Saturday 19 December 2015

काश! कोई कह दे राजेन्द्र हाड़ा जी जिन्दा हैं।



आज यह ब्लॉग मैं बेहद ही दुखी मन से लिख रहा हूं। मुझे इस हकीकत का पता है कि अब मेरे वरिष्ठ साथी एडवोकेट राजेन्द्र हाड़ा जी अब कभी भी दफ्तर नहीं आएंगे और न ही मुझसे कभी किसी काम के बारे में पूछेंगे। दैनिक पंजाब केसरी के अजमेर ब्यूरो दफ्तर में प्रतिदिन दोपहर 3 बजे आने वाले राजेन्द्र हाड़ा का चेहरा मुझे अब कभी भी देखने को नहीं मिलेगा। क्योंकि 19 दिसम्बर को सायं 4 बजे मैं हाड़ा जी के मृत शरीर का अंतिम संस्कार कर आया हूं। अजमेर के आशागंज स्थित श्मशान स्थल पर जब उनका इकलौता मासूम बेटा अपने पिता को अग्नि दे रहा था, तब मेरी आंखों में आंसू थे। 19 दिसम्बर को सुबह कोर्ट जाने के लिए हाड़ा जी उठे। दैनिक कार्य करने के बाद नहाए और कोर्ट जाने के लिए तैयार हुए, लेकिन तभी अपने घर पर ही चक्कर खाकर ऐसे गिरे कि फिर उठ ही नहीं पाए। परिजन तत्काल हाड़ा जी को नेहरू अस्पताल ले गए। जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। हाड़ा जी की मौत का सदमा सबसे ज्यादा उनके बेटे और पत्नि को लगा है और परिजन भी आहत हैं। लेकिन मैं अभी यह समझ ही नहीं पा रहा कि अब कभी भी हाड़ा जी के साथ काम करने के अवसर नहीं मिलेगा। कोई माने या नहीं, लेकिन मुझे लम्बे समय तक राजेन्द्र हाड़ा जी का रोजाना दोपहर तीन बजे दफ्तर आने का इंतजार रहेगा। मुझे नहीं पता कि यह इंतजार मेरे मन से कब खत्म होगा। हाड़ा जी पेशे से वकील रहे। लेकिन पत्रकारिता में वे हमेशा सक्रिय रहे। हाड़ा जी ने दैनिक नवज्योति और दैनिक भास्कर में लम्बे समय तक काम किया। अखबारों में कई पृष्ठों के इंचार्ज रहे। हाड़ा जी की लेखनी का कोई मुकाबला नहीं रहा। किसी भी विषय पर लिखना उन्हें अच्छी तरह आता था। मात्र 52 वर्ष की उम्र में इस संसार को छोड़कर चले जाएंगे इसका आभास स्वयं राजेन्द्र हाड़ा को भी नहीं था। 18 दिसम्बर को जब रोजाना की तरह हाड़ा जी दफ्तर आए तो अपने दायित्व का अच्छी तरह निर्वहन किया और कल फिर आएंगे इस वायदे के साथ दफ्तर से रवाना हो गए। भगवान मुझे भविष्य के बारे में जानने की इतनी ताकत देता कि मैं हाड़ा जी के 19 दिसम्बर के बारे में जान जाता तो 18 दिसम्बर को हाड़ा जी को दफ्तर से जाने ही नहीं देता। मुझे क्या पता था कि 18 दिसम्बर का दिन हाड़ा जी के लिए आखिरी दिन था। यदि हाड़ा जी को कोई रोग होता तो हम उसका भरपूर इलाज करवाते। हाड़ा जी के छोटे भाई डॉ. प्रियशील हाड़ा तो खुद अनुभवी चिकित्सक हैं। न जाने डॉ. हाड़ा ने कितने लोगों को जीवन दान दिया है। डॉ. हाड़ा को भी इस बात का अफसोस है कि राजेन्द्र हाड़ा ने शरीर को जांच पड़ताल करने तक का अवसर नहीं दिया। डॉ. हाड़ा धोलाभाटा क्षेत्र में रहते हैं। जबकि राजेन्द्र हाड़ा भगवान गंज। सुबह खबर आई कि बड़े भाई बेहोश हो गए हैं। उन्हें नेहरू अस्पताल ले जाया जा रहा है। खबर मिलते ही डॉ. हाड़ा नेहरू अस्पताल पहुंचे तो देखा कि राजेन्द्र हाड़ा मृत हो चुके हैं। यानि घर से अस्पताल के बीच ही राजेन्द्र हाड़ा ने आखिरी सांस ली। मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि स्वर्गीय हाड़ा जी की पत्नि, बेटे और अन्य परिजनों को इस आघात को सहन करने की ताकत दे, क्योंकि हाड़ा जी जाने से पहले अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर पाए।
(एस.पी. मित्तल)
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