Monday 25 January 2016

आखिर क्या मिला जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल से। मेले में लगी शराब की दुकान भी।



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राजस्थान की राजधानी जयपुर में लिटरेचर फेस्टिवल का समापन 25 जनवरी को हो गया। कोई चार दिनों तक चले इस मेले में देश-विदेश के साहित्यकारों ने भाग लिया। मेले का शुभारंभ सीएम वसुंधरा राजे ने अंग्रेजी का भाषण देकर किया। अखबारों में पढऩे से लगा कि इस मेले में अंग्रेजी के लेखक या अंग्रेजियत की जिन्दगी जीने वाले ही ज्यादा आए। अब चूंकि इस मेले का समापन हो चुका है, इसलिए यह बात सामने आनी चाहिए कि इस मेले से आखिर मिला क्या है? क्या यह मेला उच्च घरानों से जुड़े लोगों का एक जमावड़ा था? आमतौर पर ऐसे मेलों में जो स्टार आते हैं, उन्हें मेहनताना देकर बुलाया जाता है। आने-जाने का हवाई जहाज का किराया, पांच सितारा होटल में आवास और खाने पीने का पूरा इंतजाम होने पर ही स्टार आते हैं, जो स्टार मेहनताना लेकर आता हो वो स्टार साहित्य के मेले में क्या परोसेगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल जेएलएफ अब हर साल होने लगा है। लेकिन इस मेले के बाद इस बात की समीक्षा नहीं होती कि आखिर इस मेले से राजस्थान के साहित्य को क्या मिला है। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि राजस्थानी भाषा को केन्द्रीय अनुसूची में शामिल करने के लिए लम्बे अर्से से आंदोलन हो रहा है, लेकिन जेएलएफ में कभी भी राजस्थानियों के इस संघर्ष पर चर्चा नहीं होती। जो लोग जेएलएफ को करवाते हैं क्या उनका यह दायित्व नहीं कि अपनी मातृ भाषा को मान्यता दिलाने के लिए भी काम करें। जेएलएफ पर करोड़ों रुपया फूंका जाता है और राजस्थानी भाषा की मान्यता का आंदोलन दर-दर की ठोकरें खा रहा है। 
अजीब बात तो यह है कि जेएलएफ में हिन्दी से भी परहेज किया जाता है। अधिकांश स्टार अंग्रेजी में ही अपनी बात को रखते हैं। जहां तक जेएलएफ में युवाओं की उपस्थिति का सवाल है तो यह उपस्थिति बहुत कम होती है जो स्कूल कॉलेज के युवा पहुंचते हैं, उनका भी कॉलेज कैम्पस वाला ही नजरिया होता है। जेएलएफ के अंदर का माहौल कैसा होता है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां शराब की दुकान भी लगी होती है। कोई भी व्यक्ति बड़े आराम से खुले स्थान पर बैठकर शराब का सेवन कर सकता है। एक और जब सरकार नशे के खिलाफ अभियान चला रही है, तब क्या किसी साहित्य के मेले में शराब परोसी जानी चाहिए? यदि शराब साहित्य मेले का फैशन बन गई है तो फिर ऐसे मेलों का भगवान ही मालिक है। 
जेएलएफ में कैसा साहित्य परोसा गया, इसका अंदोजा भी अंग्रेजी उपन्यासकार अनीष त्रिपाठी की एक पुस्तक से लगाया जा सकता है। इस पुस्तक में लिखा गया कि 'दशरथ ने अपने पुत्र राम से कहा कि भाड़ में जाओ मुझे तुम्हारी समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है।Ó इस संबंध में जब त्रिपाठी से सफाई मांगी गई तो उसने कहा कि यह संस्कृत भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद करते समय गलती से हो गया। यह घटना बताती है कि अंग्रेजी लिखने वाले हमारे धार्मिक ग्रंथों का कितना मजाक उड़ाते हैं। जेएलएफ में यदि राजस्थान की समस्याओं को भी उठाया जाता तो अच्छा रहता। 
(एस.पी. मित्तल)  (25-01-2016)
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