Sunday 6 December 2015

मालदार अम्बेडकरवादी क्या थोड़ी मलाई अपनों के लिए छोड़ सकते है?



लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी की भी हिम्मत नहीं है कि आरक्षण व्यवस्था को समाप्त अथवा कम करने का उपाय करें।  6 दिसम्बर को सभी राजनीतिक दलों ने स्वयं को भीमराव अम्बेडकर का समर्थक बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अम्बेडकर की पुण्यतिथि भी उत्साह और उमंग के साथ मनाई गई। इसमें कोई दो राय नहीं कि आजादी के आंदोलन और फिर देश के संविधान को बनाने में अम्बेडकर की खासी भूमिका रही। अम्बेडकर ने ही पिछड़े वर्गों के लोगों को जो आरक्षण का संवैधानिक अधिकार दिलवाया, उसी की वजह से आज हजारों पिछड़े परिवार मालदार हो गए हैं, लेकिन वहीं लाखों परिवार अभी भी पिछड़े ही हैं। गरीबी भी ऐसी की देखी न जाए। आरक्षण का लाभ लेकर जो लोग मालदार बन गए हैं, उन्हें शायद अब जयंती और पुण्यतिथि मनाना भी पसंद नहीं हो, लेकिन लाखों गरीब परिवार अभी अम्बेडकर की प्रतिमाओं पर माला पहना रहे हैं। आज जब पूरा देश अम्बेडकर की पुण्यतिथि मना रहा है, तब यह सवाल महत्वपूर्ण है कि क्या मालदार अम्बेडकरवादी थोड़ी मलाई अपनों के लिए छोड़ सकते हैं? यानि जिस परिवार में एक या दो सदस्य सरकारी नौकरी पर लग गया है, उस परिवार को आरक्षण के लाभ से वंचित कर पिछड़े गरीब परिवार के एक सदस्य को नौकरी पाने का अवसर दिया जाए। असल में हो यह रहा है कि किसी दलित परिवार से यदि कोई सदस्य अफसर बन गया तो वह फिर अपने परिवार के सभी सदस्यों को आरक्षण का लाभ दिलवा कर नौकरी दिलवा देता है। ऐसे लाखों दलित परिवार मिल जाएंगे, जिनके एक भी सदस्य को सरकारी नौकरी नहीं मिली है। क्या ऐसे परिवार का हक नहीं बनता कि वे आरक्षण का लाभ प्राप्त करें? देखने में आया है कि पिछड़े वर्ग में ही आरक्षण की वजह से अमीर और गरीब दो वर्ग हो गए हैं। अमीर परिवार अपने बच्चों को अतिरिक्त शिक्षा और सुविधा दिलवा कर अपने ही गरीब परिवार के सदस्यों को पीछे धकेल देते हैं। अब परीक्षा परिणामों में आरक्षित वर्ग का प्रतिशत भी बढ़ रहा है। ऐसे में अभावों में रहने वाला दलित परिवार आरक्षण के लाभ से वंचित हो रहा है। जब आरक्षण का मकसद पिछड़े, गरीब, दलित परिवारों को उठाना है तो इसका वितरण भी पात्र व्यक्तियों में समान रूप से होना चाहिए। जब पिछड़े वर्ग के सभी परिवारों को लाभ मिलेगा, तभी उद्देश्य पूरा होगा। जो राजनीतिज्ञ दलितों के वोट से सत्ता की मलाई खा रहे हैं, उनकी भी यह जिम्मेदारी है कि आरक्षण का लाभ हर दलित परिवार को मिले। अन्यथा पिछड़े वर्ग को भी आपस में भी भेदभाव की स्थितियों का सामना करना पड़ेगा। जरा सोचिए कि एक दलित परिवार में एक या दो सदस्य आईएएस बन गए तो क्या ऐसे परिवार को अभी भी पिछड़ा ही माना जाएगा? डॉ.भीमराव अम्बेडकर ने जब आरक्षण की परिकल्पना की होगी, तब यह नहीं चाहा होगा कि पिछड़े वर्ग में भी अमीर और गरीब की खाई बन जाए। अब यदि अम्बेडकर वादियों को अपने महान नेता को सच्ची श्रद्धांजलि देनी है तो मालदारों को थोड़ी मलाई तो छोडऩी पड़ेगी ही।

(एस.पी. मित्तल)
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