Monday 4 January 2016

पाक के आतंकियों ने भारतीय सेना को पठानकोट में घुस कर चुनौती दी है


4 जनवरी को लगातार तीसरा दिन रहा, जब भारतीय सेना हमारे पंजाब प्रांत के पठानकोट में पाकिस्तान से आए आतंकियों के साथ जूझती रही। इसे गंभीर ही माना जाएगा कि अभी तक यह पता नहीं चला है कि पठानकोट के एयर फोर्स बेस की बिल्डिंग में कितने आतंकी हैं। सरकार ने अब तक चार आतंकियों के मारे जाने की बात कही है, लेकिन अब तक सेना के सात अधिकारी और जवान भी शहीद हो चुके हैं तथा 20 जवान जख्मी हुए हैं। आतंकियों के कब्जे में हमारे कितने जवान हैं, इसका भी पता नहीं चल रहा है। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का 2 जनवरी को कहना था कि आतंकियों का हमला विफल कर दिया गया है, लेकिन 4 जनवरी तक आतंकियों की ओर से एयरफोर्स बेस पर गोलाबारी जारी रहने से जाहिर है कि हमला विफल नहीं हुआ है। यदि पाक के आतंकी हमारे देश की जमीन पर बने सेना के एयर फोर्स बेस पर लगातार 3-4 दिनों तक डटे रहते हैं तो इसे भारतीय सेना को चुनौती देना ही माना जाएगा। जब हम यह कहते हैं कि हमारी सेना देश के चुनिंदा देशों की सेनाओं में से एक है तो फिर हमें यह भी बताना चाहिए कि  हम आतंकियों को एयरफोर्स बेस से बाहर क्यों नहीं निकाल पाए? ऐसा नहीं कि आतंकियों से सिर्फ पंजाब पुलिस भिड़ रही हो। हमारी थल और वायु सेना के साथ-साथ एनएसजी के कमांडों भी आतंकियों से लोहा ले रहे हैं। देखा जाए तो हमारी सेना की पूरी ताकत लगी हुई है। यहां तक कि युद्ध मेंं काम आने वाले हेलीकॉप्टर भी उड़ान भर रहे हैं। केन्द्र सरकार माने या नहीं, लेकिन पाकिस्तान के आतंकियों का तो मकसद पूरा हो गया है। 
पाकिस्तान क्यों करेगा युद्ध:
पठानकोट में जिस तरह की घटना हुई है, उसमें यह सवाल उठता है कि अब पाकिस्तान युद्ध क्यों करेगा? जब पाकिस्तान के आतंकी हमारे एयरफोर्स बेस में घुसकर युद्ध जैसे हालात उत्पन्न कर रहे हैं तो फिर पाकिस्तान को घोषणा कर युद्ध करने की कोई जरुरत नहीं है। हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि आखिर कश्मीर की सीमा से ही पाक आतंकी भारत में प्रवेश क्यों करते हैं। क्या कश्मीर के हालात इतने खराब है कि आतंकी आसानी से भारत में घुस आते हैं। देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए केन्द्र सरकार पठानकोट की घटना की सही जानकारी नहीं दे रही है। माना जा रहा है कि भारत में रहने वाले देशद्रोहियों की मदद से ही पाक के आतंकी पठान कोट तक पहुंचे हैं। 
कौन सुनेगा विधवाओं और अनाथ बच्चों का दर्द:
पठानकोट के हमले में हमारे जो जवान शहीद हुए हैं, उनकी विधवाओं और अनाथ बच्चों का दर्द कौन सुनेगा? यदि हमारे जवान सीमा पर जाकर अपने देश की रक्षा की खातिर शहीद होते तो गर्व की बात होती, लेकिन हमारे बहादुर जवानों को आतंकियों ने धोखे से उनके ही घर में मार डाला। सवाल उठता है कि शहीद हुए जवानों की विधवाओं और अनाथ बच्चों का दर्द अब कौन सुनेगा। माना की सरकार लाखों रुपया दे देगी, लेकिन अनाथ बच्चों का पिता और विधवा का पति कभी भी लौट कर नहीं आएगा। जो लोग सरकार चला रहे हैं उन्हें विधवाओं और अनाथ बच्चों का दर्द समझना चाहिए। 4 जनवरी को कमांडो गुरुसेवक का शव अम्बाला स्थित निवास स्थान पर आया तो घर की बुजुर्ग महिलाओं ने गुरुसेवक की पत्नी के हाथों की चूडिय़ां उतारकर शव पर रख दी। ऐसा इसलिए किया गया ताकि पत्नी अब विधवा नजर आए। जो लोग सत्ता के शीर्ष पर बैठे हैं, उन्हें कमांडों गुरुसेवक की विधवा की चूडिय़ों का दर्द भी सुनना चाहिए। यदि हमारे जवान पाकिस्तान के वहाबलपुर में जाकर इन आतंकियों को मौत के घाट उतार देते तो देश के हर नागरिक का सिर गर्व से ऊंचा हो जाता। लेकिन आतंकी जिस तरह वहाबलपुर से पठानकोट तक आ गए और हमारे सात जवानों को शहीद कर दिया। उसमें सरकार अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। 

(एस.पी. मित्तल)
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