Friday 11 December 2015

कैलाश कंवर राठौैड़ का अनशन पर बैठना वसुंधरा सरकार के लिए शर्मनाक।



50 वर्षीय कैलाश कंवर राठौड़ अपने परिवार पर हो रहे जुल्मों के खिलाफ 10 दिसम्बर से अजमेर के कलेक्ट्रेट के बाहर आमरण अनशन पर बैठ गई हैं। श्रीमती राठौड़ के समर्थन में उनके पति पीरदान सिंह राठौड़ भी अनशन पर बैठे हैं। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जब 13 दिसम्बर को अपनी सरकार के दो वर्ष पूरा होने पर जयपुर में भव्य जश्न मना रही हों, तब उन्हीं की जाति की एक मजबूर महिला आमरण अनशन पर बैठे तो यह सरकार के लिए शर्मनाक बात है। सत्ता में बैठे लोगों को इसलिए भी शर्म आनी चाहिए कि इस समय अजमेर में सत्ता की ताकत महिलाओं के पास है। शहर की भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल वसुंधरा सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं, तो जिला प्रमुख वंदना नोगिया भी महिला नेत्री हैं। इतना ही नहीं कैलाश कंवर राठौड़ की राजपूत जाति की ही श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा जिले के मसूदा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा की विधायक हैं। अजमेर की जिला कलेक्टर डॉ. आरुषि मलिक है। इसी प्रकार रेंज की आईजी भी श्रीमती मालिनी अग्रवाल हैं। महिलाओं की इतनी ताकत होने के बाद भी कैलाश कंवर राठौड़ की कोई सुनवाई नहीं होना, यह जाहिर करता है कि समाज में महिलाओं की जो ताकत बढ़ी है, उसका फायदा साधारण और जरुरतमंद महिलाओं को नहीं मिल रहा है। हम आधी आबादी के सम्मान की तो बात करते हैं, लेकिन जब ताकतवर महिलाओं के सामने कमजोर और अबला महिलाओं की मदद करने की बात आती है तो ताकतवर महिलाएं मुंह फेर लेती हैं। ऐसे में सवाल उठता है तो फिर कुछ महिलाओं को ताकतवर क्यों बनाया जाए? मुख्यमंत्री राजे से लेकर अजमेर की जिला कलेक्टर डॉ. मलिक की यह जिम्मेदारी नहीं है कि वे मौत के कगार पर खड़ी कैलाश कंवर को बुलाकर बात करें। कैलाश कंवर न तो मुख्यमंत्री और न कलेक्टर बनाने की मांग कर रही हैं। कैलाश कंवर का तो हाथ जोड़कर इतना ही निवेदन है कि उनकी दो बेटियों अंजू व दुर्गा के खिलाफ जो झूठे मुकदमें दर्ज किए गए हैं, उन्हें वापस लिया जाए। पुलिस की जांच में यह साबित हो गया है कि दोनों बेटियों पर कोई अपराध नहीं बनता है, लेकिन इसके बाद भी कैलाश कंवर को राहत नहीं मिल पा रही है। सरकार एक ओर बेटियों की शिक्षा और सुरक्षा के लिए बड़े-बड़े अभियान चलाती है, लेकिन यदि एक मां को अपनी दो जवान बेटियों के मान सम्मान के लिए आमरण अनशन पर बैठना पड़े तो फिर सवाल उठता है कि क्या यह सरकार अंधी, बहरी और गूंगी हो गई है? सरकार के निकम्मेपन की इससे ज्यादा क्या हद हो सकती है कि 11 दिसम्बर को दूसरे दिन भी आमरण अनशन पर बैठी कैलाश कंवर से कोई सरकारी कारिंदा मिलने नहीं आया। 10 दिसम्बर को अजमेर जिले के प्रभारी मंत्री वासुदेव देवनानी जब जनसमस्याओं के समाधान के लिए कलेक्ट्रेट के अंदर जा रहे थे, तब कैलाश कंवर ने भी न्याय दिलाने का आग्रह किया, लेकिन देवनानी ने समस्या के समाधान को कोई तवज्जों नहीं दी।
कैलाश कंवर के पति पीरदान सिंह राठौड़ का आरोप है कि देश के सुप्रसिद्ध मार्बल संस्थान आर.के.मार्बल के मालिकों की शह पर उनके परिवार पर जुल्म ढाए जा रहे हैं। पूर्व में उनके ट्रोले ही आर.के.मार्बल के पत्थरों की ढुलाई का काम करते थे। आर.के.माबचर््ल का सरकार के सभी तंत्रों पर इतना असर है कि उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। यहां तक कि उन्हें कलेक्ट्रेट के बाहर आमरण अनशन की अनुमति भी नहीं दी गई। फलस्वरूप कलेक्ट्रेट के फुटपाथ पर बैठकर ही अनशन करना पड़ रहा है। दिसम्बर की कड़कड़ाती सर्दी में रात और दिन फुटपाथ पर बैठना कितना कष्ट कारक होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। पीरदान अपने परिवार पर हो रहे जुल्मों के विरोध में पिछले एक वर्ष से लगातार आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन पीरदान के परिवार को कोई राहत नहीं मिल रही है।  श्रीमती कैलाश कंवर डायबिटीज की रोगी भी हैं। डायबिटीज के रोगी को हर दो तीन घंटे में कुछ न कुछ खाना जरूरी होता है। ऐसे में लगातार भूखे रहने से कैलाश कंवर के जीवन को खतरा हो सकता है। कैलाश कंवर का कहना है कि जब तक उसके परिवार पर दर्ज झूठे मुकदमे वापस नहीं होते, तब तक अनशन जारी रहेगा। भले ही अजमेर कलेक्ट्रेट के फुटपाथ पर उनका दम निकल जाए। उनका परिवार स्वाभिमान की जंग लड़ रहा है। देश का इतिहास बताता है कि राजपूत महिलाओं ने अपने स्वाभिमान के खातिर बलिदान दिए हैं। ऐसे में यदि मेरे परिवार के लिए मेरा बलिदान हो जाए, तो यह मेरे लिए गौरव की बात होगी। 


(एस.पी. मित्तल)
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