Thursday 7 January 2016

आखिर हम कैसा भारत चाहते हैं?



सऊदी अरब और मालदा की घटनाओं से सबक लेने की जरुरत।
सवाल हिन्दू और मुसलमान का नहीं है। सवाल यह है कि हम सवा सौ करोड़ नागरिक कैसा भारत चाहते हैं? बीते पांच दिनों में दो बड़ी घटनाएं हुई। पहली घटना सऊदी अरब में हुई। यहां शिया समुदाय के एक सर्वोच्च धर्मगुरु के साथ 46 शियाओं को फांसी दे दी गई। सऊदी अरब इस्लामिक देश है। सऊदी अरब की सरकार का आरोप रहा कि शिया मुसलमान धार्मिक उन्माद फैला रहे हैं, जिसकी वजह से सऊदी अरब में अराजकता हो सकती है। हालांकि फांसी से पहले अनेक मुस्लिम देशों के शासनाध्यक्षों ने सऊदी अरब को चेतावनी भी दी। लेकिन सऊदी अरब की सरकार पर कोई असर नहीं हुआ। सऊदी अरब की सरकार ने दो टूक शब्दों में कहा कि देश में कानून व्यवस्था बनाए रखना जरूरी है और जो लोग कानून को चुनौती देंगे, उन्हें फांसी पर ही लटकाया जाएगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि सऊदी अरब में शिया मुसलमानों को लेकर कई बार मानवाधिकार हनन की घटनाएं सामने आई हैं, लेकिन सऊदी अरब  की सरकार ने ऐसी घटनाओं की कभी परवाह नहीं की। सऊदी अरब  में शियाओं को फांसी दिए जाने का मामला सऊदी अरब का आंतरिक मामला है। लेकिन जब हम मानवाधिकारों के हनन की बात करते हैं तब अंतर्राष्ट्रीय परिपेक्ष में देखा जाना चाहिए कि पश्चिम बंगाल के मालदा में विगत दिनों जो कुछ भी हुआ वह बेहद ही अफसोसनाक है। सवाल यह नहीं कि मुसलमानों की उन्मादी भीड़ ने गुस्सा जाहिर किया। सवाल यह है कि उन्मादी लोगों को नियंत्रित करने में पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी की सरकार विफल क्यों रही? यदि कुछ हजार लोग एकत्रित होकर बाजारों में पुलिस थानों, धार्मिक स्थलों, सार्वजनिक स्थानों आदि को आग लगा दें और उन्हें रोकने वाला कोई न हो तो फिर यह सवाल उठता ही है कि हम कैसा भारत चाहते हैं? हो सकता है कि कुछ लोग मालदा की घटना को भी जायज ठहराए, लेकिन जब हम भारत में हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई की बात करते हैं तो फिर मालदा जैसी घटनाएं क्यों होती हैं? आरोप तो यहां तक लग रहे हैं कि पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी की सरकार के संरक्षण में ही मालदा की हिंसा हुई है। हम सब जानते हैं कि हमारे देश में जो लोकतांत्रिक व्यवस्था है, उसके अंतर्गत कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। केन्द्रीय सुरक्षा बलों का उपयोग तभी हो सकता है, जब राज्य सरकार मांग करें। मालदा में जब पश्चिम बंगाल की पुलिस आगजनी को रोकने में विफल रही तो क्या केन्द्र सरकार से सुरक्षा बलों की मांग नहीं की जानी चाहिए थी? यदि कोई राज्य सरकार अपने राजनीतिक स्वार्थों की खातिर मूक दर्शक बनी रहे तो यह देश की एकता और अखंडता के लिए घातक है। जहां तक मालदा की हिंसा की खबरें मीडिया में नहीं आने की बात है तो कई बार हालातों को देखते हुए ऐसे निर्णय करने भी पड़ते हैं। ऐसा न हो कि आज जो हालात कश्मीर के हैं, वो हालात पश्चिम बंगाल के बन जाए। ममता बनर्जी की भले ही केन्द्र की भाजपा सरकार से पटरी न बैठती हो, लेकिन ममता बनर्जी भी यह नहीं चाहेंगी की पश्चिम बंगाल के हालात कश्मीर जैसे हों। जो लोग देश में साम्प्रदायिक सद्भावना के पक्षधर हैं, उन सबका यह दायित्व है कि भविष्य में मालदा जैसी घटनाएं न हो। हमें इस संदर्भ में सऊदी अरब में हुई फांसी की घटना का भी ध्यान रखना चाहिए। 

(एस.पी. मित्तल)  (07-01-2016)
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