Wednesday 10 February 2016

आखिर किसकी सुरक्षा के लिए 6 दिनों तक बर्फ में सोता रहा हनुमनथप्पा



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भारतीय थल सेना का जांबाज लांस नायक हनुमनथप्पा इस समय दिल्ली में सेना के अस्पताल में भर्ती है। जब देशभर के लोग हनुमनथप्पा के लिए प्रार्थना कर रहे हंै तो फिर हनुमनथप्पा को अपने एक वर्षीय मासूम बेटे, पत्नी व माता-पिता से मिलने से कौन रोक सकता है। पूरा देश जानता है कि अपने देश के नागरिकों के खातिर हनुमनथप्पा सियाचिन के ग्लेशियर पर ड्यूटी दे रहा था। जिस दल में हनुमनथप्पा शामिल था उसमें से नौ जवानों और अधिकारियों की बर्फ में दबने से मौत हो गई। इसे ईश्वर का चमत्कार ही कहा जाएगा कि 6 दिनों तक  बर्फ के नीचे दबे रहने के बाद भी 9 फरवरी को हनुमनथप्पा जिंदा निकल आया। अब सवाल उठता है कि आखिर हनुमनथप्पा किसकी सुरक्षा के लिए चीन से लगी सीमा पर तैनात था। जो लोग भारत में रहकर अलगाववादी भूमिका निभा रहे है उन्हें यह समझना चाहिए कि आज भारत जो सुरक्षित है उसके पीछे हनुमनथप्पा जैसे हमारे जांबाज सैनिकों की दिलेरी और शहादत शामिल है। कश्मीर में सरकार बनाने के लिए महबूबा मुफ्ती भले ही अलगाववादियों की शर्तो को रखे, लेकिन महबूबा यह भी समझे कि आज कश्मीर में वे स्वयं को जो सुरक्षित मानती है इसके पीछे हनुमनथप्पा की दिलेरी है। हनुमनथप्पा जैसे जांबाज सैनिक जब सीमा पर जाकर बर्फ में खड़े होते है तो यह नहीं सोचते कि वे अपनी ड्यूटी महबूबा मुफ्ती के लिए दे रहे है या श्रीमती सोनिया गांधी के लिए। उन्हें लगता है कि हम अपने देश के खातिर बर्फीले तूफान में भी खड़े है। जो लोग अपने निहित स्वार्थो के खातिर राजनीति करते है,उन्हें हनुमनथप्पा की दिलेरी से सबक लेना चाहिए। यदि हनुमनथप्पा जैसा जांबाज सिपाही राजस्थान के रेगिस्तान से लेकर सियाचिन ग्लेशियर तक मुस्तैद न रहे तो न राजनीति रहेगी और न राजनीति करने वाले। यह भारत के तिरंगे झण्डे में ही ताकत है कि हमारा जवान तिरंगा हाथ में लेकर अपनी जान की कुर्बानी तक दे सकता है। दु:ख तब होता है जब राजनीति से जुड़े लोग देश को तोडऩे वाली बातें करते हैं। संसद पर हमले के आरोपी के शव के लिए आंदोलन और बंद करवाए जाते हैं। एक और जहां आतंकवादी हमारे देश में घूसकर हिंसक वारदातें करते हैं तो दूसरी और हनुमनथप्पा जैसा हमारा जवान सीमा पर खड़े होकर देश की सुरक्षा करता है।  दुनिया में भारत ही ऐसा मुल्क होगा, जहां आतंककारियों के पैरोकार भी मिल जाएंगे। हमें हनुमनथप्पा के एक वर्षीय मासूम बेटे, पत्नी और वृद्ध माता-पिता की मनस्थिति की कल्पना करनी चाहिए। पत्नी और बेटे को पता नहीं कि उसका पति और पिता अस्पताल से किस स्थिति में बाहर आएगा। माता-पिता की वृद्धावस्था का सहारा किन हालातों में नजर आएगा। पीएम नरेन्द्र मोदी स्वयं हनुमनथप्पा को देखने के लिए दिल्ली के सैनिक अस्पताल में गए। उनके साथ थल सेना के अध्यक्ष दलवीर सिंह भी थे। हनुमनथप्पा के लिए तो इससे बड़े सम्मान की बात और क्या हो सकती है, लेकिन वहीं यदि हमारे देश में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे और आईएस जैसे आतंकी संगठनों के झण्डे लहरे तो फिर देश के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। जो लोग हमारे ही देश में बैठकर पाकिस्तान से आए आतंकवादियों को संरक्षण देते हैं तो उन्हें यह समझना चाहिए कि हनुमनथप्पा जैसे जांबाजों के कारण ही भारत आज सुरक्षित है। हनुमनथप्पा जैसे जांबाज सैनिक सीमा पर खड़े होकर दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब दे सकते है, लेकिन देश के अंदर रहने वाले दुश्मनों से हनुमनथप्पा मुकाबला नहीं कर सकता। हम हनुमनथप्पा की दिलेरी को तभी सलाम कर सकते है जब देश का हर नागरिक एक जुट रहे।

(एस.पी. मित्तल)  (10-02-2016)
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