी और श्रीमती अनिता भदेल को सक्रिय भूमिका निभानी पड़ेगी। यदि ये दोनों विधायक राजनीतिक कारणों से आपस में ही उलझते रहे तो फिर पीएम और सीएम का स्मार्ट सिटी का सपना सपना ही रह जाएगा। अजमेर शहर के विकास के लिए ही दोनों विधायकों को स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री भी बनाया गया है, लेकिन इसे अजमेर की जनता का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि देवनानी और भदेल में मित्रता के बजाए दुश्मनी है। हालात इतने खराब है कि दोनों मंत्री एक साथ किसी समारोह में शामिल होने से भी बचते है। सवाल उठता है कि जब सत्तारुढ़ पार्टी के मंत्री है, एकजुट नहीं है तो फिर अजमेर स्मार्ट कैसे बनेगा। जहां तक अफसरों का सवाल है तो अफसर तो आते जाते रहते हैं। खुद हेमंत गेरा प्राधिकरण के कार्यवाहक अध्यक्ष हैं। ऐसे में गेरा की कितनी रुचि होगी। इसे समझा जा सकता है। संभागीय आयुक्त का पद पिछले चार माह से रिक्त पड़ा हुआ है। अजमेर की कलेक्टर डॉ. आरुषि मलिक ही संभागीय आयुक्त का काम कर रही है। 

(एस.पी. मित्तल)
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