Wednesday 17 February 2016

खुश है हाफिज सईद और पाकिस्तान।


जेएनयू से लेकर जादवपुर तक। 
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17 फरवरी को खुफिया एजेंसियों की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर की आजादी के लिए जिस तरह 9 फरवरी को दिल्ली के जेएनयू में नारे लगे, वैसी ही नारे देश की 18 यूनिवर्सिटी में एक साथ लगने थे। इसके लिए उमर खालिद नामक छात्र नेता ने संबंधित यूनिवर्सिटीज में सम्पर्क भी किया। खुफिया एजेंसियों की इस रिपोर्ट की पुष्टि 16 फरवरी की घटना से होती है। 16 फरवरी को पश्चिम बंगाल की जादवपुर यूनिवर्सिटी में जेएनयू की तर्ज पर ही विरोध प्रदर्शन हुआ। यानि दिल्ली से लेकर पश्चिम बंगाल तक कश्मीर की आजादी को समर्थन मिल रहा है। अब केन्द्रीय सरकार ने बंगाल सरकार से जादवपुर यूनिवर्सिटी की घटना पर रिपोर्ट मांगी है। सब जानते हैं कि बंगाल की सीएम ममता बनर्जी हैं। ममता बनर्जी की सरकार कैसी रिपोर्ट देंगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इधर हालत ये हैं कि दिल्ली पुलिस को उन 10 युवकों के बारे में कोई सुराग नहीं मिला है, जिन्होंने 9 फरवरी को भारत के टुकड़े-टुकड़े करने के नारे लगाए थे। हो सकता है कि अगले कुछ दिनों में देश की अन्य यूनविसॢटज में भी भारत विरोधी माहौल देखने को मिले। यह सब एक सुनियोजित षडय़ंत्र के तहत हो रहा है। 
पिछले कुछ दिनों से भारत में जो माहौल बना है,उससे पाकिस्तान में बेठा हाफिज सईद बेहद खुश होगा। हाफिज सईद पहले भी कई बार कह चुका है कि भारत में उसके ढेरों समर्थक हैं। यह वही हाफिज सईद है, जिसने मुम्बई पर 26/11 का आतंकी हमला करवाया और आज भी भारत पर आतंकी हमलों की धमकी देता है। हाफिज सईद को भी यह उम्मीद नहीं होगी कि उसे भारत में इतना समर्थन मिलेगा। हाफिज को यह समर्थन तब मिल रहा है, जब वह भारत में लगातार आतंकी हमले करवा रहा है। इसलिए यह सवाल उठ रहा है कि 9 फरवरी को जेएनयू में जो कुछ हुआ उसके तार क्या हाफिज सईद से जुड़े हुए हैं? भारत के लिए यह अफसोसनाक बात है कि देशद्रोहियों को भी राजनेताओं का समर्थन मिल रहा है। हाफिज सईद के लिए इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है कि देशद्रोह के आरोपी छात्र के प्रति समर्थन जताने के लिए कांग्रेस  के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी जेएनयू पहुंच गए। वामदलों के नेता तो शुरू से ही उन छात्रों के साथ हैं, जिन्होंने भारत के टुकड़े-टुकड़े करने के नारे लगाए। 
जिम्मेदार कौन?
जो लोग देशद्रोही युवकों का समर्थन कर रहे हंै, उनका अब यह भी कहना है कि पहले उन हालातों की जांच की जाए, जिसमें छात्रों को भारत विरोधी नारे लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा। ऐसे समर्थक यह समझे कि आजादी के बाद देश पर 60 वर्षों तक कांग्रेस और वामदल जैसों का शासन रहा। इन सत्ताधारियों की नीतियों की वजह से ही पहले कश्मीर के हालात बिगड़े और अब अनेक राज्यों में ऐसी ताकतें भारत को तोडऩा चाहती हैं। सवाल यह नहीं है कि वर्तमान हालातों से पीएम नरेन्द्र मोदी कैसे निपटेंगे? सवाल यह है कि आखिर इस देश में देशद्रोहियों की इतनी बड़ी फौज कैसे तैयार हुई। गंभीर बात तो है कि विधायक, सांसद, मंत्री बनने वाले लोग देश की एकता और अखंडता बनाए रखने को शपथ लेते हैं। लेकिन ऐसे लोग इस शपथ को तोडऩे में कोई हिचक नहीं दिखाते। यदि देशद्रोहियों पर सख्त कार्यवाही नहीं की गई तो हालात और बिगड़ेंगे। 
वकीलों में दो फाड़
जेएनयू में देशद्रोह के मामले को लेकर वकीसों में दो फाड़ हो गई है। 17 फरवरी को दिल्ली के पटियाला कोर्ट में जब गिरफ्तार छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को पेश किया गया तो वकील आमने-सामने हो गए। इसी प्रकार सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई के दौरान विवाद की स्थिति देखने को मिली। वकीलों केआपसी झगड़े में भी प्रतीत होता है कि एक सुनियोजित षडय़ंत्र के तहत देशद्रोह के मुद्दे पर विवाद खड़ा करवाया जा रहा है। 17 फरवरी को दिल्ली पुलिस का रवैय्या भी गैर जिम्मेदाराना नजर आया। पटियाला कोर्ट ने कन्हैया कुमार को आगामी 2 मार्च तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। इस बीच कन्हैया कुमार ने एक पत्र लिखकर कहा है कि उसने जेएनयू कैम्पस में देश विरोधी नारे नहीं लगाए।
(एस.पी. मित्तल)  (17-02-2016)
(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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